नदी सागर से मिलने के लिए नहीं बहती
क्या हमारा भाग्य सचमुच पहले से ही तय है या हम अपना भाग्य खुद बनाते हैं? पढ़िए कि सद्गुरु इस बारे में क्या कहते हैं...
सद्गुरु: आपको किसने बताया कि सब कुछ पहले से तय है? पहले से कुछ भी तय नहीं है। बात बस इतनी है कि अनजाने में ही आपने खुद को कुछ विशेष परिस्थितियों में डाल लिया है। आपके भीतर अनजाने में ही कुछ खास तरह की आदतें और प्रकृति विकसित हो जाती हैं और इनके मुताबिक आप उसी दिशा में चलना शुरू कर देते हैं। जिस भाग्य की बात आप कर रहे हैं, वह कुछ और नहीं, बल्कि अनजाने में खुद आपके द्वारा विकसित की गई प्रकृति और आदतें हैं। वैसे आप इन्हें पूरे होशोहवास में भी तैयार कर सकते हैं।
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जैसे ही आप कहते हैं कि मैं अध्यात्म मार्ग पर चलना चाहता हूं या मैं मुक्ति की तरफ जाना चाहता हूं, तो आप मानें या न मानें, लेकिन वास्तव में आप यह कह रहे हैं कि मैं अपने भाग्य को अपने हाथों में लेना चाहता हूं। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि मेरे कर्म क्या कहते हैं।
भाग्य अपना काम तो करता है, लेकिन उसकी अपनी सीमाएँ हैं। भाग्य अंतिम नहीं है। दरअसल, आपके भीतर जो कुछ भी है, उससे एक खास तरह का नज़रिया और आदतें बनती हैं और ये खास दिशा में बढ़ना शुरू कर देती हैं। ऐसा इसलिए नहीं है कि कोई इन्हें उस दिशा में ढकेल रहा है। चूंकि आपकी आदतें वैसी बन गई हैं, इसलिए आप उस दिशा में बहे जा रहे हैं।
नदी के मन में समुद्र से मिलने की कोई इच्छा नहीं होती। अगर आप बांध बना देंगे तो नदी वहां बैठकर रोने या चिल्लाने नहीं लगेगी कि मुझे तो समुद्र में जाकर मिलना था। काव्य में ऐसी बातें हो सकती हैं पर हकीकत कुछ और ही है।
जो नदी पर्वतों की चोटियों से निकलती है, वह कहीं नाले जैसी तो कहीं झरने जैसी बन जाती है। इसके बाद यह समुद्र में जा मिलती है। क्या यह नदी का भाग्य है? नहीं, यह नदी का भाग्य नहीं, बल्कि नदी के पानी की प्रकृति है। पानी का काम एक जगह से दूसरी जगह लगातार बहना है और यह बहाव उस खास जगह के स्तर के मुताबिक होता रहता है। अगर समुद्र ऊँचाई पर होता तो नदी कभी उसमें नहीं गिर पाती।
किस्से-कहानियों से खुद को अलग कीजिए और जीवन को वास्तविकता में जीने की कोशिश कीजिए। नदी के मन में समुद्र से मिलने की कोई इच्छा नहीं होती। हालांकि हमारे यहां कवियो ने अपनी रचनाओं मे ऐसा कहा है। बस पानी अपने आप अपना स्तर ढूंढ लेता है और बहता चला जाता है। अगर आप बांध बना देंगे तो नदी वहां बैठकर रोने या चिल्लाने नहीं लगेगी कि मुझे तो समुद्र में जाकर मिलना था। काव्य में ऐसी बातें हो सकती हैं। हमें उनका आनंद भी लेना चाहिए, लेकिन हकीकत कुछ और ही है।
अगर आप हर पल में जागरूक रहकर अपने विवेक का इस्तेमाल करना जानते हैं तो आप अपने जीवन की दिशा और दशा बदल सकते हैं।