जीवन जीवंतता है, कोई सौदा नहीं – भाग 3
अगर आप ध्यान से देखें तो आज हर कोई हर जगह एक सौदा कर रहा होता है – बाजार से लेकर मंदिर तक। सौदेबाजी हमारी फितरत बन गई है। ऐसे में क्या करें कि सौदेबाजी की यह आदत हमारी आध्यात्मिकता में बाधा न बने?
अगर आप ध्यान से देखें तो आज हर कोई हर जगह एक सौदा कर रहा होता है – बाजार से लेकर मंदिर तक। सौदेबाजी हमारी फितरत बन गई है। ऐसे में क्या करें कि सौदेबाजी की यह आदत हमारी आध्यात्मिकता में बाधा न बने?
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स्वार्थ के लिए सौदे मत कीजिए। हो सकता है, आप अपने पूर्ण चैतन्य स्वभाव को उपलब्ध न हुए हों, लेकिन कम से कम इस मामले में, थोड़ी देर के लिए हम ईश्वर की नकल कर सकते हैं। ईश्वर सौदा नहीं करता। कई सारे रूपों में तुम्हें सौदा मिलेगा। एक तरह से, हरेक व्यक्ति मात्र एक व्यापारी है। हरेक व्यक्ति कोई न कोई सौदा हथियाने का प्रयास कर रहा है — कुछ लोग बाजारों में, हो सकता है कोई घर पर ही, हो सकता है कोई मंदिर में, अपनी आध्यात्मिक प्रक्रिया के साथ भी हो सकता है थोड़े से लोग सौदा कर रहे हों। लेकिन हर शख्स किसी न किसी किस्म का सौदा हासिल करने की कोशिश कर रहा है। जब आपको एक अच्छा सौदा मिलता है, आप सभी बहुत सभ्य और शिष्ट हो जाते हैं । लेकिन अगर सौदा घाटे का हो जाए, फिर आप चीखने चिल्लाने लगते हैं। जीवन की सभी प्राथमिकताएं बदल जाती हैं।
एक दिन शंकरन पिल्लई का खलिहान जल गया। शंकरन पिल्लई उदास और निराश था। वह बिना खाना खाए एक शराबखाने में अपने दुख को डुबोने चला गया। उसकी पत्नी ने मामले को अपने हाथ में लिया, उसने बीमा कंपनी को फोन किया और फोन पर ही गरजने लगी, ‘हमने उस खलिहान का पांच लाख का बीमा कराया था और मुझे अपना पैसा अभी चाहिए! मेरे पति इतने परेशान हैं, उन्होंने खाना तक नहीं खाया है!’ एजेंट ने जवाब दिया, ‘श्रीमती पिल्लई, एक मिनट जरा होल्ड कीजिएगा। बीमा कंपनी इस तरह से काम नहीं करती। पहले हम उस खलिहान में रखे अनाज की कीमत निश्चित करेंगे और फिर उसके बराबर कीमत का समान आपको दे दिया जाएगा। आपके पति वापस आ कर खाना खा लेंगे।’
एक लंबी चुप्पी के बाद श्रीमती पिल्लई ने बड़ी गंभीरता से जवाब दिया, ‘तो फिर मैं अपने पति की पॉलिसी रद्द करना चाहूंगी।’
बराबर कीमत की कोई चीज भला किसे चाहिए, विशेषकर सभी चीजों के बदले एक पति! (हंसते हैं)
एक चीज है जिसे ‘वासना’ कहते हैं। क्या आप वासना का अर्थ जानते हैं? आपके अंदर कुछ पुराने गुण और गंध होते हैं। चाहे आप कितना भी दिखाने का प्रयास कर लें कि आप एक बहुत सज्जन और प्रिय व्यक्ति हैं, जब सौदा मिलेगा, अचानक पुरानी वासनाएं आप पर हावी हो जाएंगी। एक उत्तेजना होगी कि सौदा कर ही लिया जाए। कभी-कभी आपके सौदे आपके खुद के चेहरे से ही जा टकराते हैं। यही कारण है कि अध्यात्म के मार्ग पर हम एक लक्ष्य निश्चित करने की बात करते हैं। अगर आप अपने लिए एक लक्ष्य निश्चित करते हैं, तो फिर आस-पास के किसी अन्य सौदे के लोभ में नहीं पड़ेंगे और मार्ग से विचलित नहीं होंगे। वह लक्ष्य स्वयं आपको कहीं नहीं पहुंचाता। वास्तव में वह एक रुकावट या बाधा की तरह है। विकास की प्रक्रिया में कहीं न कहीं उसे छोड़ देना होगा। लक्ष्य तो केवल यह निश्चित करने के लिए है कि आप कोई और सौदा न कर बैठें। वह आपको बांधने के लिए नहीं है। वह आपको सौदेबाजी के लोभ से मुक्त करने के लिए है।