सद्‌गुरुअध्यात्म के रास्ते पर चलते समय अगर कोई सांसारिक चाह मन में उठे तो क्या वह हमारे लिए बाधक है? क्या हमें परम को पाने के लिए सभी सांसारिक इच्छाओं का दमन करना होगा?

प्रश्न: सद्‌गुरु, मेरा सवाल मुझे परेशान किए हुए है। मेरे अंदर छोटी-मोटी इच्छाओं के साथ परम पाने की इच्छा भी है। मैं दुविधा में हूं क्योंकि वे मामूली इच्छाएं भी मेरे अंदर मौजूद हैं। मैं सोच रहा हूं कि इन मामूली इच्छाओं के साथ परम को पाने की इच्छा के साथ क्या मैं कुछ कर भी पाऊंगा? मैं परे जाने का अर्थ नहीं समझ पा रहा। जीवन में इन मामूली खुशियों से परे जाकर कैसे पूर्ण रूप से परम तत्व पर ध्यान दें जिससे मेरा मार्ग आसान हो जाए?

सद्‌गुरु: तो, आप अपनी मामूली इच्छाओं से परेशान हैं। हमारी बुनियादी ग़लती यह है कि हम ‘परम’ और ‘तात्कालिक’ को अलग करने की कोशिश करते हैं। आप उन्हें अलग नहीं कर सकते।

क्या ‘सांसारिक’ है और क्या ‘दिव्य’ - यह सब आप खुद तय करते हैं। यह सब अस्तित्व के स्तर पर नहीं होता है। कोई चीज अपनी प्रकृति के कारण सांसारिक या पवित्र नहीं होती, बल्कि आप उस पर कितना ध्यान देते हैं, इस पर सब निर्भर करता है।
इस शहर में बहुत से ‘सम्पंगी’ के पौधे हैं। जब यह नन्हा सा फूल सड़क किनारे खिलता है, तो बहुत खुशबूदार और सुंदर होने के बावजूद आप शायद उसे अनदेखा कर देंगे। जिस नन्हें फूल को आप अनदेखा कर देते हैं, अगर उसे खिलना है तो उसके अंदर जरूर सृष्टि का स्रोत काम कर रहा होगा। क्या आपको लगता है कि वह आपके भीतर भी सक्रिय है? किसी चींटी में? अगर आप किसी चींटी को ध्यान से देखें तो पाएँगे कि छह पैरों पर उसकी चाल की कुशलता कितनी शानदार होती है। उसका तंत्र बहुत ही बढ़िया है। उसमें निश्चित तौर पर सृष्टि का स्रोत शामिल है। वह चींटी में भी उतना ही शामिल है, जितना किसी और चीज में।

इच्छाएं अस्तित्व से सम्बंधित हैं, और हर हाल में इच्छाएं होंगी ही। लेकिन आप किस विषय के बारे में इच्छा करते हैं ये आपकी कार्मिक संरचना पर निर्भर करता है… आगे पढ़ें

इच्छा और कर्म में क्या संबंध है?

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गहन रूप से ध्यान देना

छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी चीज में, ईश्वर का हाथ है। वह हर पल सब में सक्रिय रहता है। आपकी छोटी से छोटी सोच, आपकी बड़ी से बड़ी सोच, आपकी मामूली सोच, आपकी दिव्य सोच, इन सभी के पीछे एक ही ऊर्जा का हाथ होता है। चाहे आपकी सोच कितनी भी लौकिक या सतही हो, अगर आप गहन रूप से उस पर ध्यान देंगे, तो वह एक आध्यात्मिक प्रक्रिया बन जाएगी। अपनी छोटी उंगली हिलाने जितना सरल काम भी अगर आप पूरे ध्यान के साथ करें, तो वह आपकी आध्यात्मिक प्रक्रिया बन जाएगी।

क्या ‘सांसारिक’ है और क्या ‘दिव्य’ - यह सब आप खुद तय करते हैं। यह सब अस्तित्व के स्तर पर नहीं होता है। कोई चीज अपनी प्रकृति के कारण सांसारिक या पवित्र नहीं होती, बल्कि आप उस पर कितना ध्यान देते हैं, इस पर सब निर्भर करता है। अगर आप हर चीज पर एक जितना ध्यान देंगे, तो आप देखेंगे कि सब कुछ पवित्र बन जाएगा। यही भारत है। यही भारत की सुंदरता है।

आज सड़क पर चलते समय आप किसी बगीचे के बगल से गुजर सकते हैं, जहां कुछ पत्थर पड़े हों। अगर कल कोई आकर उनमें से एक पत्थर पर थोड़ी विभूति या कुमकुम लगा दे और फूल रख दे, तो अगली बार उस पत्थर के पास से गुजरते समय आप कुदरती तौर पर उसके आगे सिर झुका देंगे। आप उस पर जो ध्यान दे रहे हैं, वह उसे तत्काल पवित्र बना देता है। वह हमेशा से वहीं था, मगर आप उसे देखने से चूक रहे थे। अब चूंकि किसी ने उस पर कुछ निशान बना दिया है, तो वह आपको नजर आ रहा है।


पुराने कर्मों से जुड़ी कई सारी इच्छाएं और वासनाएँ अभी भी आपके अंदर मौजूद हैं। कुछ लोग इनके खिलाफ हो जाते हैं और इनसे छुटकारा पाना चाहते हैं। कोई कैसे पाए छुटकारा? जानें सद्‌गुरु से

इच्छाओं और वासनाओं से लड़ने की कोशिश न करें

यही वजह है कि आप किसी देवता के ऊपर जो भी लगाते हैं, वह अपने ऊपर भी लगाते हैं। आप भगवान के ऊपर कुमकुम लगाते हैं, फिर अपने ऊपर भी लगाते हैं, भगवान के ऊपर विभूति लगाते हैं, अपने ऊपर भी लगाते हैं क्योंकि हर इंसान पर उतना ही ध्यान दिया जाना बहुत जरूरी है। अगर आप किसी दूसरे इंसान के सामने उसी तरह खड़े हों, जिस तरह आप किसी मंदिर में अपने भगवान के सामने खड़े होते हैं, तो आप देखेंगे कि वही चीज घटित होगी।

अगर आप एक चीज को पवित्र और दूसरी चीज को गंदी मानेंगे, तो आप खो जाएंगे। जीवन को देखने के सिर्फ दो तरीके हैं। या तो हर चीज को – खुद को, अपने माता-पिता को, अपने भगवान को – गंदा मानें - तब भी काम हो जाएगा, जोकि बहुत मुश्किल मगर तीव्र मार्ग है। या आप हर चीज को पवित्र मान सकते हैं। तब भी आप सफल होंगे। यह एक खुशनुमा मार्ग है। जो भी आपके लिए ठीक हो, वह करें।