धृष्टद्युम्न और द्रौपदी के जीवन का एक ही मकसद था –  बदला लेना। शुरू से ही द्रुपद उनके दिमाग में भरते रहे कि उनके जीवन का एकमात्र मकसद द्रोण और कुरु वंश से बदला लेना है। मतलब जब कुरु वंश आपस में ही लड़ रहा था, उसी समय उनके पड़ोस में एक विकट शत्रु बड़ा हो रहा था। द्रुपद अपनी बेटी का विवाह सबसे महान धनुर्धर और योद्धा से करना चाहते थे, ताकि वे प्रतिशोध ले सकें। उन्होंने उपयुक्त वर की तलाश की मगर उन्हें कोई ऐसा नहीं मिला, जो द्रोण को हरा सके। मगर फिर उन्हें उन सभी युद्धों के बारे में पता चला, जो कृष्ण ने लड़कर जीते थे। जरासंध और उसकी सेना ने सत्रह बार मथुरा पर आक्रमण किया था। हालांकि यादव सेना आकार में जरासंध की सेना का दसवां हिस्सा थी, कृष्ण और बलराम हर बार चालाकी और बहादुरी से उन्हें हरा कर भगा देते थे।

जरासंध से बचने के लिए कृष्ण मथुरा छोड़कर द्वारका चल पड़े

अठारहवें आक्रमण के लिए जरासंध ने उत्तरपश्चिम यानी मौजूदा अफगानिस्तान क्षेत्र के कुछ और राजाओं को जमा किया। उन सब ने अपनी-अपनी सेनाओं के साथ धावा बोलकर सभी दिशाओं से मथुरा को घेर लिया।

 कृष्ण ने कई और रानियों से विवाह किया था, मगर द्रौपदी सबसे अलग थी। कथा में उसका वर्णन धरती की सबसे सुंदर स्त्री के रूप में किया गया है जबकि उसका रंग सांवला और मखमली था। 
जब कृष्ण ने देखा कि मथुरा को जबर्दस्त सैन्य बल ने घेरा हुआ है और अगर उन्होंने रुककर उनसे मुकाबला करने की कोशिश की तो यादवों का समूल नाश हो जाएगा, तो उन्होंने वहां की पूरी आबादी को मथुरा छोड़कर तेरह सौ किलोमीटर दूर गुजरात में द्वारका तक जाने के लिए तैयार कर लिया। इस सामूहिक निर्वासन में राजस्थान के रेगिस्तान से गुजरते हुए सैंकड़ों लोगों की जान चली गई। पहले उन्होंने एक नया शहर बसाने की योजना बनाई थी, मगर द्वारका आने पर उन्हें एक छोटे से द्वीप पर एक अच्छा बसा-बसाया शहर मिला। कृष्ण को लगा कि यह द्वीपीय शहर रणनीतिक दृष्टि से उनके लिए सबसे बढ़िया जगह है। उस शहर के राजा थे, रेवत। राजा रेवत की एक पुत्री थी, जिसका नाम रेवती था। रेवत और रेवती सतयुग से थे, जब इंसानों की कद-काठी अभी से अधिक लंबी-चौड़ी होती थी। उन्होंने देवलोक जाकर यह वरदान मांगा था कि एक महान देव क्षत्रिय के रूप में जन्‍म लेकर उनकी पुत्री से विवाह करे। भूलोक और देवताओं के लोक देवलोक में समय का बड़ा अंतर था। देवलोक की यह एक दिन की यात्रा धरती पर कई लाख सालों के बराबर थी इसलिए जब वह वापस धरती पर लौटकर आए तब तक कई युग बीत चुके थे। इंसानों की कदकाठी काफी छोटी हो चुकी थी। रेवत निराश हो गए क्योंकि धरती पर कोई ऐसा पुरुष नहीं था जो उनकी बेटी के हिसाब से लंबा-चौड़ा हो। तभी वहां कृष्ण और बलराम आए। बलराम काफी लंबे-चौड़े थे, मगर रेवती उनसे भी लंबी थी।

बलराम और रेवती का विवाह

बलराम किसान थे, वह युद्ध में भी अपने हल को हथियार बनाकर लड़ते थे। उन्होंने रेवती को अपने हल से नीचे खींचा और कृष्ण की मदद से वह सिकुड़कर उस समय के इंसानों के बराबर हो गई। एक रणनीतिक गठजोड़ करते हुए कृष्ण ने बलराम का विवाह रेवती से करा दिया और वे द्वारका पर राज करने लगे। यादव लोग द्वारका में आ गए और कृष्ण ने आसानी से आस-पास के छोटे राज्यों पर कब्जा करके उन्हें अपने राज्य में मिला लिया। जहां चढ़ाई की जरूरत पड़ी, वहां उन्होंने युद्ध से उन्हें जीता। जहां कूटनीतिक शादी से काम चलाया जा सकता था, वहां उन्होंने शांति स्थापित करने के लिए एक राजकुमारी से विवाह कर लिया। उन दिनों, पारिवारिक रिश्ते सबसे महत्वपूर्ण होते थे और कई बार कूटनीतिक शादियां विरोधी से मेल का एकमात्र तरीका होती थीं। अगर आप अपनी बेटी का विवाह किसी से करते थे, तो उसके विरुद्ध युद्ध नहीं छेड़ सकते थे। कृष्ण ने रुक्मिणी का भी अपहरण किया था और उसके बड़े भाई रुक्मी, जो एक महान योद्धा था, को हराया था। साथ ही उन्होंने चेदि का सांड कहे जाने वाले शिशुपाल को भी पराजित किया था। कृष्ण ने एक बार जरासंध को द्वंद युद्ध में भी हराया था। इन पराक्रमों के कारण, एक योद्धा के रूप में उनकी बहादुरी और कुशलता के चर्चे दूर-दूर तक फैल गए थे।

कृष्ण और द्रौपदी के विवाह का प्रस्ताव

द्रुपद को लगा कि कृष्ण उनकी बेटी के लिए सबसे उपयुक्त वर होंगे। उन्होंने कृष्ण के पास उससे विवाह का प्रस्ताव भेजा। कृष्ण से इसे टालना चाहा, मगर समस्या यह थी कि अगर वह सीधे-सीधे इंकार कर देते तो इसे अपमान समझा जाता और द्रुपद लड़ाई छेड़ सकते थे। मगर चूंकि वह द्रौपदी से विवाह नहीं करना चाहते थे, कृष्ण ने बहुत चतुराई से इस स्थिति से अपने आप को निकाल लिया और उनसे कहा, ‘मैं तो सिर्फ एक ग्वाला हूं। मैं द्रौपदी से कैसे विवाह कर सकता हूं? वह तो एक रानी है।’ कृष्ण ने कई और रानियों से विवाह किया था, मगर द्रौपदी सबसे अलग थी। कथा में उसका वर्णन धरती की सबसे सुंदर स्त्री के रूप में किया गया है जबकि उसका रंग सांवला और मखमली था। ऐसा भी कहा गया कि इतना सुंदर होने पर स्त्री समस्याएं पैदा कर सकती है। लोग निश्चित रूप से उसके लिए लड़ेंगे। देशों में फूट पड़ेगी, भाई-भाई में लड़ाई होगी, बुरी चीजें होंगी। कृष्ण ने द्रुपद को स्वयंवर आयोजित करने के लिए तैयार करने की कोशिश की।

द्रौपदी के स्वयंवर के लिए द्रुपद हुए तैयार

पहले तो द्रुपद ने यह कह कर आपत्ति की कि उन्हें कोई ऐसा योद्धा नहीं दिखता जो इतना समर्थ हो। मगर कृष्ण ने कहा, ‘द्रौपदी जैसी तेजस्वी स्त्री को अपना चुनाव खुद करना चाहिए। उसके लिए चुनाव आपको नहीं करना चाहिए।’ उन्होंने स्वयंवर में एक प्रतियोगिता रखने का सुझाव दिया, जिसमें जीतने वाले को द्रौपदी अपना वर चुन सकती थी। कृष्ण के गुरु संदीपनी ने खुद इस प्रतियोगिता का खाका तैयार किया। उन्होंने एक मत्स्य यंत्र बनाया, जो एक सरल सी मशीन थी जिसके शीर्ष पर एक घूमती हुई मछली थी। उसके बगल में तेल का एक कुंड था। धनुर्धर को तेल में मछली की परछाईं देखकर उसकी आंख में तीर मारना था। सही जगह तीर मारने वाले को राजकुमारी से विवाह का मौका मिल सकता था, यदि राजकुमारी उसे चुने। कृष्ण के साथ काफी बहस के बाद द्रुपद इसके लिए तैयार हो गए और स्वयंवर की घोषणा कर दी।

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