पिछले ब्लॉग में आपने पढ़ा महर्षि से उत्पन्न हुई तीन संतानों - धृतराष्ट्र, पांडू और विदुर के बारे में। आगे पढ़ते हैं, कि कैसे कौरवों के आगमन के समय ही हस्तिनापुर में अशुभ संकेत गूंजने लगे

धृतराष्ट्र जन्मजात नेत्रहीन थे, मगर उनकी पत्नी गांधारी अपनी इच्छा से नेत्रहीन थी। धृतराष्ट्र चाहते थे कि उनके भाइयों की संतान होने से पहले उनको संतान हो जाए क्योंकि नई पीढ़ी का सबसे बड़ा पुत्र ही राजा बनता। उन्होंने गांधारी से खूब प्रेमपूर्ण बातें कीं ताकि वह किसी तरह एक पुत्र दे सके। आखिरकार गांधारी गर्भवती हुई। महीने गुजरते गए, नौ महीने दस में बदले, ग्यारह महीने हो गए, मगर कुछ नहीं हुआ। उन्हें घबराहट होने लगी। फिर उन्हें पांडु के बड़े पुत्र युधिष्ठिर के जन्म की खबर मिली। धृतराष्ट्र और गांधारी तो दुख और निराश में डूब गए।

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चूंकि युधिष्ठिर का जन्म पहले हुआ था इसलिए स्वाभाविक रूप से राजगद्दी पर उसी का अधिकार था। ग्यारह, बारह महीने बीतने के बाद भी गांधारी बच्चे को जन्म नहीं दे पा रही थी। वह बोली, ‘यह क्या हो रहा है? यह बच्चा जीवित भी है या नहीं?

आखिरकार गांधारी गर्भवती हुई। महीने गुजरते गए, नौ महीने दस में बदले, ग्यारह महीने हो गए, मगर कुछ नहीं हुआ।
यह इंसान है या कोई पशु?’ हताशा में आकर उसने अपने पेट पर मुक्के मारे, मगर कुछ नहीं हुआ। फिर उसने अपने एक नौकर को एक छड़ी लाकर अपने पेट पर प्रहार करने को कहा। उसके बाद, उसका गर्भपात हो गया और मांस का एक काला सा लोथड़ा बाहर आया। लोग उसे देखते ही डर गए क्योंकि वह इंसानी मांस के टुकड़े जैसा नहीं था। वह कोई बुरी और अशुभ चीज लग रही थी।

अशुभ संकेत मिलने लगे

अचानक पूरा हस्तिनापुर शहर डरावनी आवाजों से आतंकित हो उठा। सियार बोलने लगे, जंगली जानवर सड़क पर आ गए, दिन में ही चमगादड़ उड़ने लगे। ये शुभ संकेत नहीं थे और इसका मतलब था कि कुछ बुरा होने वाला है। इसे देखकर ऋषि-मुनि हस्तिनापुर से दूर चले गए। चारों ओर यह खबर फैल गई कि वहां से सारे ऋषि चले गए हैं। विदुर ने आकर धृतराष्ट्र से कहा, ‘हम सब बहुत बड़ी मुसीबत में पड़ने वाले हैं।’ धृतराष्ट्र संतान के लिए इतने उत्सुक थे कि उन्होंने कहा, ‘जाने दो।’ वह देख नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने पूछा, ‘क्या हुआ है? हर कोई चीख-चिल्ला क्यों रहा है और यह सारा शोर किसलिए है?’

फिर गांधारी ने व्यास को बुलाया। एक बार जब व्यास ऋषि एक लंबी यात्रा से लौटे थे तो गांधारी ने उनके जख्मी पैरों में मरहम लगाया था और उनकी बहुत सेवा की थी। तब उन्होंने गांधारी को आशीर्वाद दिया था, ‘तुम जो चाहे मुझसे मांग सकती हो।’

अचानक पूरा हस्तिनापुर शहर डरावनी आवाजों से आतंकित हो उठा। सियार बोलने लगे, जंगली जानवर सड़क पर आ गए, दिन में ही चमगादड़ उड़ने लगे।
गांधारी बोली, ‘मुझे सौ पुत्र चाहिए।’ व्यास बोले, ‘ठीक है, तुम्हारे 100 पुत्र होंगे।’ अब गर्भपात के बाद गांधारी ने व्यास को बुलाया और उनसे कहा, ‘यह क्या है? आपने तो मुझे 100 पुत्रों का आशीर्वाद दिया था। उसकी बजाय मैंने मांस का एक लोथड़ा जन्मा है, जो इंसानी भी नहीं लगता, कुछ और लगता है। इसे जंगल में फेंक दीजिए। कहीं पर दफना दीजिए।’

व्यास बोले, ‘आज तक मेरी कोई बात गलत नहीं निकली है, न ही अब होगी। वह जैसा भी है, मांस का वही लोथड़ा लेकर आओ।’ वह उसे तहखाने में लेकर गए और 100 मिट्टी के घड़े, तिल का तेल और तमाम तरह की जड़ी-बूटियों को लाने के लिए कहा। उन्होंने मांस के उस टुकड़े को 100 टुकड़ों में बांटा और उन्हें घड़ों में डालकर बंद करके तहखाने में रख दिया। फिर उन्होंने देखा कि एक छोटा टुकड़ा बच गया है। वह बोले, ‘मुझे एक और घड़ा लाकर दो। तुम्हारे 100 बेटे और एक बेटी होगी।’ उन्होंने इस छोटे से टुकड़े को एक और घड़े में डाल कर सीलबंद कर दिया और उसे भी तहखाने में डाल दिया। एक और साल बीत गया। इसीलिए कहा जाता है कि गांधारी दो सालों तक गर्भवती रही थी – गर्भ एक साल उसकी कोख में और दूसरे साल तहखाने में था।

आगे जारी...