सद्‌गुरुक्या हम खुद अपने विचारों से अपने भीतर बीमारियाँ पैदा करते हैं? जानते हैं कि कैसे ऊर्जा शरीर के ठीक से न काम करने से बीमारी पैदा करती है, और कैसे ये हमारे विचारों से जुड़ा है।

प्रश्नकर्ता : सद्‌गुरु बीमारी और मर्ज क्या हैं? वे कैसे पैदा होते हैं? क्या वे हमारे मन की उपज हैं?

क्यों पैदा कर रहा है शरीर बीमारी?

सद्‌गुरु : जब आप “बीमारी” की बात करते हैं, तो पहले हमें उनको दो मूल श्रेणियों में बांटना होगा। बीमारियों की एक श्रेणी संक्रामक होती है, वे आपको बाहरी वातावरण से लगती हैं।

यह इस शरीर की बहुत गहरी चाह है, वह अपने आप को ठीक रखना चाहता है। उसके बावजूद, अगर वह अपने अंदर बीमारियां पैदा कर रहा है, तो क्या गड़बड़ हो सकती है?
आज आपने लापरवाही में कुछ ऐसा खा-पी लिया जो स्वास्थ्यकर नहीं था या आप किसी ऐसे व्यक्ति के संपर्क में आए जिसे फ्लू था और आपको संक्रमण हो गया। उसके लिए दवाएं हैं, डॉक्टर हैं। लेकिन बीमारियों की एक दूसरी श्रेणी भी है, जो लम्बे समय से चले आ रहे विकार हैं। इन्हें हमारा शरीर पैदा करता है। शरीर की मूलभूत चाह जीवित रहने और खुद को संभाल कर रखने की होती है। यह इस शरीर की बहुत गहरी चाह है, वह अपने आप को ठीक रखना चाहता है। उसके बावजूद, अगर वह अपने अंदर बीमारियां पैदा कर रहा है, तो क्या गड़बड़ हो सकती है? इसकी वजह यह है कि हम कुछ बुनियादी चीजों को समझे बिना जीवन में आगे बढ़ते रहते हैं। इनमें मन बहुत महत्वपूर्ण है, उसे अनदेखा करने पर मनोदैहिक रोग होते हैं।

सिर्फ क्रोध त्याग कर बिमारी से मुक्ति मिल सकती है

पच्चीस सालों से दमा से पीड़ित लोग कक्षा (ईशा योग कार्यक्रम के संदर्भ में) में आए और दूसरे या तीसरे दिन, उनकी बीमारी ठीक हो गई। बस नजरिए में थोड़ा सा बदलाव किया और बीमारी खत्म।

सात दिनों के अंदर क्रिया इतनी शक्तिशाली नहीं होती कि उससे बीमारी ठीक हो सके, लेकिन वे बस अपने नजरिए में बदलाव लाते हुए उससे निजात पा लेते हैं।
कोई व्यक्ति खुद ही दमा के रूप में अपने लिए पीड़ा उत्पन्न करता है। लेकिन अगर आप उसे कहें कि “यह दमा आपकी वजह से हुआ है,” तो वह आपको पागल समझेगा क्यों कि उसकी तर्कबुद्धि इस बात को समझ नहीं पाएगी, “मैं खुद अपने लिए दमा क्यों उत्पन्न करूंगा? मैं खुद को यह पीड़ा क्यों दूंगा? आप बेकार की बात कर रहे हैं। मैं खुद के लिए बीमारी कैसे पैदा कर सकता हूं? मैं तो इससे राहत चाहता हूं।” लेकिन कई बार, लोगों की बीमारी सहज ही गायब हो जाती है। कुछ लोग लगातार अभ्यास से बीमारी से छुटकारा पा सकते हैं, लेकिन कई लोगों ने इस कार्यक्रम के दौरान ही बीमारी से मुक्ति पा ली। सात दिनों के अंदर क्रिया इतनी शक्तिशाली नहीं होती कि उससे बीमारी ठीक हो सके, लेकिन वे बस अपने नजरिए में बदलाव लाते हुए उससे निजात पा लेते हैं। वे अपना क्रोध या नफरत या ईर्ष्या त्यागते हैं और अचानक बीमारी गायब हो जाती है।

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आपके कर्म सॉफ्टवेयर की तरह हैं

अगर मन एक खास तरीके से काम करता है, तो वह ऊर्जा के काम में बाधा पहुंचाता है। शरीर की रचना, उसकी संभाल और विकास के रूप में इस शरीर में जो भी हो रहा है, वह मुख्य रूप से इस बात पर निर्भर करता है कि आपकी ऊर्जा इस शरीर में कैसे काम कर रही है।

आप जिस तरह के असंतुलन से गुजरते हैं, उसका गहरा संबंध कर्म से है क्योंकि हम जिसे कर्म कहते हैं, वह एक तरह का सॉफ्टवेयर है। हम अपने अंदर बहुत से प्रभाव समेट लेते हैं, जो अपनी तरह का एक सॉफ्टवेयर बन जाता है।
अगर किसी वजह से आपकी ऊर्जा ठीक से काम नहीं कर रही, तो शरीर में कोई रोग उत्पन्न हो सकता है। आपके शरीर में, वह एक बीमारी को पैदा करता है। यही खराबी अगर किसी दूसरे व्यक्ति में होती है, तो उसे कोई दूसरी बीमारी हो सकती है। एक तरफ, आपके शरीर का कोई हिस्सा अंदर से कमजोर हो सकता है क्योंकि वह आपके माता-पिता में भी कमजोर है। अगर शरीर में कोई असंतुलन होता है, तो आनुवांशिक तौर पर माता-पिता से जो मिलता है, उसके आधार पर एक व्यक्ति को दमा हो सकता है, दूसरे को मधुमेह हो सकता है। आप जिस तरह के असंतुलन से गुजरते हैं, उसका गहरा संबंध कर्म से है क्योंकि हम जिसे कर्म कहते हैं, वह एक तरह का सॉफ्टवेयर है। हम अपने अंदर बहुत से प्रभाव समेट लेते हैं, जो अपनी तरह का एक सॉफ्टवेयर बन जाता है। इस सॉफ्टवेयर के कुछ खास रुझान बन जाते हैं, उसका झुकाव एक खास दिशा में होता है। आम तौर पर योग परंपरा में इन्हें वासना कहा जाता है। वासना का शाब्दिक अर्थ होता है, गंध। आपके अंदर से किस तरह की गंध निकलती है, वह इस बात पर निर्भर करता है कि आपने किस तरह का कूड़ा इकट्ठा किया है, है न? अगर आपके अंदर कोई सड़ी मछली है, तो वह एक तरह की गंध है। अगर आप इस गंध को अपने आस-पास फैलाते हैं, तो कुछ खास चीजें आपकी ओर आकर्षित होंगी। दूसरे दिन अगर आप दूसरी गंध बिखेरते हैं, तो दुनिया में कुछ अलग तरह की चीजें आपकी ओर आकर्षित होंगी। आपके अंदर किस तरह की वासना है, उसके मुताबिक आप कुछ खास दिशाओं में जाते हैं और दुनिया के कुछ खास पहलू भी एक खास तरीके से आपकी ओर बढ़ते हैं।

कुछ अन्य प्रभावों से मंदिर बचा सकते हैं

क्या यह सुनिश्चित है? यह सुनिश्चित नहीं है। अगर आप जागरूक हो जाएं, तो चाहे आपकी गंध एक तरह की हो, आप दूसरी दिशा में जा सकते हैं।

चूंकि यह पहलू भी एक महत्वपूर्ण भूमिका रखता है, इसलिए हमारी सभ्यता में प्राचीन काल में हर गांव और हर शहर में एक मंदिर बनाने का फैसला किया गया था।
लेकिन यदि आप जागरूक नहीं हैं, तो आप स्वाभाविक रूप से अपनी प्रवृत्तियों के मुताबिक झुकते जाएंगे। शरीर में इन प्रवृत्तियों या रुझानों का एक खास तरीके से प्रकट होना रोग बन सकता है। कुछ झुकावों के कारण अगर शरीर के कुछ हिस्सों में ऊर्जा ठीक से काम नहीं करती, तो बीमारी हो सकती है। या, अगर आप किसी और चीज के प्रभाव में हैं, तो बीमारी हो सकती है। चाहे आपकी कर्म संबंधी बनावट ठीक हो, आपकी प्रवृत्तियां अच्छी हों और आपको सही दिशाओं में ले जा रही हों, आपने अपने शरीर को ठीक से संभाला हुआ है, लेकिन आपको कोई बुरी बीमारी हो सकती है क्योंकि आप किसी और चीज के प्रभाव में हैं। चूंकि यह पहलू भी एक महत्वपूर्ण भूमिका रखता है, इसलिए हमारी सभ्यता में प्राचीन काल में हर गांव और हर शहर में एक मंदिर बनाने का फैसला किया गया था।

मंदिरों से सार्वजनिक शुद्धिकरण हो सकता है

इस बात से आप हैरान हो सकते हैं, लेकिन वास्तव में मंदिरों को कभी भी पूजा या प्रार्थना के स्थानों के रूप में नहीं बनाया गया था।

अगर आपके पास अपने शरीर की शुद्धि के अंदरूनी तरीके नहीं हैं, तो मंदिर एक सार्वजनिक शुद्धिकरण स्थल थे, जहां जाकर आप उस बुरे तत्व से छुटकारा पा सकते थे।
मंदिर में, चर्च की तरह कोई प्रार्थना में आपकी अगुआई नहीं करता, आपको बस अकेले छोड़ दिया जाता है। आपको बस वहां बैठना है, और कुछ नहीं। ये मंदिर ऊर्जा केंद्र थे, जो आपके जीवन पर बाहरी प्रभाव के उस आयाम को ठीक करते हैं। ये प्रभाव इंफेक्शन की तरह होते हैं लेकिन वायरस या बैक्टीरिया के नहीं। कुछ दूसरी प्रवृत्तियां आपके जीवन की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती हैं। इनमें कोई व्यक्ति हो सकता है, कुछ स्थितियां, कुछ स्थान या लोगों के बुरे इरादे हो सकते हैं। इसलिए, आप रोजाना एक ऐसी जगह जाते हैं जहां आप अपनी शुद्धि करते हैं। जब आप जागरूक हो जाते हैं और शुद्धिकरण के अपने अंदरूनी तरीके विकसित कर लेते हैं, तब आपको इसकी जरूरत नहीं होती। अगर आपके पास अपने शरीर की शुद्धि के अंदरूनी तरीके नहीं हैं, तो मंदिर एक सार्वजनिक शुद्धिकरण स्थल थे, जहां जाकर आप उस बुरे तत्व से छुटकारा पा सकते थे। यह आपकी सभी समस्याओं का समाधान नहीं करता, लेकिन वह उस तत्व को निकाल देता है जो बाहरी प्रभावों से आपके जीवन में आता है।

स्वास्थ्य योग का लक्ष्य नहीं है

इन अलग-अलग तरीकों से आपकी ऊर्जा प्रणाली में रुकावट आती है, आपकी अपनी कर्म व्यवस्था, गलत खान-पान, गलत नजरिये, या आपके मन के तौर तरीकों यानि आपके तनाव, आपकी चिंता, आपकी भावनाएं, या दूसरे बाहरी प्रभावों से।

स्वास्थ्य सिर्फ एक प्रलोभन है। उसे योग का एक अंग बना दिया गया है, लेकिन वह योग का लक्ष्य नहीं है। खास तौर पर पश्चिमी देशों के लोग स्वास्थ्य को जीवन का लक्ष्य मानने लगे है। स्वास्थ्य जीवन का लक्ष्य नहीं है।
यह सब आपके शरीर में ऊर्जा के प्रवाह में रुकावट डाल सकते हैं। अगर आप क्रियाओं का सही प्रयोग कर रहे हों, तो इन सभी पहलुओं को ठीक किया जा सकता है। योग के विभिन्न पहलू होते हैं। योग के कुछ ऐसे पहलू होते हैं जिनका स्वास्थ्य से कोई संबंध नहीं होता, उनका संबंध सिर्फ आपको अपने अनुभव में कहीं और ले जाना होता है। योग के एक खास पहलू का सरोकार सिर्फ स्वास्थ्य से होता है। ईशा योग में बुनियादी अभ्यास के रूप में आप जो सीखते हैं, उसका एक हिस्सा स्वास्थ्य के लिए होता है, दूसरा हिस्सा आध्यात्मिक कल्याण से जुड़ा होता है। यह एक अच्छा संतुलन होता है। हमने उसे इस रूप में तैयार किया क्योंकि हम इसे ऐसे लोगों को सिखा रहे हैं जो परिवार के बीच और सामाजिक स्थितियों में रह रहे हैं। अमेरिका में सभी योग संस्थान स्वास्थ्य संस्थानों में बदल गए हैं, जो अच्छी बात नहीं है। स्वास्थ्य सिर्फ एक प्रलोभन है। उसे योग का एक अंग बना दिया गया है, लेकिन वह योग का लक्ष्य नहीं है। खास तौर पर पश्चिमी देशों के लोग स्वास्थ्य को जीवन का लक्ष्य मानने लगे है। स्वास्थ्य जीवन का लक्ष्य नहीं है। इस धरती पर स्वस्थ और दुखी लोगों की संख्या अस्वस्थ और दुखी लोगों से ज्यादा है। कम से कम अगर आप अस्वस्थ हैं, तो आपके पास अपने दुख का एक अच्छा बहाना है। स्वस्थ होने पर दुःख हो तो आपके पास कोई बहाना नहीं है, यह इसे और भी तकलीफदेह बना देता है।

संपादक की टिप्पणी:

*कुछ योग प्रक्रियाएं जो आप कार्यक्रम में भाग ले कर सीख सकते हैं:

21 मिनट की शांभवी या सूर्य क्रिया

*सरल और असरदार ध्यान की प्रक्रियाएं जो आप घर बैठे सीख सकते हैं। ये प्रक्रियाएं निर्देशों सहित उपलब्ध है:

ईशा क्रिया परिचय, ईशा क्रिया ध्यान प्रक्रिया

नाड़ी शुद्धि, योग नमस्कार