अब तक आपने पढ़ा: शैब्या एक साहसी महिला थी, जिसे विश्वास था कि उसके चाचा श्रीगला वासुदेव ही भगवान हैं। श्रीगला का कृष्ण ने वध कर दिया जिससे शैब्या कृष्ण से नफरत करने लगी थी। दूसरी तरफ कृष्ण के दो मित्र उद्धव और श्वेतकेतु शैब्या के प्रेम में पागल थे। अब पढि़ए आगे की कहानी:

 

शैब्या के चाचा श्रीगला वासुदेव ने असली रानी पद्मावती के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया था। अब श्रीगला के मरने के बाद उसका बेटा सहदेव राजा बन गया और रानी पद्मावती को उसकी ताकत वापस मिल गई थी। श्रीकृष्ण को लगा कि अगर वह शैब्या को यहां छोड़ते हैं तो रानी उसे अपने कब्जे में ले लेगी। वास्तव में यह शैब्या का बुरा समय था, क्योंकि पद्मावती अपना बदला लेने वाली थी। यह सब सोचकर कृष्ण ने शैब्या को मशवरा दिया कि वह उनकी बहन बनकर उनके साथ मथुरा चले। उन्होंने उससे कहा, 'तुमने अपने माता-पिता को बहुत ही छोटी उम्र में खो दिया।

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उन्होंने बड़े आराम से उन लोगों को बताया कि मैं इसे अपनी बहन बनाकर ले जा रहा हूं। यह मेरी छोटी बहन है इसलिए यह जो कुछ भी करती है, इसे करने दें ।
मैं अपनी माता देवकी और पिता वासुदेव को तुम्हारा माता-पिता बनने के लिए मना लूंगा। जब कृष्ण ने उससे यह सब कहा तो वह अपशब्दों की मानो नदी बन गई। उसने उन्हें झूठा, धोखेबाज, हत्यारा और ऐसे न जाने कितने ही नाम दे डाले। कृष्ण मुस्कुराकर उससे बात करते रहे और वह लगातार उन्हें ताने देती रही। कृष्ण जितनी शांति से उससे बोलते थे, वह उतनी ही गुस्सा और बेकाबू हो जाती थी। वह कभी क्रोध की चोटी पर तो कभी उदासी की गहराई में पहुंच जाती। वह लगातार गुस्से और आंसुओं के भंवर में धंसती जा रही थी, क्योंकि उसने श्रीगला को भगवान मान अपनी दुनिया उसके ही इर्द-गिर्द बनाई हुई थी। और अब उसका भगवान मर चुका था। उसे बिल्कुल समझ नहीं आ रहा था कि वह अपनी जिंदगी का क्या करे। वह यह भी जानती थी कि करावीरपुर में उसका कोई भविष्य नहीं है। उसका जीवन अब डर के साये में था। वह सारी जिंदगी राजकुमारी बनकर रही और अब उसे समझ नहीं आ रहा था कि कहां जाए। इसलिए वह बहुत अशांत और बेचैन थी।

खैर, कृष्ण उसे अपने साथ ले गए। वह सारे रास्ते न जाने कितने ही अपशब्दों का इस्तेमाल करते हुए उन्हें भला-बुरा कहती रही। कृष्ण के आसपास के लोगों को लग रहा था कि वे उसकी बकवास को कुछ ज्यादा ही झेल रहे हैं। कृष्ण के लिए उसका इस तरह जहर उगलना उन लोगों को बुरा लगने लगा और वे कहने लगे कि इसे लगातार इस तरह बोलने का अधिकार किसने दिया? इतना सब सुनकर भी कृष्ण एक पल के लिए भी विचलित नहीं हुए। उन्होंने बड़े आराम से उन लोगों को बताया कि मैं इसे अपनी बहन बनाकर ले जा रहा हूं। यह मेरी छोटी बहन है इसलिए यह जो कुछ भी करती है, इसे करने दें, जब तक कि मैं इसे इसके माता-पिता को, जो कि मेरे माता-पिता हैं, न सौंप दूं। आप परेशान न हों। जब वह उसे अपनी माता देवकी के पास लेकर पहुंचे तो उन्होंने देवकी से कहा - 'माता, इसे आप अपने घर की बेटी की तरह रखना, क्योंकि इसका अपना कोई नहीं है। यह बहुत अच्छी लडक़ी है। बस एक परेशानी है कि अभी यह इस दुनिया से नफरत करती है, नहीं तो यह बहुत अच्छी लडक़ी है।'

शैब्या और रुक्मणि की मुलाकात हुई। रुक्मणि में प्रेम ही प्रेम भरा था जबकि शैब्या केवल नफरत से भरी हुई थी। इसके बावजूद वे दोनों अच्छी दोस्त बन गईं। शैब्या महल में त्रिवक्रा से भी मिली। त्रिवक्रा एक अपंग औरत थी, जो बाद में श्रीकृष्ण के छूने मात्र से ही ठीक हो गई थी।

कृष्ण मुस्कुराकर उससे बात करते रहे और वह लगातार उन्हें ताने देती रही। कृष्ण जितनी शांति से उससे बोलते थे, वह उतनी ही गुस्सा और बेकाबू हो जाती थी।
त्रिवक्रा को शैब्या पसंद नहीं थी, क्योंकि वह हर रोज कृष्ण को गालियां देती थी। ऐसी बहुत सारी घटनाएं थीं जिनकी वजह से लोग शैब्या के प्रति गुस्से से भरे रहते थे। आखिर में वह सारी नफरत कृष्ण पर उड़ेल देती थी। लोगों को यह लगने लगा कि कहीं कृष्ण शैब्या की असाधारण सुंदरता के कारण उसकी ओर आकर्षित तो नहीं हैं। उधर शैब्या को कृष्ण के निकट आ पाने की सहजता देख कर रुक्मणि भी ईर्ष्या भाव से जूझ रही थीं। यह बहुत उलझा हुआ संबंध था।

आगे पढिए: तो क्या कृष्ण के प्रति शैब्या का क्रोध सचमुच प्रेम में बदलने लगा था? क्या रुक्मणि की शंका और ईर्ष्या सही थी? क्या सचमुच कृष्ण शैब्या की तरफ आकर्षित थे? क्या हुआ फिर शैब्या का?