सद्‌गुरुसद्‌गुरु हमें बता रहे हैं कि हर व्यक्ति जो क्रोध करता है, वो अपने क्रोध को उचित ही ठहराता है। कैसे रख सकते हैं क्रोध को खुद से दूर? जानते हैं कुछ उपाय

राजनेता हो या भिखारी, डाकू हो या दार्शनिक - चाहे कोई भी हो, अपने गुस्से को लेकर वह यही दलील देगा कि उसका गुस्सा न्यायोचित है। कोई भी पेड़ या पौधा, जानवर या कीड़ा दूसरों को अपनी तरह बदल डालने की योजना नहीं बनाता। यह इंसान ही है जो अपने विचारों और सिद्धांतों को दूसरे पर थोपने की कोशिश करता है। जो लोग सहमत नहीं होते उनके साथ रगड़ा शुरू हो जाता है।

सभी अपने क्रोध को उचित बता रहे हैं

इतना ही नहीं कुछ लोग उस हत्या को भी न्यायोचित करार दे रहे हैं, जो धर्म के नाम पर की जा रही है। हिंसा की घिनौनी हरकतें करने वाले आतंकवादियों से पूछने पर वे भी कहेंगे कि उनका क्रोध न्यायसंगत है। लेकिन क्रोध को न्यायोचित ठहराना किसी भी हाल में अक्लमंदी नहीं है। क्रोध को एक शक्ति के रूप में मानकर कई लोगों ने उसे हथियार बना लिया है। लेकिन दूसरों के ऊपर उस अस्त्र का इस्तेमाल करने पर वह अस्त्र घूमकर फेंकने वाले पर ही वार करता है। उसने जिस नतीजे की कल्पना की थी, वह पूरा नहीं होता, और मामला बिगड़ भी जाता है।

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क्रोश से अपनी ऊर्जा का नुक्सान हो रहा है

किसी एक व्यक्ति के साथ शुरू हुई दुश्मनी, धीरे-धीरे बढक़र पारिवारिक शत्रुता, सामूहिक शत्रुता और फिर पूरे राष्ट्र के प्रति शत्रुता की शक्ल में बदलती चली जाती है।

 आप अपने शरीर के अंगों को किस रूप में रखते हैं उसके आधार पर आपकी प्राणशक्ति की गति में अंतर आ जाता है। 
बदला लेने की भावना समाज द्वारा मान्यता प्राप्त मनोवृत्ति बन गई है। आंखें बंद रखते हुए अपनी हथेलियों को सीधे ऊपर की ओर रखिए। अपनी सांसों पर ध्यान दीजिए। उन्हीं हथेलियों को औंधा रखकर सांसों पर ध्यान दीजिए। आप पाएंगे कि अब सांस चलने का ढंग अलग है। आप अपने शरीर के अंगों को किस रूप में रखते हैं उसके आधार पर आपकी प्राणशक्ति की गति में अंतर आ जाता है। इसका ख्याल किये बिना गुस्से में अपने हाथों को इधर-उधर हिलाते हुए चिल्लाते समय आपकी प्राणशक्ति किस कदर संकट में पड़ जाती होगी, इस पर जरा सोचिए। पता है, असावधानी के साथ आप अपनी शक्ति का किस हद तक नुकसान कर रहे हैं? अगर आप सही ढंग से काम नहीं करेंगे तो आप किसी भी काम में सफल नहीं होंगे।

नेतृत्व की भूमिका में सभी को समझना होगा

अगर आप यही कहते रहेंगे कि ‘परिवार में तनाव है, दफ्तर में तनाव है, सफर में भी तनाव है’ तो आप इस दुनिया में रहने की योग्यता नहीं रखते। यदि अपने शरीर और मन को भी संभालना नहीं आता, तो आप परिवार और कंपनी को कैसे संभालेंगे?

कोई समूह आपको नेता के रूप में क्यों स्वीकार करता है? इसलिए कि वे सोचते हैं कि आपके पास जो सुलझी हुई सोच और दूरदृष्टि है वह उनके पास नहीं है।
कोई समूह आपको नेता के रूप में क्यों स्वीकार करता है? इसलिए कि वे सोचते हैं कि आपके पास जो सुलझी हुई सोच और दूरदृष्टि है वह उनके पास नहीं है। वे आपसे किस चीज की उम्मीद करते हैं? यही कि जो फैसला वे लोग नहीं ले सकते, इस तरह के निर्णय आप ले सकते हैं। यह सब जहां एक ओर गर्व की बात है, वहीं दूसरी ओर एक तरह से बोझ जैसा भी है। उस बोझ को जो लोग खुशी से ढो नहीं सकते, उन्हें आसानी से गुस्सा आ जाता है। जब आप एक साथ रहते हैं, साथ-साथ काम करते हैं तो हर कदम पर दूसरों को भी अपने जैसा मानकर उनके विचारों को भी सुनिए। उनके विचारों के खिलाफ जब आप निर्णय लेते हैं तब इस तरह स्नेहपूर्वक व्यवहार कीजिए जिससे उन्हें एहसास हो कि आपका निर्णय उनके हित में ही है। अगर आपका निर्णय सही रहा तो उन्हें इस बात का श्रेय दीजिए कि उसकी सफलता में उनकी भी भागीदारी रही। यदि आपका निर्णय गलत हो भी जाए, तब भी वे लोग मुंह सिकोड़े बिना उसमें भाग लेंगे। आपके साथ दृढ़ता पूर्वक मिलकर रहेंगे, लगातार अपना सहयोग देंगे। अगर आप नेतृत्व करना चाहते हैं तो आपके आसपास काम करने वालों को आपके ऊपर पूरा भरोसा होना चाहिए। आप अपने बारे में सजग रहेंगे तभी आप दूसरे लोगों की जिम्मेदारी ले सकते हैं।

क्रोध को भगाने के उपाय

एक चिडिय़ा पर कंकड़ मारेंगे तो आसपास के सभी पंछी उड़ जाएंगे। यदि आप किसी एक व्यक्ति पर गुस्सा करेंगे तो दूसरे लोगों का आप के ऊपर से विश्वास उठ जाएगा।  

 अगर क्रोध और तनाव ही आपकी जिंदगी हो, तो हरेक बार उसके बारे में सावधानीपूर्वक फैसला लेने की कोशिश कीजिए। क्रोध भाग जाएगा।
अगर कहीं कोई त्रुटि निकल आए तो आप पर इल्जाम लगाते हुए सारे लोग छंट जाएंगे। अब सवाल है कि गुस्से को छोड़ा कैसे जाए? आपके चारों तरफ  कुछ भी घटित हो जाए, यदि वहां आप एक ऐसा माहौल पैदा कर सकें जिसमें आप खुद एक समस्या न बनें, तो बस कोई तनाव नहीं रहेगा। विख्यात डॉक्टर रिचर्ड कौली के पास एक आदमी आया। उसने बड़े संकोच के साथ कहा, ‘डाक्टर, मैं बत्तीस साल का हूं। मगर अभी भी अंगूठा चूसने की आदत से छुटकारा नहीं मिल पाया है, जिससे मैं परेशान रहता हूं।’ ‘इसमें चिंता करने की कोई बात नहीं है। लेकिन सोचो अभी कितने साल तक उसी अंगूठे को चूसते रहोगे? आज से, बड़े ध्यान से कोई दूसरी उंगली चूसो’, डाक्टर ने उसे यही सलाह देकर भेजा। एक हफ्ते बाद वह फिर आया। ‘अपनी तीस साल पुरानी आदत से मैं केवल छह दिन में पूरी तरह से मुक्त हो गया। यह कैसे संभव हुआ?’

रिचर्ड कौली ने समझाया, ‘किसी काम को आदत से मजबूर होकर किए बिना, यदि हर बार उसके बारे में नए ढंग से फैसला लेना पड़े तो हम उसके प्रति एहतियात बरतेंगे। तब अनावश्यक आदत अपने आप छूट जाएगी।’ अगर क्रोध और तनाव ही आपकी जिंदगी हो, तो हरेक बार उसके बारे में सावधानीपूर्वक फैसला लेने की कोशिश कीजिए। क्रोध भाग जाएगा।