प्रेम बन जाओ और पहुँचो

अपनी माँ के गर्भ से पैदा हुआ मैं

पर उसने मेरी रचना नहीं की

मैं इस धरती का नमक खाता हूँ

पर इसका नहीं हूँ मैं

इस शरीर से चलता हूँ

पर यह नहीं हूँ मै

 

काम करता हूं

मन का इस्तेमाल करके

पर यह मुझे धारण नहीं कर सकता

रहता हूँ समय और स्थान

की सीमाओं में

परंतु इसने मुझे असीम

से कभी वंचित नहीं किया

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ह्रदय में दृढ़ संकल्प ले

मैं तुम्हारी खोज में,

करता रहा पीछा तुम्हारा

तीन जन्मों से

कि कर सकूं तुमसे प्रेम-निवेदन

अनकही व्यथा और ह्रदय में माधुर्य संभाले,

अनजानी राहों पर भागता रहा मैं पीछे तुम्हारे

इस यात्रा ने ही बना दिया मुझे संपूर्ण इतना

अहा! मेरे अंदर ही हैं दोनों अब

सृष्टि और स्रष्टा

दुनिया अब दिखती नहीं मुझे तेरे बिना।

तुम्हारी तरह जन्मा मैं,

 

तुम्हारी तरह ही खाता हूँ,

तुम्हारी तरह सोता हूँ,

और तुम्हारी ही तरह मरूँगा भी

लेकिन सीमाओं ने मुझे

कभी सीमित नहीं किया,

जीवन के बंधन

मुझे बाँध नहीं सके है

 

जैसे-जैसे जीवन नृत्य

आगे बढ़ता जा रहा है

यह शून्यता, यह असीमता,

इसकी मिठास

असहनीïय होती जा रही है

प्रेम बन जाओ और पहुँचो

आओ बन जाओ, जो मैं हूँ!

Love & Grace