मेरा असमंजस
आइए पढ़ते है सद्गुरु की एक कविता ... उफ! ये कैसा असमंजस!
ArticleMay 22, 2014
आइए पढ़ते है सद्गुरु की एक कविता ... उफ! ये कैसा असमंजस!
मेरा असमंजस
कैसे बतलाऊं तुझे
मैं अपना असमंजस
विचारों में डूबा मन
क्या समझ पाएगा कभी
मेरे भीतर की उस
आभा व दमक को
जिसके आगे दिनकर
भी शरमा जाएं
और यह मैं नही हूं
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सवालों में उलझा मन
क्या जान पाएगा कभी
उस आनंद व उन्माद को
जिसे छुपा रखा है
इस कठोर चेहरे ने
और यह मैं नही हूं।
तार्किक मन
क्या कभी जान पाएगा
इन नीरस आंखों में
उमड़ते उस प्रेम को
जो धड़कन पैदा कर दे
पत्थर में भी
और यह मैं नही हूं।
उफ! कैसे बतलाऊं तुझे
मैं अपना असमंजस
मैं रिक्त हूं, पर पूरा भरा हुआ।