सद्‌गुरुपुराणों में बताया गया है कि कलियुग का अंत करने भगवान कल्कि अवतरित होंगे। ऐसा कहा जाता है, वे एक  सफेद घोड़े पर बैठ कर आएंगें। क्या सच में दिव्य अवतरण होगा? या फिर ये बस युग परिवर्तन का संकेत मात्र है?

प्रतिभागीः सद्‌गुरु, मैं युगों की अवधारणा को लेकर थोड़ा भ्रमित हूं। पुराणों में कहा गया है कि कलियुग में विष्णु का दसवां अवतार कल्कि के रूप में जन्म लेगा। क्या आप इसके बारे में और जानकारी दे सकते हैं?

सद्‌गुरु : कलियुग की आशय है ‘अंधकार का युग’; जैसा कि मैंने पहले कहा कि धरती को राशि मंडल की पूरी परिक्रमा करने या चक्कर लगाने में कुल 25,920 साल का समय लगता है। अगर आप इस चक्र को दो हिस्सों में बांटे तो इसमें चार युगों के दो दौर आएंगे, इस तरह से कुल आठ युग होंगे। इनमें से केवल कलियुग और सतयुग एक साथ जुड़े हुए हैं। इन में दो सतयुग और दो कलियुग बारी-बारी से आते हैं। जबकि अन्य दो द्वापर युगों के बीच में दो कलियुग और दो त्रेता युगों के बीच में दो सतयुग आते हैं।

कलियुग यानी ‘अंधेरे का युग’

कलियुग को जो चीज अलग करती है, वह है सौर मंडल और जिस ‘महा सूर्य’ के आस पास सौर-मंडल परिक्रमा कर रहा है, उसकी दूरी अपने चरम पर है। जितनी इन दोनों के बीच की दूरी बढ़ेगी, उतनी ही धरती पर इंसान की बुद्धिमानी या समझदारी कम होगी। चूंकि कलियुग में इन दोनों के बीच की दूरी सबसे ज्यादा होती है, इसलिए मानव बुद्धि अपने सबसे निचले स्तर पर होती है।

जब यह कहा गया कि ’कल्कि सफेद उड़न घोड़े पर आएगा’ तो उसका एक लाक्षणिक मतलब था। जहां कहने का आशय था कि जब युग बदलेगा तो रोशनी आएगी और अंधियारे को नष्ट करेगी।

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.

अपनी चरम गिरावट पर होती है। जबकि उसके बाद आने वाले युगों में जैसे-जैसे सौर मंडल ‘महा सूर्य’ के करीब होता जाता है, मानवीय बुद्धिमत्ता निखरनी शुरू हो जाती है। यहां तक कहा गया है कि जैसे-जैसे धरती महा-सूर्य के करीब होती जाती है, वैसे-वैसे इंसान की इंसानी सिस्टम में विद्युतीय और चुंबकीय बल का प्रयोग करने की क्षमता बढ़ जाती है। दूरी बढ़ने पर क्षमता कम हो जाती है।

बुनियादी रूप से आपकी बुद्धिमत्ता इस पर निर्भर करती है कि आपके मस्तिष्क में स्नायु कोशिकाएं या नयूरोंस किस तरह से चटक अथवा खिल रहे हैं। अगर आप मस्तिष्क के काम करने की कृत्रिम आकृति पर नजर डालें तो आप देखेंगे कि यह वास्तव में बिजली से जगमगा/चमचमा रहा है। मस्तिष्क द्वारा विद्युतीय आवेश को उठा पाने की क्षमता से ही यह तय होता है कि आप कितनी अच्छी और सुस्पष्ट तरीके से सोच सकते हैं। सौर प्रणाली को संचालित करने वाले भौतिक नियमों पर गौर करें तो भौतिक शास्त्री हाल ही में इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि अब इंसानी मस्तिष्क के और ज्यादा विकसित होने की कोई गुंजाइश नहीं बची है। जबकि योगिक विज्ञान यह बात काफी लंबे समय से कहता आ रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि अगर आप न्यूरॉन का आकार बढ़ाएंगे तो मस्तिष्क और अधिक क्षमतावान तो होगा, लेकिन इसमें बहुत ज्यादा बिजली या विद्युत की खपत होगी।

फिलहाल आप यहां बैठे हुए हैं, आपकी कुल ऊर्जा का 20 फीसदी हिस्सा मस्तिष्क में खर्च हो रहा है। इसका मतलब हुआ कि यह शरीर का सबसे ज्यादा ऊर्जा खपत करने वाला अंग है। मान लीजिए कि आपका मस्तिष्क बड़ा हो गया तो आपको अपनी क्षमता से ज्यादा ऊर्जा देने की जरूरत होगी। दूसरी ओर अगर आप अपने न्यूरॉन का आकार बढ़ाने की बजाय उनकी संख्या बढ़ा लें तो आप उसी शक्ति में बेहतर काम कर सकते हैं। लेकिन अगर आप न्यूरॉन की संख्या बढ़ा लेते हैं तो अभी वे जिस तरह से संयोजित हैं, तब आप संकेतों की स्पष्टता को खोने लगेंगे। कई अति सक्रिय बच्चों में यही होता है, उनके मस्तिष्क में सामान्य बच्चों की अपेक्षा न्यूरॉन की संख्या ज्यादा होती है। वे लोग जबरदस्त मेधावी होते हैं, लेकिन उनमें बिखराव या अस्त-वयस्तता होती है। वे सीधा सोच ही नहीं सकते। उनकी सोच से कोई ठोस चीज निकल ही नहीं सकती, क्योंकि उसमें कोई स्पष्टता ही नहीं होती।

इसलिए न तो मस्तिष्क का आकार बड़ा होना काम करता है और न उसमें न्यूरॉन की बढ़ी हुई संख्या। वैज्ञानिकों का कहना है कि भौतिक नियमों के अनुसार मानव मस्तिष्क के लिए अब आगे और विकास कर पाना संभव नहीं है, लेकिन हम इसका बेहतर इस्तेमाल करना तो सीख ही सकते हैं। फिलाहल इंसान इसका इस्तेमाल बेहद औसत दर्जे से कर रहा है। अगर आप इसका इस्तेमाल विवेकपूर्ण ढंग से करेंगे तो आप अपने मस्तिष्क की क्षमता कई गुना बढ़ा सकते हैं।

योगिक विज्ञान ने बहुत पहले ही कह दिया था कि मानव मेधा और मानव शरीर अब आगे और अधिक विकास नहीं कर सकते, क्योंकि भौतिक नियम अपने चरम पर पहुँच चुके हैं। जिस तरह से धरती सूर्य के चारों तरफ घूमती है और जैसे चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है, उसी अनुपात में मानव शरीर अपनी पूर्ण संभावनाओं तक पहुँच गया है।

कलियुग को जो चीज अलग करती है, वह है सौर मंडल और जिस ‘महा सूर्य’ के आस पास सौर-मंडल परिक्रमा कर रहा है, उसकी दूरी अपने चरम पर है। जितनी इन दोनों के बीच की दूरी बढ़ेगी, उतनी ही धरती पर इंसान की बुद्धिमानी या समझदारी कम होगी।

यह अब आगे और नहीं बढ़ सकता, लेकिन इसी के साथ योगिक विज्ञान यह भी कहता है कि कुछ चीजें करके आप अपने मस्तिष्क को इस्तेमाल करने की अपनी क्षमता बढ़ा सकते हैं। इनमें से एक चीज ब्रह्मचर्य है। इसके जरिए आप इतनी क्षमता और ऊर्जा विकसित कर लेते हैं कि अगर आपके शरीर में 10 या 25 मस्तिष्क भी होते तो यह उन सभी को शक्ति प्रदान कर सकता था। अगर आप चाहें तो अपने भीतर आवश्यक ऊर्जा पैदा कर, कुंडलिनी को जगा कर, अपनी ऊर्जाओं को उनकी पूरी क्षमताओं व ताकत तक लाकर आप अपने आसपास के एक हजार दिमाग तक को शक्ति दे सकते हैं।

कल्कि अवतार कब होगा?

कहा गया है कि कलियुग के अंत में कल्कि का जन्म होगा। दरअसल, समय की प्रकृति ही कुछ ऐसी है कि न तो उसे शुरू करने की जरूरत होती है और न ही खत्म करने की। यह अपने आप आगे बढ़ता रहता है। अगर आपके जीवन में कुछ भी घटित न हो तो भी समय अपने हिसाब से गुजरेगा। सिर्फ यही चीज है, जिसकी आप गांरटी ले सकते हैं। मान लीजिए कि आपको वरदान मिल जाए और आप अमर हो जाएं, फिर भी आप वक्त को गुजरने से नहीं रोक सकते। इसलिए युग को शुरू करने या खत्म करने के लिए किसी की कोई जरूरत नहीं है। जब यह कहा गया कि ’कल्कि सफेद उड़न घोड़े पर आएगा’ तो उसका एक लाक्षणिक मतलब था। जहां कहने का आशय था कि जब युग बदलेगा तो रोशनी आएगी और अंधियारे को नष्ट करेगी।