अध्यात्म की राह में क्या करना सही और क्या गलत - ये प्रश्न सब के मन में होता है। लेकिन सही और गलत के बारे में कोई राय हमें अध्यात्म से दूर कर देगी। कैसे?

आध्यात्मिक प्रक्रिया में एक बहुत बड़ी बाधा यह होती है कि हमने एक खास तरह का नजरिया विकसित कर लिया है। इसी वजह से सारा संघर्ष होता है, नहीं तो आध्यात्मिक होना तो किसी भी इंसान के लिए एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। संघर्ष की मूल वजह यह है कि बड़े होने की प्रक्रिया में दुनिया का सामना करने के लिए हम खुद को ठोस, कठोर या कहें कि अडिय़ल बना लेते हैं। खुद को इतना चतुर, चालाक बना लेते हैं कि अपने आसपास की दुनिया को ठीक से संभाल सकें। अगर बच्चे की भी बात करें तो उन्हें भी घर के भीतर ही माता-पिता और भाई-बहनों के साथ भी अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ता है। अगर आप बहुत ज्यादा लाड़-प्यार में पले हुए बच्चे हैं तो भी आपको स्कूल में या अपने पड़ोस में अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए कुछ न कुछ तो करना ही पड़ता है।

ऐसा लगता है जैसे आध्यात्मिकता कोई आसमान का तारा है, क्योंकि हर शख्स को लगता है कि जो वह सोच रहा है, वही सही है। एक बच्चा चीजों को ऐसी सोच के बगैर देखता है।
अपने वजूद को बचाए रखने की कुदरती चाहत धीरे-धीरे इंसान को उसकी बुद्धि और हालातों के अनुसार उसे एक खास तरीके का बना देती है। उसके मन और भावनाओं का गठन उसे कुछ ऐसे नतीजों पर पहुंचा देता है कि वह सोचने लगता है कि अगर मैं इस तरह से रहूंगा तभी मैं सही ढंग से जीवन गुजार सकता हूं। कुछ लोग अपने आसपास मौजूद उदाहरणों के मुताबिक काफी अच्छे और खुशनुमा हो जाते हैं। वे ऐसा इसलिए हो जाते हैं, क्योंकि उनके लिए जीवन निर्वाह का यही उपकरण है। कुछ लोग इसके लिए आक्रामक और दुष्ट हो जाते हैं, क्योंकि जीवन चलाने के लिए उनका जरिया यही है। यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि वे कैसी चीजों के संपर्क में आए हैं और उनकी अक्ल किस तरह से काम करती है, लेकिन वे जो कुछ भी बन रहे हैं, जैसे भी बन रहे हैं, वह इसीलिए बन रहे हैं ताकि अपने जीवन का निर्वाह कर सकें, अपने अस्तित्व की रक्षा कर सकें।

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किसी का दिमाग ठोस है, कंक्रीट की तरह, इसका मतलब उसके दिमाग में सारी चीजें मिलकर घनीभूत हो गई हैं, जम गई हैं। वह इतना ज्यादा कठोर या अडिय़ल हो चुका है कि वह किसी की सुनेगा ही नहीं, लेकिन वह बना है मिलावट से ही। बिना मिलावट के कंक्रीट बन ही नहीं सकता। तो दुनिया में ऐसे ठोस दिमाग वाले लोग बहुत तरह के काम कर रहे हैं और उनमें से ज्यादातर काम वे खुद के ही खिलाफ  करते हैं, हालांकि वे उन कामों को अपनी भलाई के लिए अच्छा समझकर करते हैं। इस धरती पर ज्यादातर लोग ऐसे काम कर रहे हैं जो खुद उनके ही खिलाफ  हैं। यह सब पूरी जागरूकता या सजगता के साथ नहीं हो रहा है, यह अनभिज्ञता के कारण हो रहा है और इसलिए हो रहा है, क्योंकि दिमाग एक खास तरीके से पूरी तरह अडिय़ल हो चुका है।

जब आप किसी बच्चे से मिलेंगे तो आपको यह देखने को मिलेगा कि कोई ऐसा भी है जिसका दिमाग अडिय़ल नहीं है। वह अब भी अपने दिमाग के साथ खेल रहा है और उसे एक जगह स्थापित करने की कोशिश कर रहा है। यह देखना एक अच्छा मौका है कि कोई तो ऐसा है जिसका दिमाग अडिय़ल नहीं है, कोई तो ऐसा है जिसकी सही या गलत को लेकर कोई विशेष राय नहीं है, जिसकी कोई खास पसंद या नापसंद नहीं है। बच्चा अभी भी अपना रास्ता खोजने की कोशिश कर रहा होता है।

अगर आप अपने आप को देखें तो आपने भी अभी जीवन का मार्ग नहीं खोजा है। आपको भी अपने रास्ते की खोज करनी चाहिए। दुर्भाग्य की बात यह है कि लोगों ने सही और गलत को लेकर अपनी सोच को ठोस रूप दे दिया है, जबकि वे अभी भी रास्ता ही खोज रहे हैं।

जब आप किसी बच्चे से मिलेंगे तो आपको यह देखने को मिलेगा कि कोई ऐसा भी है जिसका दिमाग अडिय़ल नहीं है। वह अब भी अपने दिमाग के साथ खेल रहा है और उसे एक जगह स्थापित करने की कोशिश कर रहा है।
इसी वजह से आध्यात्मिता इतनी कठिन चीज मालूम पड़ती है। ऐसा लगता है जैसे आध्यात्मिकता कोई आसमान का तारा है, क्योंकि हर शख्स को लगता है कि जो वह सोच रहा है, वही सही है। एक बच्चा चीजों को ऐसी सोच के बगैर देखता है। इसलिए कई बार माता-पिता, अध्यापक या किसी और शख्स को बच्चे को देखकर निराशा होने लगती है। पर माता-पिता और उसके शिक्षकों के साथ आमतौर पर ऐसा होता है, क्योंकि वे ही उसके सबसे नजदीक होते हैं और उनकी बच्चे को लेकर अपेक्षाएं भी होती हैं कि बच्चे को कैसा होना चाहिए।

जो दिमाग अडिय़ल नहीं हैं, वह अपने आप में एक जबर्दस्त संभावना हैं। बस यह देखना है कि दिमाग में कोई ऐसी-वैसी मिलावट न हो। तो बच्चों के साथ होना एक बहुत बड़ा वरदान है, जिनके दिमाग में न कोई मिलावट है, न ही वह अभी घनीभूत हो कर ठोस हुआ है। अगर हम खुद को उस स्थिति तक ले जाएं, जहां कोई मिलावट न रह जाए और न ही पहले से स्थापित कोई सोच रह जाए, तो आध्यात्मिक संभावनाएं हमारे बेहद करीब होंगी।

जिसे आप दिमाग या मन कहते हैं, वह क्या है? वह एक ऐसा यंत्र ही तो है जिसे आपने धीरे-धीरे इकठ्ठा किया हुआ है। इसके दोनों पहलू - चाहे भौतिक आयाम हो या दूसरा कोई आयाम, चाहे दिमाग का हार्डवेयर हो या फि र सॉफ्टवेयर, इसे आपने धीरे-धीरे समय के साथ साथ इकठ्ठा किया है।

हम जिसे आध्यात्मिक कहते हैं, वह क्या है? अगर हम इस दिमाग को अडिय़ल नहीं बनाएं तो हम अनुमान लगाते हैं कि यह कुछ और भी हो सकता है। यह बात हर उस शख्स के दिमाग में आती रहती है जिसका दिमाग अभी ठोस नहीं हुआ है। अगर आपने अपने दिमाग को ठोस बना लिया है तो वह यही कहेगा, ‘बस यही सही है, कुछ और नहीं हो सकता’। आप अपने दिमाग को किसी भी चीज को लेकर अडिय़ल बना सकते हैं। आप एक ठोस दिमाग के साथ आकाश की ओर देख सकते हैं और कह सकते हैं कि मुझे रोज ईश्वर के दर्शन होते हैं। जो दिमाग अडिय़ल नहीं है, वह एक खास तरह के भ्रम में हो सकता है, लेकिन जीवन की असली झलक भी वही देख सकता है क्योंकि जब आप उसे अडिय़ल नहीं बनाते तो वह ढीला रहता है। आजकल आध्यात्मिक प्रक्रिया बेहद जटिल महसूस होती है, जबकि यह ऐसा नहीं है। चूंकि आपने अपने दिमाग को इतना ज्यादा जटिल बना लिया है, इसलिए हमें भी आध्यात्मिक प्रक्रिया में तमाम तरह की जटिल चीजों को डालना पड़ता है।