जीवन साथी : चले साथ-साथ पर उलझे नहीं
हम किसी से कोई भी रिश्ता बनाते हैं एक खुशी पाने के लिए, सुख पाने के लिए, अपने विस्तार के लिए। लेकिन फिर क्या हो जाता है कि थोड़े समय बाद वही रिश्ता हमें तकलीफ देने लगता है, बंधन बन जाता है? आज के स्पॉट में सद्गुरु इसी कारण को स्पष्ट कर रहे हैं:
हम किसी से कोई भी रिश्ता बनाते हैं एक खुशी पाने के लिए, सुख पाने के लिए, अपने विस्तार के लिए। लेकिन फिर क्या हो जाता है कि थोड़े समय बाद वही रिश्ता हमें तकलीफ देने लगता है, बंधन बन जाता है? आज के स्पॉट में सद्गुरु इसी कारण को स्पष्ट कर रहे हैं:
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प्रश्न:
सद्गुरु , आपने हमें अपनी पहचान छोड़ने के लिए कहा। क्या इसका मतलब यह है कि हम सब ब्रह्मचारी बन जाएं? ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई इंसान शादीशुदा हो, फिर भी उसकी पहचान अपने जीवनसाथी से न जुड़ी हो?
सद्गुरु :
नहीं, नहीं। मैं इस सवाल का जवाब नहीं दूंगा। आप शादी से बाहर निकलने का रास्ता ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं, आप तलाक चाहते हैं! मैं यह पूछना चाहता हूं कि आप किसी के साथ अच्छी तरह से कैसे रह सकते हैं, अगर आपकी पहचान ही उससे भयानक तरह से जुड़ी हो।
ब्रह्मचर्य का मतलब है कि आप चैतन्य के रास्ते पर हैं। इसका मतलब है कि दुनिया में आपका अपना कोई सोचा हुआ मिशन नहीं है। आप स्रष्टा के साथ तालमेल में हैं। आपने अपने लिए कोई योजना नहीं बनाई है, आप बस यहां मौजूद हैं। आप स्रष्टा की योजना के अनुरूप चलना चाहते हैं। विकासवाद का सिद्धांत कहता है कि आप सब पहले लंगूर थे। जब आप लंगूर थे, तो क्या आपने बैठकर इस बात की योजना बनाई थी कि इंसान कैसे बनें, ईशा योग केंद्र तक कैसे पहुंचें, उसके आगे का विकास कैसे करें? आपने इन सब की योजनाएं नहीं बनाई थीं। आप स्रष्टा की योजना के अनुसार चलते रहे। ब्रह्मचारी होने का मतलब है कि उसने समझ लिया है कि उसकी अपनी योजनाएं उसे किसी लक्ष्य तक नहीं पहुंचाने वाली। वह बस उसे गोल-गोल घुमा सकती हैं। वह सोचता है, ‘अगर स्रष्टा एक लंगूर को मुझमें बदल सकता है, तो उसकी योजनाओं के मुताबिक चलने पर पक्का वह मुझे कहीं और पहुंचा देगा।’ एक ब्रह्मचारी बस उसी भरोसे पर जीता है। वह बस उन चीजों को पूर्णता तक ले जाने की कोशिश करता है, जो उसे या आपको मिली हैं।
मेरे ख्याल से इससे फर्क नहीं पड़ता कि आपके जीवन में आपकी स्थिति क्या है, जीने का यही तरीका बेहतर है। क्योंकि आपकी अपनी बुद्धि आपके जीवन को एक नए आयाम में ले लाने के लिए काफी नहीं है। आपकी बुद्धि इसी आयाम में जीवन-यापन के लिए काफी हो सकती है, मगर इस आयाम से परे जाने के लिए वह काफी नहीं है। अगर इस आयाम के परे जाना है, तो आपको उस बुद्धि के अनुसार चलना होगा जो इस आयाम और उस आयाम का आधार है। अगर आप खुद को उस बुद्धि के हाथों में सौंप देते हैं, तो आप प्रवाहित होने लगते हैं, बहने लगते हैं। वह कहां है? वह हर कहीं है। बाहर, भीतर, एक ही चीज है। इस आयाम में भी आप अपनी सारी गतिविधि खुद संचालित नहीं कर सकते, मसलन आप अपनी किडनी की गतिविधि को संचालित नहीं कर सकते। वह बहुत पेचीदा है। इस दिमाग के लिए एक जरा सी किडनी भी काफी जटिल है। तो जब कोई इंसान अपनी इस स्थिति को समझ लेता है कि गोल-गोल घूमने और अपनी मर्जी से चीजें करने का कोई लाभ नहीं है, तो वह ब्रह्मचारी बन जाता है।
आपकी शादी किसी पुरुष या महिला से हुई होगी। कुछ लोग अपने कॅरियर, दौलत, घर या कार से शादी कर लेते हैं। हर कोई इंसानों से ही शादी नहीं करता। अलग-अलग लोग अलग-अलग चीजों से शादीशुदा होते हैं। हो सकता है कि ब्रह्मचारी धीरे-धीरे योग केंद्र से विवाहित हो जाएं। मेरा मतलब भौतिक व्यवस्था से है, हर कोई कुछ न कुछ व्यवस्था करता है। ब्रह्मचारियों ने भी यहां कुछ व्यवस्था की है। वे बिना किसी व्यवस्था के नहीं हैं, बस उनकी व्यवस्था ज्यादा सरल है।
आपको समझना चाहिए कि आपकी शादी, आपका कॅरियर, आपकी दौलत एक व्यवस्था है। व्यवस्था हमारे जीवन को बेहतर और सुविधाजनक बनाने के लिए होती है, उसे सीमित और नष्ट करने के लिए नहीं। अगर हम इतना जानते हैं तो हमने जो भी व्यवस्था चुनी है, वह ठीक है।