प्रश्न: अंतरात्मा या अंतःकरण क्या है? क्या हमें जीवन में उसके अनुसार चलना चाहिए?

सद्‌गुरु:

अंतःकरण वह है, जो उस समय दुखता है, जब बाकी सब कुछ बहुत बढ़िया महसूस कर रहा होता है! आप जिस बारे में अपराध बोध महसूस करते हैं या जिसे सही या गलत मानते हैं, वह मुख्य रूप से समाज से प्रेरित होता है। वह बोध दरअसल सामाजिक नियमों ने आपके अंदर डाले हैं। नैतिकता समाज से जुड़ी होती है और वह लोगों के अलग-अलग समूहों में अलग-अलग होती है। इतिहास में अलग-अलग कालों की और भूगोल में अलग-अलग स्थानों की अलग-अलग नैतिकताएं होती हैं।

नैतिकता के साथ आपने सिर्फ अपने आस-पास के लोगों के सामने दिखावा करना सीखा है। आपके भीतर हर तरह की निरर्थक बातें अब भी चलती रहती हैं। अगर आपकी मानवता पूर्ण विकसित है, तो आपको नैतिकता की जरूरत नहीं होगी। आप जैसे भी होंगे, ठीक होंगे।
जिसे आपकी दादी पूरी तरह अनैतिक मानती थीं, वह आज आप पूरी बेशर्मी से करते हैं। इसलिए नैतिकता हमेशा समय, व्यक्ति और स्थितियों के अनुसार बदलती है। लेकिन आपकी मानवता का अस्तित्व के स्तर पर महत्व है। अगर आपकी जिन्दगी के हर पल में आपकी मानवता जीवित और सक्रिय होगी, तो किसी को आपको यह बताने की जरूरत नहीं है कि आपको ऐसा करना चाहिए या वैसा करना चाहिए। लोग अपनी मानवता को बनाए रखने में विफल रहे, इसीलिए समाज ने नैतिकता से इसका हल निकालने की कोशिश की। लेकिन हर किसी को हर तरह की नैतिकता सिखाए जाने के बावजूद हम दुनिया को ठीक करने में सफल नहीं हुए हैं। नैतिकता के साथ आपने सिर्फ अपने आस-पास के लोगों के सामने दिखावा करना सीखा है। आपके भीतर हर तरह की निरर्थक बातें अब भी चलती रहती हैं। अगर आपकी मानवता पूर्ण विकसित है, तो आपको नैतिकता की जरूरत नहीं होगी। आप जैसे भी होंगे, ठीक होंगे।

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चेतनता बनाम अंतरात्मा या अंतःकरण

नैतिकता से आपके अंदर तर्क जाग्रत होता है, चेतनता नहीं। अगर आपकी मानवता पूर्ण विकसित है और हर समय सक्रिय है, तो आपको किसी नैतिकता की जरूरत नहीं है। नैतिकता दरअसल मानवता की नकल है। नैतिकता समाज में कुछ समस्याओं को ठीक कर सकती है लेकिन वह मनुष्य की अंदरूनी प्रकृति को पूरी तरह तहस-नहस कर देगी।

जब आप अपने भीतर अपनी मानवता को उमड़ने देंगे, तभी दिव्यता फल-फूल पाएगी।
मानवता भी सामाजिक व्यवस्था को लाती है लेकिन एक सहज रूप में बिना किसी जबरदस्ती के। वह मनुष्य को खूबसूरत बना देती है, जो सबसे महत्वपूर्ण है। अगर आपके भीतर मानवता फलेगी-फूलेगी और उमड़ेगी, तो अगले कदम पर स्वाभाविक रूप से दिव्यता मिलेगी। नैतिकता से कभी दिव्यता नहीं आई। वह अपराध बोध, शर्म और भय लेकर आती है क्योंकि कोई भी उस तरह की नैतिकताओं पर खरा नहीं उतर सकता, जो हमारे लिए निर्धारित की गई हैं। उन चीजों की एक सूची बनाएं जिसे दुनिया के प्रमुख धर्म पाप कहते हैं। आप देखेंगे कि जीवित रहना ही एक पाप है। आप जो भी करते हैं, वह पाप है। आपका जन्म ही एक पाप है। चूंकि जीवन की प्रक्रिया को ही पाप समझा गया है, आप हमेशा अपराधी और भयभीत महसूस करेंगे।

भारत की संस्कृति नैतिकता रहित है। यहां नीतियां पत्थर पर नहीं खुदी हैं कि “आपको यह करना है और यह नहीं करना है”। हम कभी नैतिकता पर निर्भर नहीं रहे क्योंकि हमने ऐसे इंसान बनाए जो बड़े पैमाने पर मानवता को प्रेरित करने में समर्थ हैं। इसलिए किसी पीढ़ी में नैतिकता या नीति-संहिता की जरूरत नहीं पड़ी।

मानवता की तीन कुंजियां

इस मानवता को प्रेरित करने के लिए, हमने तीन बुनियादी तरीके तय किए। एक है, सृष्टि के स्रोत के प्रति शुद्ध प्रेम की भावना। यह हमारी संस्कृति में असंख्य रूपों में अभिव्यक्त होती है। जब हम कोई शहर या नगर बसाना चाहते थे, तो सबसे पहले हम एक बड़ा मंदिर बनाते थे। जो लोग यह मंदिर बनाते थे, वे खुद झोंपड़ियों में रहते थे, लेकिन मंदिर उन्होंने बहुत ही भव्य बनाए।

तीन बुनियादी तरीके: सृष्टि के स्रोत के प्रति शुद्ध प्रेम की भावना, अपने आस-पास के सभी जीवन रूपों के लिए करुणा और अपने प्रति उदासीनता।
खासकर दक्षिण भारत में ऐसा हुआ। दूसरे दो बुनियादी तरीके हैं, अपने आस-पास के सभी जीवन रूपों के लिए करुणा और अपने प्रति उदासीनता। अगर आप इन तीन चीजों पर ध्यान देंगे, तो आपकी मानवता हमेशा सक्रिय रहेगी। वरना आपकी मानवता निष्क्रिय हो जाएगी और आपको कुछ नैतिकताओं के साथ एक नकली मनुष्य की तरह दिखावा करना होगा। तब आपके भीतर अंतरात्मा या अंतःकरण विकसित हो जाएगा।