फूलझड़ियां रोज फूटें; बाहर नहीं आपके भीतर
इस बार के स्पॉट में दिवाली के अवसर अपनी शुभकामनाओं व आशीर्वाद के साथ, सद्गुरु दिवाली के महत्व पर भी प्रकाश डाल रहे हैं –
इस बार के स्पॉट में दिवाली के अवसर अपनी शुभकामनाओं व आशीर्वाद के साथ, सद्गुरु दिवाली के महत्व पर भी प्रकाश डाल रहे हैं –
दिवाली पर्व के पीछे कई अलग-अलग सांस्कृतिक कारण हैं, लेकिन ऐतिहासिक तौर पर इसे नरक चतुर्दशी कहते हैं, क्योंकि इस दिन कृष्ण ने नरकासुर नाम के एक बेहद क्रूर और अत्याचारी राजा का वध किया था। इसी उपलक्ष्य में यह पर्व इतने धूम-धाम से मनाया जाता है। यह जरूरी नहीं कि बुराई हमेशा राक्षस या दानव के रूप में सामने आए। एक इंसान के जीवन में मायूसी, अवसाद और कुंठा जैसे भाव किसी भी अनदेखे राक्षस या शैतान से ज्यादा खतरनाक हो सकते हैं। दिवाली अपने जीवन से इन सारी बुराइओं को खत्म करने का प्रतीक है।
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यह त्योहार कई मायनों में पावन माना गया है। कहते हैं कि अगर इस दिन कोई व्यक्ति धन की आकांक्षा करे तो उसके यहां लक्ष्मी आती है। अगर व्यक्ति स्वास्थ्य की कामना करे तो उसके यहां शक्ति आती है। अगर कोई ज्ञान या विद्या की कामना करे तो उसके यहां सरस्वती का आगमन होता है। ये सारी कहावतें या मान्यताएं बताती हैं कि इससे व्यक्ति का कल्याण होता है।
लोगों के बीच इस संस्कृति को वापस लाने के लिए ईशा साल में चार महत्वपूर्ण त्योहारों का आयोजन करती है, ये त्योहार हैं - मकर संक्राति, महाशिवरात्रि, दशहरा और गुरु पूर्णिमा। अगर हम लोग यह नहीं करेंगे तो अगली पीढ़ी के आने तक वे लोग भल चुके होंगे कि त्योहार क्या होते हैं। अगली पीढ़ी बिना किसी का ख्याल किए बस कमाने, खाने और सोने में अपनी सारी जिंदगी बिता देगी। भारतीय संस्कृति में इन तमाम पहुलओं के शामिल करने के पीछे किसी भी व्यक्ति को कई तरीकों से उत्साहित और सक्रिय रखने की सोच काम करती थी। इसके पीछे सोच थी कि हम लोग अपने पूरे जीवन को एक उत्सव में बदल दें।
दिवाली के आयोजन के पीछे की सोच भी यही है कि आपके जीवन में उत्सव और उल्लास के पहलू को सामने लाना है, इसलिए इस मौके पर आतिशबाजी या पटाखे छोड़े जाते हैं, ताकि आपके जीवन में कहीं से कुछ उत्साह या उमंग भर सके। इस दिन का मतलब सिर्फ इतना भर नहीं है कि इस एक दिन आप मजे करें या इसे मनाएं और गुजार दें। अगर आप एक सीली हुई फुलझड़ी के समान हैं तो आपको भड़काने के लिए रोज एक बाहर से धमाका चाहिए। वर्ना तो उत्साह की ये फुलझड़ियां रोज हमारे भीतर फूटनी चाहिए। अगर हम सहज भाव बैठ जाएं तो हमारी जीवन उर्जा, दिल, दिमाग, व शरीर एक जीवंत पटाखों की तरह से फूटना चाहिए।