कृष्ण एक प्रेमी थे या एक योद्धा? वे युद्ध चाहते थे या युद्ध से भागते थे? उनके व्यक्तित्व को लेकर ऐसी विरोधी बातें मन में आना बेहद स्वाभाविक है। तो आइए जानते हैं उनके व्यक्तित्व के इस विरोधाभास का राज:

कृष्ण परिस्थितियों के हिसाब से कर्म की बात करते हैं। कुछ लोगों के साथ उनका व्यवहार करुणा से भरा होता था, तो कुछ लोगों के साथ वह बड़ी कठोरता के साथ पेश आते थे। जहां उन्हें किसी को जान से मारना जरूरी लगा, वहां उन्होंने मारा भी, और जहां किसी की देखभाल करने की जरूरत थी, वहां उन्होंने देखभाल भी की।

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ऐसा नहीं है कि दूसरे आत्मज्ञानी लोगों को उनसे कोई कम अंर्तज्ञान था, लेकिन सामाजिक और व्यक्तिगत कारणों से हर किसी के जीवन में ऐसे अवसर और संभावनाएं नहीं थीं कि वे कृष्ण की तरह बहुआयामी हो पाते।
दरअसल, उनकी कोई एक नीति नहीं थी। वह तो बस जीवन थे। जब जिस तरह से जीवन के साथ पेश आने की जरूरत पड़ी, वे उसके साथ उसी तरह पेश आए। वे शांति, प्रेम और करुणा के साकार रूप थे। उन्होंने शांति स्थापित करने की पूरी कोशिश की, लेकिन जब लड़ाई के मैदान में उतरना पड़ा तो वे एक शूरवीर योद्धा की तरह उतरे। जब राजाओं के दरबार में जाते, तो वहां वे एक कुशल राजनेता होते थे। जब अपनी प्रेमिका के साथ होते, तो वे एक शानदार प्रेमी होते थे। बच्चों के साथ होते, तो पूरी तरह से बच्चा बन जाते थे। चाहे जैसी परिस्थिति हो, चाहे जैसे लोग हों, वे हमेशा उनके साथ सहज थे। क्योंकि जीवन का एक भी पहलू उनसे अछूता नहीं था। जीवन जिस रूप में भी उनके सामने आता, उसी रूप में वे उसे जीने को तैयार रहते, और उनकी यही बात उन्हें बेहद खास बनाती है। ऐसा नहीं है कि दूसरे आत्मज्ञानी लोगों को उनसे कोई कम अंर्तज्ञान था, लेकिन सामाजिक और व्यक्तिगत कारणों से हर किसी के जीवन में ऐसे अवसर और संभावनाएं नहीं थीं कि वे कृष्ण की तरह बहुआयामी हो पाते।

युद्ध के मैदान में जाने से पहले अंतिम पल तक उनकी यही कोशिश होती थी कि युद्ध को कैसे टाला जाए। लेकिन जब यह तय हो जाता कि अब युद्ध को नहीं टाला जा सकता, तो वह मुस्कुराते हुए युद्ध के मैदान में जाते और लोगों को मौत के घाट उतारते थे। उनके आसपास के लोग अकसर उनसे पूछते थे कि वे इतनी निर्दयता का काम मुस्कुराते हुए क्यों करते हैं। जब लोग उन्हें गालियां देते, उन्हें तरह-तरह की कठिनाइयों में डाल देते, तब भी वह मुस्कुराते रहते थे। एक बार जरासंध अपनी बड़ी भारी सेना लेकर मथुरा आया। वह कृष्ण और बलराम को मार डालना चाहता था, क्योंकि उन्होंने उसके दामाद कंस की हत्या कर दी थी। कृष्ण और बलराम जानते थे कि उन्हें मारने की खातिर जरासंध मथुरा नगरी की घेराबंदी करके सारे लोगों को यातनाएं देगा, तो लोगों की जान बचाने के लिए उन्होंने अपने परिवार और महल को छोडऩे का फैसला कर लिया और किसी निर्जन स्थान पर चले गए।

इस दौरान उन्हें तरह-तरह के शारीरिक कष्ट झेलने पड़े। कृष्ण ने इस सब को बड़ी सहजता से लिया। सब कुछ उनके लिए सीखने की एक प्रक्रिया थी। उन्होंने वनों और पर्वतों का भरपूर आनंद लिया। उन्होंने बलराम को भी सिखाया कि जंगल में कैसे रहा जाता है। बलराम थोड़े खीज गए और बोले, 'खाना, मदिरा, औरतें, यहां जंगल में कुछ भी तो नहीं है। आखिर हम क्यों इतने कष्ट उठा रहे हैं? जबकि तुम दावा करते हो कि तुम भगवान हो। इस तरह की कठोर परिस्थितियां हमारे सामने क्यों आती रहती हैं?'

कृष्ण ने कहा, 'ऐसी चीजें हमारे साथ बस इसलिए हो रही हैं, क्योंकि हम लोग जीवन को तीव्रता और गहराई में जी रहे हैं। वो सब कुछ, जिसमें जीवन है, हमारे साथ घटित होगा। दूसरों के साथ यह सब नहीं होगा। देखिए, उनका जीवन कितना नीरस है। हमें अपनी जान बचाने के लिए जंगलों में भागना पड़ता है, हमें अपने भोजन के लिए संघर्ष करना पड़ता है। इसके लिए हमें यहां-वहां जाना पड़ता है, लेकिन देखिए हमारा जीवन कितना जोश से भरा हुआ है।

बलराम थोड़े खीज गए और बोले, 'खाना, मदिरा, औरतें, यहां जंगल में कुछ भी तो नहीं है। आखिर हम क्यों इतने कष्ट उठा रहे हैं? जबकि तुम दावा करते हो कि तुम भगवान हो। इस तरह की कठोर परिस्थितियां हमारे सामने क्यों आती रहती हैं?'
यह सब हमारे साथ इसलिए हो रहा है, क्योंकि इस तरह का जोशपूर्ण जीवन जीने का चयन हमने किया है। अभी तो बहुत कुछ होना बाकी है। आप इन सब चीजों से परेशान न हों।' इस तरह मुस्कुराते हुए उन्होंने उन कठोर परिस्थितियों का सामना किया। यहां तक कि जब कृष्ण एक प्रसिद्ध राजा बन गए, तब भी लोग उन्हें भला-बुरा बोल देते थे। लोगों की गालियों की परवाह न करते हुए वे मुस्कुराते हुए आगे बढ़ते रहे। उनके नजदीकी लोग ऐसे में तलवार खींचने को तैयार हो जाते थे, लेकिन कृष्ण उनसे यही कहते कि 'चिंता मत कीजिए, सब ठीक है। अगर वे ये सब बातें नहीं कहेंगे तो जीवन बड़ा नीरस हो जाएगा।' हर तरह के लोगों ने उन्हें खूब भला-बुरा कहा, लेकिन उन्होंने किसी की परवाह नहीं की और मुस्कुराते हुए अपना काम करते गए। उनके जीवन जीने के तरीके में किसी और गुरु के मुकाबले कहीं ज्यादा विविधता थी। जीवन को लेकर उनकी समझ और उनकी अभिव्यक्ति में भी किसी अन्य गुरु के मुकाबले कहीं ज्यादा विविधता थी। ऐसा इसलिए था, क्योंकि उन्होंने बहुआयामी जीवन जीने का चुनाव किया था। ऐसा भी नहीं था कि उनके पीछे हजारों की तादाद में शिष्य चल रहे हों। उन्होंने तो बस अपना जीवन जिया। उनका जीवन स्वयं में एक शिक्षा थी। उन्हें कोई संगठन या संघ बनाने की जरूरत नहीं पड़ी। यहां तक कि उन्होंने राजा बनने से भी इनकार कर दिया। क्योंकि तब उन्हें ऐसे तमाम काम करने पड़ जाते, जो वे नहीं करना चाहते थे।