सत्यप्रिय:  सद्‌गुरु, वैसे तो मैं जानता हूं कि मैं ही अपनी मदद कर सकता हूं। इस मामले में मेरे और आपके सिवा मेरी कोई मदद नहीं कर सकता। क्या आप मेरी खोज में मेरे साथ होंगे और मेरा मार्गदर्शन करेंगे? मैंने यहां कई लोगों से बात की और उन्होंने पूरे आत्मविश्वास के साथ बताया कि आप उनके साथ हैं। शायद मैं पत्थर हूं जो मैं आपके वास्तविक रूप में आपको महसूस नहीं कर पाता। मेरा मतलब है कि आप या ध्यानलिंग... को तो मुझे किसी और आयाम में ले जाना चाहिए। समय हर पल फिसलता जा रहा है और मुझे समझ नहीं आ रहा कि मुझे क्या करना चाहिए? हालांकि मैं अपने भीतर कुछ तरक्की महसूस करता हूं, लेकिन यह वास्तव में बहुत धीमी है। मैं बहुत ही मूढ़ और अनजान हूं।

यह आश्रम जैसे काम करता है, इस बात को लेकर यहां मौजूद हर आदमी को शिकायत है। यह ठीक है, क्योंकि इसका मतलब है कि यह व्यवस्था काम कर रही है।

 सद्‌गुरु: लोगों को मनचाही चीज इसलिए नहीं मिलती कि वे उसकी कामना करते हैं, बल्कि इसलिए मिलती है कि वे अपनी जिंदगी के साथ सही चीजें करते हैं। कोई भी व्यक्ति अपनी जिंदगी में जो भी चाहता है, चाहे वो आध्यात्मिक हो या भौतिक, उसे वो चीज सिर्फ इसलिए नहीं मिल जाती क्योंकि वह उसकी कामना करता है, बल्कि इसलिए मिलती है कि वह उसे पाने के लिए सही दिशा में काम करता है। इच्छाएं तो सिर्फ दिशा तय करती हैं। अगर मुझे पहाड़ पर चढऩा है तो मुझे उसी रास्ते पर चलना होगा, किसी और रास्ते पर चलकर मैं पहाड़ नहीं चढ़ सकता। इच्छाएं सिर्फ आपको सही दिशा दे सकती हैं, लेकिन ये आपको वहां पहुंचा नहीं सकतीं।

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.

रॉकेट के काम करने के तरीके को समझें

रॉकेट कैसे छोड़े जाते हैं, आपने तो देखा होगा। छोड़े जाने से पहले वे ढेर सारा शोर करते हैं, गर्मी पैदा करते हैं – पर कहीं नहीं जाते। इस शोर करने में ही वे सैकड़ों टन ईंधन फूंक देते हैं। उसके बाद थोड़ी सी गति होती है और फिर देखते ही देखते वह उडऩछू हो जाता है। लेकिन जब वे तैयारी कर रहे होते हैं तो इस दौरान उसमें ईंधन जल रहा होता है, मान लीजिए हजारों गैलन तेल हर घंटे फुंक रहा होता है। वास्तव में यह इससे कहीं ज्यादा होता है, मैं सिर्फ एक उदाहरण दे रहा हूं। अगर एक हजार गैलन की अपेक्षा इसमें नौ सौ गैलन ईंधन डाला जाए तो यह यूं ही जल कर खत्म हो जाएगा। जब एक हजार गैलन तक ईंधन जलाना होता है तो वे इसकी दर दो हजार गैलन ईंधन कर देते हैं। जब दो हजार गैलन ईंधन जल रहा होता है तो वह उसकी दर दो हजार गैलन से ज्यादा कर देंगे, क्योंकि तभी वह छूटेगा। दरअसल, किसी भी प्रक्रिया में एक चीज जड़ता होती है और दूसरी गति।

जड़ता आती है पुराने बोझ या वजन की वजह से। लेकिन जब आप पुराने बोझ से ज्यादा जोर लगा देते हैं तो उसमें गति होने लगती है। एक बार जब गति शुरू हो जाती है तो फिर उसमें वेग आने लगता है। जब वजन में गति आ जाती है तो विज्ञान की भाषा में इसे संवेग कहते हैं। यह संवेग अपने आप में एक तोहफा है। अब यह पुराना बोझ एक तरह से मदद करने लगता है, क्योंकि अगर वजन नहीं होता तो संवेग भी नहीं होता। तो जो चीज एक समस्या थी, वही अब सहायक हो गई है।

मुझे गति पकड़ने में पच्चीस साल लगे

मैं जब अपनी जिंदगी की ओर मुडक़र देखता हूं तो मुझे लगभग ढाई या तीन महीने की उम्र से अपनी जिंदगी का हर दिन याद है। उसी समय से हर चीज मुझे बताती थी कि मुझे क्या करना चाहिए, लेकिन मैं इतना स्मार्ट था कि सुनता ही नहीं था। मेरे विचार और तर्क खुद को इतना स्मार्ट समझते थे कि ये किसी की सुनना ही नहीं चाहते थे। इसलिए चीजें पच्चीस सालों तक टलती गईं। इस दौरान मेरे साथ जो भी घटित हुआ उसे मैंने अपने तर्कों और दलीलों के खांचे में बैठाने की कोशिश की और जो चीजें मेरे खांचे में नहीं बैठीं, उन्हें मैंने खारिज कर दिया। उस समय मेरे साथ कई चीजें घटित हुईं। आज जब मैं मुड़कर उनकी तरफ देखता हूं तो मुझे समझ में आता है कि तब हर चीज मुझे एक ही दिशा में ढकेलती थी, लेकिन मैं उन्हें अपने तर्कों की कसौटी पर जांचने की कोशिश करता था। जब वे उन कसौटियों पर खरी नहीं उतरती थीं तो मैं उन्हें ‘यह अच्छी नहीं, वह अच्छी नहीं’ कह कर खारिज कर दिया करता था।

  तो आप जान लें कि एक रॉकेट की तरह जब यह जले तो इसे ठंडा न होने दें। इसे और जलने दें। 

पच्चीस साल लग गए मेरे भीतर कुछ गति आने में, एक संवेग हासिल करने में। और वह संवेग ऐसा था जिसने मेरे सारे विचारों और तर्कों को तहस-नहस कर दिया। फिर मेरे तर्क मुझे बेहद तुच्छ और बेवकूफीपूर्ण लगने लगे। आज मेरे तर्क इन खांचों में बिल्कुल फिट बैठते हैं। अब मैं जानता हूं कि आपकी चेतनता आपके तर्कों के खांचे में कभी फिट नहीं बैठ सकती, लेकिन आपके तर्क आपकी चेतनता में समा सकते हैं। आपकी चेतना में आपके तर्कों की एक छोटी सी जगह है। आपके तर्कों के खाचें में आपकी चेतनता नहीं समा सकती। अगर आप ऐसा करने की कोशिश करेंगे तो आपकी चेतनता कब्ज़ से पीडि़त हो जाएगी। अगर आपको कब्ज़ हो जाएगा तो आपके भीतर मल ही मल होगा। जी-हां, आप शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक किसी भी रूप से कब्ज़-पीडि़त हो सकते हैं। और कब्ज़ किसी रूप में हो, आप गंदगी से भरे रहेंगे। और तब सारी चीजें खराब हो जाएंगी, यह तय है।

आश्रम की गतिविधियों का उद्देश्य

आश्रम में कुछ लोग ऐसे होंगे जो बिल्कुल गुलामों के मालिक जैसे लगेंगे। वे आपको लगातार बताते रहते होंगे कि आपको क्या करना चाहिए। अगर आप उन्हें देखेंगे तो ऐसा लगेगा कि उन्हें खुद ही नहीं पता कि वे क्या कर रहे हैं, फिर भी वे हरदम आपको हिदायत देते रहेंगे। जब ये लोग आपसे कुछ कहते हैं तो आप सहज रूप से बस उस पर अमल कर लें।  ऐसा क्यों? नहीं, आप सही हैं,  लेकिन वे कुछ ख़ास तरह के लोग हैं।

आज आप आश्रम की रसोई में कुछ कर रहे हैं, कल वे आपको अभिलेखागार (आर्काइव्स) में लगा देंगे। अभिलेखागार में आप बेहतरीन काम कर रहे होंगे, लेकिन वे आपको वहां से निकाल कर टॉयलेट की सफाई में लगा देंगे। ऐसा लगता है कि वह आपके साथ बदले की भावना से काम करवा रहे हैं। हालांकि वो ये सब किसी बदले की भावना से नहीं करवा रहे, बल्कि आश्रम की रचना ही इस मकसद से हुई है कि आपको कहीं एक जगह बसने या टिकने न दिया जाए।

तो मैं चाहता हूं कि आप आश्रम की व्यवस्था के पीछे छिपे मतलब को समझें और इस जगह का ज्यादा से ज्यादा लाभ उठाएं। यह आश्रम जैसे काम करता है, इस बात को लेकर यहां मौजूद हर आदमी को शिकायत है। यह ठीक है, क्योंकि इसका मतलब है कि यह व्यवस्था काम कर रही है। अगर हर व्यक्ति अपनी जगह स्थिर हो जाता और अपने काम में खुश रहता तो इसका मतलब था कि हमने जिस मकसद से इस व्यवस्था को तैयार किया था, वह काम नहीं कर रही। इसलिए चिंता की कोई बात नही। समय आपके हाथ में है।

आग को भड़कने दें

जानने की आग में जलना अच्छा है, क्योंकि अगर आप में जानने की आग नहीं होगी तो आप आगे नहीं बढ़ेंगे। तो आप जान लें कि एक रॉकेट की तरह जब यह जले तो इसे ठंडा न होने दें। इसे और जलने दें। इसे आपको उस सीमा तक जलाना होगा, जहां वो बल पैदा हो सके, जो आपके पुराने बोझों से ज्यादा हो और तभी उसमें गति आएगी। और जब गति आएगी तो आपके बोझ संवेग पैदा करेंगे। अगर आपमें पर्याप्त संवेग पैदा हो गया तो यह किसी भी बाधा को पार कर जाएगा। इसे रोकिए मत, इसे होने दीजिए। यह उस आग को बुझाने का नहीं, बल्कि इसे और भड़काने, और ज्यादा भड़काने का वक्त है। अब यह मत कहिएगा कि ‘मैं पहले ही जल रहा हूं।’ अगर आप जल रहे हैं तो यह अच्छी बात है, क्योंकि अगर आप जलेंगे नहीं तो आगे कैसे बढ़ेंगे? क्या आप किसी ऐसी चीज को जानते हैं, जो बिना जले आगे बढ़ रही हो। जो भी चीज आगे बढ़ रही है, वह जल रही है। इस भौतिक सृष्टि में जो भी चीज आगे बढ़ रही है, वो किसी न किसी रूप में जल रही है। अगर ऐसा न होता तो वह आगे ही नहीं बढ़ती।