अभिमान का कहर
इस हफ्ते के स्पॉट में सद्गुरु ने लिखी है एक कविता – अभिमान का कहर
"अभिमान का कहर"
क्या है सबसे बड़ी मूर्खता
क्रोध, घृणा, लोभ या अभिमान?
बेशक क्रोध जलाता है तुम्हें और
बनता है कारण दूसरों की पीड़ा व मौत का।
घृणा प्रतिनिधि है क्रोध की
अधिक प्रत्यक्ष व विनाशक
किन्तु है संतान क्रोध की।
ऐसा प्रतीत होता है
कि नहीं लेना देना कुछ
लोभ का इन दोनों से
पर यही उपजाता है क्रोध व घृणा
उन सबके प्रति
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जो आड़े आते हैं,
लोभ की उस ज्वाला के
जो नहीं होती तृप्त कभी
क्योंकि है नहीं कुछ ऐसा
जो लोभ के उदर को भर सके।
अभिमान यद्यपि दिखता है दिलकश
और बनाता है इंसान को ढीठ, पर
अहम भूमिका निभाता है नष्ट करने में
मानवता की सभी संभावनाओं को।
यह अभिमान ही है
जो चढ़ा देता है इंसान को
उस मंच पर, जहां
छली जाती है हकीकत
जो बना देता है
झूठ को भी यथार्थ
असत्य को भी सत्य।
क्रोध, घृणा व लोभ को
चाहिए अभिमान का एक रंगमंच
जहां खेल सकें ये अपना नाटक।
अभिमान है कांटों का एक ताज
जिसको पहनकर पीड़ा भी लगती है सुखद
अभिमान माया है, जीवन का भ्रम है
अज्ञान का शुद्धिकरण
नहीं ले जाता आत्मज्ञान की शरण में