इस बार के स्पॉट में सद्‌गुरु आदियोगी के विशाल चेहरों की स्थापना की योजना के बारे में बता रहे हैं। ईशा केंद्र के साथ-साथ भारत के अलग-अलग हिस्सों में 112 फुट ऊंची आदियोगी की प्रतिमा की स्थापना की योजना है।

सद्‌गुरुसद्‌गुरु : हम लोग ईशा आश्रम के ठीक सामने 112 फीट ऊंची आदियोगी की एक विशालकाय प्रतिमा स्थापित करने जा रहे हैं। हमने इसकी ऊंचाई 112 फीट इसलिए रखी, क्योंकि आदियोगी ने दुनिया को अपनी परम प्रकृति तक पहुँचने के 112 तरीके दिए। सवाल उठ सकता है कि क्या 196 से 112 बेहतर है? दरअसल, इसका यह मतलब नहीं कि आप योग के पूरे 112 पहलुओं को जानें। आपको बस किसी एक तरीके को जानने की जरूरत है। पतंजलि ने योग के आठ अंगों को दिया, जिसे हम अष्टांग योग के नाम से जानते हैं। इसमें 196 से ज्यादा सूत्र हैं। लेकिन ऐसा नहीं हो सकता कि आप इस अष्टांग में से एक अंग लेकर उसी का अभ्यास करें। योग करने के लिए आपको इसके सभी आठों अंगों का पालन करना होगा। दो अंगों (पैरों) से चलने पर आप यह जानते हैं कि आपके जीवन में कितनी तरह की समस्याएं आती हैं। अगर मैं आपसे कहूं कि आप अपने हाथों और पांवों की मदद से चार अंगों से चल कर दिखाएं तो आपकी दिक्कतें कहीं ज्यादा बढ़ जाएंगी। इस तरह से इनमें संतुलन को बनाए रखने की एक दिक्कत है, जबकि आदियोगी ने अपने द्वारा सिखाई विद्या इस तरह से नहीं दी। आदि योगी शिव ने 112 अंग नहीं बताए, बल्कि इसकी 112 अलग-अलग विधाएं बताईं, जिसमें से आप कोई भी एक चुन सकते हैं। एक ही विधा अपने आप में पर्याप्त है, आपको इसके 112 तरीकों को करने की जरूरत नहीं है। एक ही काफी है।

आदियोगी की प्रतिमा स्थापित होने के बाद इस धरती पर सबसे बड़ा चेहरा होगा। हांलाकि अमेरिका के साउथ डकोटा के माउंट रशमोर नैशनल मेमोरियल स्थित चेहरे भी बहुत विशालकाय हैं, लेकिन वे पहाड़ों में उकेरे गए ज्यादातर अस्पष्ट या कहें एब्सट्रैक्ट चेहरे हैं। वो चेहरे आदियोगी की तरह पूरे व स्पष्ट नहीं हैं। हम चाहते हैं कि यह चेहरा प्रेरणा की एक मूर्ति बन जाए। यह न तो कोई देवता है, और न ही यहां किसी तरह का मंदिर है, बल्कि लोगों के लिए यह एक प्रेरणा का स्रोत है, प्रेरणा की प्रतिमूर्ति है।

इसके साथ ही लोगों को कुछ सहज साधना सीख सकेंगे, जिसका लोग घर पर ही अभ्यास कर सकते हैं। एक ऐसा मंदिर, जो प्रार्थना करने के लिए नहीं होगा, बल्कि वह अपनी प्रभावशाली मौजूदगी का अहसास कराएगा। इसका मतलब है कि आपको ऊपर बैठे किसी ईश्वर को नहीं ढूंढना होगा। आपको इस चेहरे को देखने के लिए ऊपर देखना पडेगा, क्योंकि वो ऊंचा होगा, पर परम को पाने के लिए ऊपर नहीं देखना पड़ेगा।  बस आपको अपनी आंखें बंद कर परम-तत्व को महसूस करना होगा। यह दिव्यता को स्वर्ग से सीधा आपके दिल में ले आएगा। मुझे नहीं लगता कि मेरा ऐसे किसी दिव्य अस्तित्व से कोई लेना देना हो सकता है, जो स्वर्ग में रहता हो। मेरी ऐसे किसी देवता या भगवान में कोई दिलचस्पी नहीं, जो स्वर्ग में रहता हो। अगर वह इस धरती पर रहने के लिए तैयार है तो ही मेरी दिलचस्पी उसमें होगी। मेरे लिए वह यहीं रहता है। मैं यह सुनिश्चित करना चाहता हूं, कि इस धरती के हर इंसान में इतनी जरूरी चेतना या समझ हो कि वह जीवन में इस बात का अहसास कर सके - कि दैवीयता जीवन से परे नहीं, बल्कि एक जीवंत एहसास है। वो अहसास ऊपर न होकर यहीं और अभी है।

इरादा यह था कि 112 फुट ऊंची आदियोगी की स्थापना देश के चारों कोनों में करनी है। लेकिन मुंबई इसके लिए बिल्कुल तैयार है। मुंबई में अगर अगले कुछ महीनों में जमीन का मामला तय हो जाता है, तो हम एक की जगह दो का निर्माण करेंगे। निश्चित तौर पर मुंबई के आदियोगी की लोगों तक पहुँच, पहाड़ी तलहटी में स्थित हमारे आदियोगी की पहुँच से कहीं ज्यादा होगी। पर यहां आदियोगी की पृष्ठभूमि में वैलिंगिरी पर्वत है। और वैलिंगिरी से कोई भी मुकाबला नहीं कर सकता!

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