सद्‌गुरुहम सभी के अंदर सृष्टा बीज रूप में मौजूद है। सद्‌गुरु हमें तीन ऐसी बातें बता रहे हैं जो आध्यात्मिक प्रगति का मूल हैं, और जिनसे हम सृष्टा तक पहुँच सकते हैं। आइये जानते हैं उन तीन बातों के बारे में

बीज रूप में मौजूद है सृष्टा

सद्‌गुरु: कुछ समय पहले की बात है, एक दिन किसी ने सत्संग में मुझसे पूछा, ‘मैंने अनेक आध्यात्मिक गुरुओं से भेंट की है परंतु मैंने किसी के भी लिए ऐसा आकर्षण महसूस नहीं किया, जैसा मैं आपके लिए करता हूं। आपमें आखिर ऐसा क्या है?’ मैंने कहा, ‘मेरे पास ऐसा कुछ नहीं है जो आपके पास न हो।

इस प्रक्रिया को, अपने-आप को बड़ा बनाने के लिए इस्तेमाल न करें। इसे आप विलीन होने की प्रक्रिया का हिस्सा मानें।
बात सिर्फ इतनी है कि हम सबको एक बीज मिला था - असीम संभावना का। आपने सावधानी से उस बीज को संभाल कर रखा, जबकि मैंने उस बीज को नष्ट कर दिया और उसे एक वृक्ष में बदल दिया।

अगर आप किसी बीज को वृक्ष में बदलना चाहते हैं, तो आपको बीज का मोह छोड़ना ही होगा। किसी बीज को बीज की तरह संभालना मूर्खता ही कहलाएगी, पर बदक़िस्मती से, हमारे समाज में बीज को संभालना ही अक्लमंदी मानी जाती है। अपने-आप को नष्ट होने की अनुमति देना, एक व्यक्ति की सीमित संभावना को नष्ट करना, समझदारी नहीं मानी जाती। तो आप तो स्मार्ट हैं, इतने स्मार्ट कि आपने अपनी जिंदगी को ही सीमाओं में बांध लिया है।

खरपतवार हटाने की प्रक्रिया

हम सभी एक से बीज के साथ आए हैं। हर बीज में एक सी संभावना होती है, बस बीज से वृक्ष तक एक यात्रा पूरी करनी होती है। अगर आप किसी बीज को वृक्ष बनाना चाहते हैं, तो आपको इसका पोषण करना होगा, आपको इसकी सुरक्षा करनी होगी, इसके साथ उगने वाले खरपतवारों को हटाना होगा - बहुत सारे खरपतवार हटाने होंगे। यही खरपतवार लाखों सालों से मानवता के लिए कष्ट का कारण बने हुए हैं। मनुष्य अभी तक नहीं सीख सका कि इन्हें कैसे हटाना चाहिए। क्रोध, ईष्र्या, नफ़रत, भय, संदेह - वही मूर्खतापूर्ण खरपतवार पीछा नहीं छोड़ रहे, क्योंकि इन्हें उगाना नहीं पड़ता, ये अपने-आप फलते-फूलते हैं। पर अगर आप किसी पवित्र बीज को अंकुरित कर, उगाना चाहते हैं, तो आपको सारी खरपतवार साफ़ कर, नए सिरे से जुताई करनी होगी और खाद डालनी होगी और यह देखना होगा कि बीजों को पानी और सूरज की रोशनी भरपूर मात्रा में मिल सके। अगर आप सूरज की रोशनी के ताप से घबरा कर दूर रहना चाहते हैं, तो आप इसकी जीवन-उपयोगी ऊष्मा से भी वंचित रह जाएंगे।

वही गलतियां मत दोहराएं

जो जीवन का आधार है, वही जीवन का अंत भी करता है। जो पकाता है, वही जलाता भी है। अगर आप अच्छे रसोईए हैं, तो आप खाना पकाते हैं, अगर आप बुरे रसोईए हैं तो आप खाना जला देंगे।

आप अपने लिए असीम की चाह कर रहे हैं, आपको बड़ा नहीं बनना है। आप बड़े बन कर, असीम नहीं बन सकते क्योंकि ‘बड़े’ की भी निश्चित सीमाएं हैं। जब आप शून्य होते हैं, तभी आप असीम हो सकते हैं।
अगर आप सूर्य के प्रकाश से बचते हुए, छाया में खड़ा होना चाहते हैं, तो आप इसकी जीवन देने वाली गरमाहट नहीं पा सकेंगे। रोटी पकाना सादी किंतु गूढ़ प्रक्रिया है जो इसे जानता है, वह आसानी से इसे कर सकता है। जो रोटी पकाना नहीं जानता, वह इसे पल भर में कोयले में बदल देगा। इसी तरह आध्यात्मिक प्रक्रिया को कारगर बनाना भी बहुत आसान है, अगर आप खुद को इसके हवाले कर देते हैं तो। अगर आप अपनी ओर से विरोध और संघर्ष जारी रखते हैं, तो यह सब मुश्किल हो जाता है। आपको इसे सहज बनाने की कोशिश करनी चाहिए।

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मनुष्य लाखों सालों से जो मूर्खता करता आ रहा है, आप भी उसी को बिना सोचे-समझेे दोहराते हुए, अपना समय नष्ट न करें। अगर कोई मूर्खता करनी ही है, तो कोई नई मूर्खता क्यों न की जाए! वही सारी मूर्खता दुहराई जा रही है - एक पल में सच, एक पल में झूठ; एक पल में महान और एक पल में, कुछ भी नहीं! किसी पल आप कहेंगे ‘मुझे तो लगा था कि आप अद्भुत हैं, पर आप तो बकवास निकले।’ अपने साथ ऐसा न करें। अगर आप कोई अनूठी मूर्खता कर रहे होते, तो यह ठीक होता, पर ये तो वही पुरानी खरपतवार है। यहां कोई नई खरपतवार नहीं है - लोगों ने इसे ही उगा रखा है। यह खरपतवार उगाने का धंधा बहुत सरल है। कोई भी मूर्ख इसे कर सकता है।

विकास के लिए तीन बातें - निर्देश, अखंडता और तीव्रता

अमेरिका में ईशा का इनर-साइंज़िस संस्थान है। इसका मतलब है, ‘तीन आई’ (3I's )। ये तीन ‘आई’ क्या अर्थ रखते हैं? पहला है, इंस्ट्रक्शन यानी निर्देश, दूसरा है इंटेगरिटी यानी अखंडता और तीसरा है, इंटेंसिटी आॅफ परपज़ यानी उद्देश्य की तीव्रता।

निर्देशों को ध्यान से देखें और उनका पालन करें। इसके बाद इंटीग्रिटी या अखंडता की बात आती है। आपको दी गई हर आध्यात्मिक प्रक्रिया, समावेशी है यानी सबको समाहित करने की दिशा में काम करती है। अगर आप स्वयं को सबसे अलग करने की कोशिश कर रहे हैं, तो यह अखंडता का अभाव है। इस समय, आप वही वायु श्वांस में भीतर ले रहे हैं, जिसे बाकी सब छोड़ रहे हैं।

अगर आप किसी बीज को वृक्ष में बदलना चाहते हैं, तो आपको बीज का मोह छोड़ना ही होगा। किसी बीज को बीज की तरह संभालना मूर्खता ही कहलाएगी, पर बदक़िस्मती से, हमारे समाज में बीज को संभालना ही अक्लमंदी मानी जाती है।
अगर आप कहते हैं, ‘मुझे यह पसंद नहीं, मैं उस वायु में श्वांस नहीं लेना चाहता, जिसे इस धरती पर किसी भी दूसरे प्राणी ने अपनी श्वांस में भर कर छोड़ा हो’ तब आप जीवित नहीं बचेंगे। इस तरह जब भी जीवन-रक्षा की बात आती है, तब तो आप सबको साथ मिला लेते हैं। शरीर के स्तर पर सबको समाहित करने वाले हैं, लेकिन अपने मन के स्तर पर आप सबसे अलग होना चाहते हैं। यह अखंडता का अभाव है।

तीसरा ‘आई’, उद्देश्य की गहनता को दिखाता है। यह सारी प्रक्रिया इसलिए नहीं है कि आप और बड़े हो जाएं, आपको स्वयं को शून्य में विलीन करना है, क्योंकि आप अपने लिए असीम की चाह कर रहे हैं, आपको बड़ा नहीं बनना है। आप बड़े बन कर, असीम नहीं बन सकते क्योंकि ‘बड़े’ की भी निश्चित सीमाएं हैं। जब आप शून्य होते हैं, तभी आप असीम हो सकते हैं। तो इस प्रक्रिया को, अपने-आप को बड़ा बनाने के लिए इस्तेमाल न करें। इसे आप विलीन होने की प्रक्रिया का हिस्सा मानें।

तीनों को बनाए रखना होगा

अगर आप इन तीनों को जारी रख सकें, तो आपके लिए आध्यात्मिक प्रक्रिया चमत्कारी बन सकती है। आपको इसे हर रोज़ देखना होगा।

अगर आप कहें - अरे ये तो मैं जानता हूँ। तो फिर ये चीज़ें आपके लिए काम नहीं करेंगी।

यह ऐसा कुछ नहीं है जिसे आप क्रिया* करने से पहले कर ले। जब आप सुबह उठें तो इसे देखें - ‘क्या आज मैं ऐसा हूं?’ तब यह चमत्कारी तरीके़ से काम करेगा। केवल आपकी चाह से ही, आपके लिए कुछ नहीं घटेगा। आपको उचित प्रकार के कार्य करने होंगे। तभी ऐसा आपके साथ घटित हो सकेगा।

अगर आप केवल इसे ही बरक़रार रख सके, तो यह सारी प्रक्रिया आपको, सबका समावेश करने वाली, सबको साथ ले कर चलने वाली प्रक्रिया की ओर ले जाएगी। केवल इसलिए नहीं कि ऐसा मैं सोचता हूं या ऐसी मेरी कामना है - इसलिए क्योंकि येे स्रष्टा का स्वभाव है।

संपादक की टिप्पणी:

*सरल और असरदार ध्यान की प्रक्रियाएं जो आप घर बैठे सीख सकते हैं। ये प्रक्रियाएं निर्देशों सहित उपलब्ध है:

ईशा क्रिया परिचय, ईशा क्रिया ध्यान प्रक्रिया

नाड़ी शुद्धि