सद्‌गुरुशेरिल सिमोन की जीवन-यात्रा को समेटने वाली पुस्तक ‘मिडनाइट विद द मिस्टिक’ का हिंदी अनुवाद ‐ आप पढ़ रहे हैं एक धारावाहिक के रूप में, सद्‌गुरु से उनकी मुलाक़ात :

 

सद्‌गुरु से अमेरिकी मूल निवासी से मुलाकात

कुछ ही समय पहले की बात है। एक दिन दक्षिण भारत के एक उत्साही पुरुष कनाडा के गांवों-कस्बों वाले किसी इलाके में यात्रा कर रहे थे। उनकी कार को गैसोलीन चाहिए था।

पास पहुंच कर उसने भारतीय पुरुष से कहा, ‘भाई, हवाओं ने आपके आने की खबर दे दी थी’, और बड़े आदर के साथ उसने अपना सिर झुका दिया।
वे रास्ते में दिखे सबसे पहले पेट्रोल स्टेशन पर रुक गये, जो कनाडा के जंगलों में काफी अंदर किसी ग्रामीण इलाके में था। अपनी कार से निकल कर, उन्होंने उसमें गैसोलीन भरना शुरू किया ही था कि उनकी नजर अमेरिका के एक बूढ़े मूल निवासी पर पड़ी, जो पास के एक पिक-अप ट्रक पर बैठे उनको घूर रहे थे। दोनों एक-दूसरे को नहीं जानते थे, लेकिन जल्दी ही वह बूढ़ा आदमी पेट्रोल भर रहे पुरुष की ओर बढऩे लगा। पास पहुंच कर उसने भारतीय पुरुष से कहा, ‘भाई, हवाओं ने आपके आने की खबर दे दी थी’, और बड़े आदर के साथ उसने अपना सिर झुका दिया। बूढ़े अमेरिकी के ये रहस्यमय, काव्यपूर्ण शब्द हम जैसे लोगों को अचंभे में नहीं डालते जो सद्‌गुरु को जान चुके हैं। यहां मैं जिन घटनाओं के बारे में लिख रही हूं उनसे बहुत बाद में मैंने उस बूढ़े अमेरिकी के साथ सद्‌गुरु की मुलाकात की यह कहानी अपनी मित्र और उनकी सहायक लीला से सुनी थी।

सद्‌गुरु के बारे में जानने का अनुभव

उस बूढ़े आदमी के विपरीत सद्‌गुरु के बारे में सुनने का मेरा अनुभव बिलकुल साधारण-सा था। मैं फीनिक्स हवाई अड्डे के एक गेट पर बैठी, सांता बारबरा, कैलिफ़ोर्निया में होने वाले एक मौन शिविर में शामिल होने के लिए अपनी कनेक्टिंग फ्लाइट की प्रतीक्षा कर रही थी।

यह सुन कर मैंने उनको अभी हुए शिविर में ध्यान के अपने अनुभवों के बारे में बताया। मुझे यों लग रहा था कि उनको ध्यान से लाभ मिल रहा है, और मुझे नहीं।
तभी मैंने एक युवा को अपने चारों ओर के शोरगुल से बिलकुल बेखबर शांतिपूर्ण अवस्था में ध्यान-मग्न देखा। चूंकि मैं लोगों को बहुत बिरले ही ध्यान-मग्न देखती हूं (खास तौर से हवाई अड्डे पर) और चूंकि मैं स्वयं एक ध्यान शिविर में भाग लेने जा रही थी, इसलिए मेरा ध्यान इस युवा की तरफ गया। कैलिफ़ोर्निया से लौटते समय फिर हवाई अड्डे पर अपनी फ्लाइट की प्रतीक्षा करते समय मुझे यह देख कर बेहद अचंभा हुआ कि संयोग से वही युवा आकर मेरी बगल में बैठ गया है। जल्दी ही हमने बातचीत शुरू कर दी। मुझे तुरंत याद आ गया था कि मैंने इसी युवा को पहले ध्यान-मग्न देखा था, इसलिए मैंने उनसे इस बारे में पूछ लिया। उन्होंने मुझे बताया कि उनको बरसों से ध्यान में रुचि है। यह सुन कर मैंने उनको अभी हुए शिविर में ध्यान के अपने अनुभवों के बारे में बताया। मुझे यों लग रहा था कि उनको ध्यान से लाभ मिल रहा है, और मुझे नहीं।

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सद्‌गुरु से मिलने के बाद आए बदलाव

दुर्भाग्य से इस बार मौन का मेरा अनुभव कोई विशेष अच्छा नहीं था। पूरा सप्ताह मौन धारण करने के बावजूद मुझे थोड़ी भी शांति नहीं मिल पाई थी। उल्टे मैं पहले से भी अधिक परेशान थी।

उन्होंने यह भी कहा कि उनको बरसों से अनिद्रा की बीमारी है। लेकिन उनके साथ बैठ कर ऐसा कुछ लगा ही नहीं। वे इतने शांत और एकाग्रचित्त थे कि वे योग और ध्यान के विज्ञापन जैसे लग रहे थे।
मेरे दिमाग में हर चीज दर्दनाक रूप से कौंध गयी- वे सब बातें जिनको मैं समझ नहीं पायी थी और वे सारे सांसारिक बंधन और डर भी जो मैंने इतने सालों में जमा कर रखे थे। मुझे लगा कि मेरा दम घुट रहा है। मन की शांति दूर-दूर तक मेरे लिए संभव नहीं लग रही थी। हमारी बातचीत अभी बहुत आगे नहीं बढ़ी थी कि उन्होंने अपने गुरु - सद्‌गुरु के बारे में बताया। सद्‌गुरु मुझे दिलचस्प लगे, कुछ-कुछ पहेली जैसे भी। मैंने सोचा कि मैंने अब तक सद्‌गुरु के बारे में क्यों नहीं सुना! ज्यों-ज्यों वे युवा सद्‌गुरु की कही सारी बातें दोहरा रहे थे, त्यों-त्यों उनके बारे में और अधिक जानने की मेरी इच्छा तेज होती गयी। मुझे जिस बात ने अपनी तरफ खींचा, वह इस युवा का उत्साह नहीं, बल्कि उनकी यह भावना कि सद्‌गुरु से मिलने के बाद वे कितना बदल गये हैं। ‘सद्‌गुरु से मिलने के बाद उनके सिखाये योग की साधना करके मैं उन बंधनों और डर से मुक्त हो चुका हूं जो बचपन से जो मेरा पीछा करते रहे हैं’ उन्होंने कहा। उन्होंने यह भी बताया कि भारी तनाव और बेचैनी के अलावा बचपन से उनको बार-बार डर के भयानक दौरे पड़ते रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि उनको बरसों से अनिद्रा की बीमारी है। लेकिन उनके साथ बैठ कर ऐसा कुछ लगा ही नहीं। वे इतने शांत और एकाग्रचित्त थे कि वे योग और ध्यान के विज्ञापन जैसे लग रहे थे।

सद्‌गुरु को समझने की कोशिश

मैं वहां बैठी सोचती रही कि ध्यान की पद्धति के बारे में जानना मेरे लिए बेकार है क्योंकि इतने समय तक कोशिश करने के बावजूद इससे मुझे कोई फायदा नहीं हुआ था।

ऐसी अंधभक्ति देख कर मैं बिदक जाती हूं। ऊपर से जब उन्होंने बताया कि सद्गुरु दुनिया भर में पांच लाख स्वयंसेवकों वाला एक संगठन चलाते हैं तो मेरी असुविधा और बढ़ गयी।
मेरे उनको यह बताने पर उन्होंने कहा कि वे भी वर्षों से ध्यान करते रहे हैं और सद्‌गुरु से मिलने से पहले वे भी ऐसा ही सोचते थे। मैं शाश्वत लाभ का ऐसा जीवंत वर्णन सुनने की आदी नहीं थी। हां, पहली बार गुरु से मिलने या किसी शिविर में भाग लेने के बाद या कोई नयी पुस्तक पढऩे और दर्शन के बारे में जानने के बाद लोगों में छोटे-मोटे बदलाव आते हैं। पर उन्होंने दावा किया कि केवल सद्‌गुरु से मिलने और उनकी सिखाई क्रियाओं को समझने के बाद ही उनके जीवन का महत्वपूर्ण रूपांतरण हुआ है। मैं सोचने लगी कि क्या यह संभव है कि इस युवा को सचमुच में एक वास्तविक गुरु मिल जायें, ऐसे गुरु जो अभी जीवित हैं! अवश्य कुछ तो बात थी। निश्चित रूप से उस युवा का आचरण असामान्य रूप से शांतिपूर्ण और मनोहारी था। पर मेरे संदेही मन को इतनी आसानी से विश्वास दिलाना संभव नहीं था। अव्वल तो यह कि उनके वर्णन में सद्गुरु के लिए इतनी भक्ति थी जो मुझे बिलकुल रास नहीं आ रही थी। ऐसी अंधभक्ति देख कर मैं बिदक जाती हूं। ऊपर से जब उन्होंने बताया कि सद्गुरु दुनिया भर में पांच लाख स्वयंसेवकों वाला एक संगठन चलाते हैं तो मेरी असुविधा और बढ़ गयी। निजी तौर पर मैंने कभी भी ऐसे समूहों को पसंद नहीं किया। कुछ व्यावसायिक संगठनों को छोड़ कर मैं हमेशा इन सब से दूर ही रही हूं। विशेष रूप से ‘आध्यात्मिक दृश्यों’ को नापसंद करती रही हूं। मुझे यह भी शंका होने लगी कि यह कोई ‘कल्ट’ तो नहीं!

सद्‌गुरु के बारे में कई बातों पर संदेह उठने लगा

उन्होंने सद्‌गुरु के साथ रहने वाले व्यक्तियों द्वारा अनुभूत ऊर्जा के अनेक परिवर्तित रूपों का भी बयान किया।

लेकिन सद्‌गुरु वाला किस्सा तो कुछ ज्यादा ही लग रहा था। मुझे स्वयं ऐसा कोई अनुभव न होने के कारण ऐसी बातों की सच्चाई पर मुझे संदेह था।
उन्होंने यह भी कहा कि सद्‌गुरु के सान्निध्य में कुछ लोग अक्सर कई-कई दिन तक एक विचित्र प्रकार के नशे और उन्माद की अवस्था में चले जाते हैं, यहां तक कि कुछ लोगों को ध्यानकक्ष से उठाकर बाहर ले जाना पड़ता है। मुझे यह दूर की कौड़ी लग रही थी। वर्षों की अपनी यात्राओं में मैंने कई असामान्य बातें देखी हैं पर ऐसा कभी नहीं, इसलिए मेरा अज्ञेयवादी रेडार पूरी तरह उलझ गया था। कुछ तिब्बतियों से मुलाकात के दौरान और पुस्तकें पढऩे की शौकीन होने के कारण पुस्तकों से मुझे तथाकथित गुरुओं के प्रभाव में विचित्र व्यवहार करने वाले लोगों की ऐसी कई कहानियां सुनने को मिली थीं जिन पर विश्वास करना कठिन लगता था। फिर स्वामी मुक्तानंद के पास लोगों को विचित्र व्यवहार करते मैंने स्वयं देखा था। लेकिन सद्‌गुरु वाला किस्सा तो कुछ ज्यादा ही लग रहा था। मुझे स्वयं ऐसा कोई अनुभव न होने के कारण ऐसी बातों की सच्चाई पर मुझे संदेह था।

संपादक की टिप्पणी:

*कुछ योग प्रक्रियाएं जो आप कार्यक्रम में भाग ले कर सीख सकते हैं:

21 मिनट की शांभवी या सूर्य क्रिया

*सरल और असरदार ध्यान की प्रक्रियाएं जो आप घर बैठे सीख सकते हैं। ये प्रक्रियाएं निर्देशों सहित उपलब्ध है:

ईशा क्रिया परिचय, ईशा क्रिया ध्यान प्रक्रिया

नाड़ी शुद्धि, योग नमस्कार