सद्‌गुरुमनसरोवर के बारे में आपने जो कुछ सुना या पढ़ा है, वह सब वहां जाने के अनुभव के सामने कुछ भी नहीं है। वहां जाकर ही आप महसूस कर पाएंगे कि वह क्या है। आखिर ऐसी कौन सी बात है?

बचपन से ही मेरी पड़दादी, मानसरोवर के बारे में बहुत सुंदर कथाएँ सुनाती थीं। मैं उनका भरपूर आनंद उठाता था। पर मैंने कभी उनकी बातो पर यकीन नहीं किया। जब मैंने 2006 में मानसरोवर का पहला दौरा किया, तो मेरे लिए यह महज एक रोमांच था, क्योंकि लोगों का कहना था कि यह रास्ता बहुत ही मजेदार और मुश्किल है।

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मै किसी भी बूढ़ी दादी मां की कहानी पर भरोसा करने को तैयार हूँ क्योंकि वहाँ जो भी घट रहा है, वह आपकी सुनी कहानियों से कहीं ज्यादा है।
और मुझे ऐसे इलाकों में जाना बेहद पसंद है। यहां 5 प्रतिशत पक्की सड़कें, दस प्रतिशत कच्ची सड़कें और बाकी इलाके में कोई सड़कें ही नही है। यह किसी चालक के लिए सपना और किसी मुसाफ़िर के लिए बुरे सपने से कम नहीं होगा। मैं किसी आध्यात्मिक वजह से मानसरोवर नहीं गया था, पर मैंने जो देखा उसने मेरे दिमाग में बसे सारे तर्कों को उखाड़ फेंका। मैं ऐसी कई घटनाओं का गवाह रहा, जिन पर कोई यकीन तक नहीं कर सकता। रहस्यमय पहलू कुछ ऐसे थे, जो परियों की कहानियों से भी ज्यादा अजनबी हों। मैंने जो भी देखा, मैं उसके लिए तैयार नहीं था। अब मै किसी भी बूढ़ी दादी मां की कहानी पर भरोसा करने को तैयार हूँ क्योंकि वहाँ जो भी घट रहा है, वह आपकी सुनी कहानियों से कहीं ज्यादा है। उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता, वह पूरी तरह से अविश्वसनीय है, बिल्कुल अविश्वसनीय!

हालांकि मैं साल दर साल मानसरोवर जाता रहा हूँ पर यह अब भी मेरे अंदर ऐसा कौतुहल और आश्चर्य पैदा करता है, जिसे शब्दों में बताना मुश्किल है। रात के ढाई बजे से पौने चार बजे के बीच जो होता है, वह बहुत ही चैंका देने वाला ताकतवर अनुभव है। हालांकि मैं उन्नीस घंटों के मुश्किल सफ़र के बाद, आधी रात को सोया था पर जाने कैसे ठीक ढाई बजे उठ कर बैठ गया। उस इलाके के कुत्ते उस समय बहुत घबरा जाते हैं और घंटों तक उनके भौंकने की लगातार आवाजें सुनी जा सकती हैं।

मानसरोवर पर सुबह के कार्यक्रम को तेज बरसात की वजह से कुछ घंटों के लिए टालना पड़ा। प्रक्रिया खत्म होते ही, जब बहुत से सहभागी झील में डुबकी लगा रहे थे तो मैं लैंड क्रूसर में सवार हो कर कैलाश की ओर निकल पड़ा ताकि एक ट्रैकर्स के दूसरे दल से मिल सकूँ जो वहां पहले से मौजूद थे।

इसके बाद हम शेरशोंग पहुँचे जहाँ से हमें माउंट कैलाश के बेस के लिए पैदल यात्रा करनी थी।

तर्क से रोजमर्रा के संसार को संभाला जा सकता है। पर इसके साथ ही, एक ऐसा बिंदु होना चाहिए, जिस पर आ कर आप तर्क को एक ओर रखें और जीवन के जादू को महसूस कर सकें।
कुछ कागजी कार्यवाही की दिक्कतों के कारण, हम शाम तीन बजे के बाद ही अपनी पैदल यात्रा आरंभ कर सके। सोलह हजार फुट की ऊँचाई पर हमें बहुत संयम से चलना पड़ रहा था। मैंने एक तिहाई पैदल यात्रा के बाद, कैलाश के पहले दर्शन पाए। हमेशा की तरह, मुझ पर कुछ हावी हुआ, फिर मैं नहीं, बस ‘वही’ रह गया। मैं बिना कहीं रूके, चढ़ाई पर इस तरह चढ़ा मानो ढलान उतरना हो और चार ही घंटे में मैं वहाँ था।

इस तरह की तीर्थयात्रा करने के पीछे वजह यह है कि आप उस अनुभव और समझ को पा सकें जो आपके तर्क की सीमा से परे है। आप उसे महसूस कर सकें, जो इस दुनिया के ‘असली’ से भी अलग हो। यानी आप जादू का स्वाद ले सकें। तर्क से रोजमर्रा के संसार को संभाला जा सकता है। पर इसके साथ ही, एक ऐसा बिंदु होना चाहिए, जिस पर आ कर आप तर्क को एक ओर रखें और जीवन के जादू को महसूस कर सकें। वरना, जीवन आम बन कर रह जाएगा और इससे परे, आपको कुछ भी छू नहीं सकेगा।

कैलाश अपने-आप में अनूठा है; इसका रहस्यवाद, इसका जादू, इसकी सुंदरता और इसकी भव्यता - किसी भी चीज में इस पावन प्राणी की कोई तुलना नहीं है। मैं कैलाश को प्राणी कहता हूँ क्योंकि यह आपसे और मुझसे कहीं ज्यादा मौजूद है।

रात के ढाई बजे से पौने चार बजे के बीच जो होता है, वह बहुत ही चैंका देने वाला ताकतवर अनुभव है। हालांकि मैं उन्नीस घंटों के मुश्किल सफ़र के बाद, आधी रात को सोया था पर जाने कैसे ठीक ढाई बजे उठ कर बैठ गया। उस इलाके के कुत्ते उस समय बहुत घबरा जाते हैं।