सद्‌गुरुएक जिज्ञासु ‐ शेरिल सिमोन की बेचैनी भरी यात्रा के अनुभवों ने एक पुस्तक का रूप लिया – ‘मिड्नाइट विद द मिस्टिक’। इस स्तंभ में आप पढ़ रहे हैं उसी पुस्तक का हिंदी अनुवाद, एक धारावाहिक के रूप में। इस लेख में वे एक ऐसे व्यक्ति से मुलाक़ात के बारे में बता रहीं हैं जो जेल में था पर जिसे आध्यात्म में गहरी रूचि थी। कुछ समय बाद उन दोनों ने विवाह का फैसला कर लिया ...

उन दिनों के मेरे जीवन के जंगलीपन से एकदम अलग विषय होने के बावजूद ‘दि ऑटोबायोग्राफी ऑफ ए योगी’ को पढऩे से ठीक पहले मैं ध्यान में भी रुचि लेने लगी थी। मैं ध्यान को एक शास्त्र के रूप में नहीं, मौज-मस्ती के रूप में ले रही थी। पंद्रह बरस की उम्र में मैंने मर्गी नामक एक आध्यात्मिक गुरु के साथ ध्यान और मानस-नियंत्रण के तरीके को औपचारिक रूप से सीखना शुरू किया। मर्गी बॉस्टन इलाके में एक स्थानीय सेलेब्रिटी-जैसी थीं और रेडियो पर आध्यात्मिकता के बारे में वार्ताएं दिया करती थीं। मैं मर्गी से अपने पिता के जरिये मिली। वे मेरे पिता के एक कारोबारी सहयोगी की पत्नी को यह सिखाती थीं कि मन को कैसे काबू में किया जाए।

मानसिक शक्ति पर नियन्त्रण का अनुभव

मर्गी लगभग पैंतालीस वर्ष की थीं और बरसों से एक सच्ची और पक्की कैथोलिक थीं। मेरे मिलने से लगभग दस साल पहले उनका चर्च से मन उचट गया था और वे विभिन्न परंपराओं के अनेक अलग-अलग गुरुओं के साथ अध्यात्म की बातें सीखने लगी थीं।

उन दिनों के मेरे जीवन के जंगलीपन से एकदम अलग विषय होने के बावजूद ‘दि ऑटोबायोग्राफी ऑफ ए योगी’ को पढऩे से ठीक पहले मैं ध्यान में भी रुचि लेने लगी थी।
वे स्मार्ट शांतिप्रिय महिला थीं जिनके साथ समय बिताने में बड़ा मजा आता था। उम्र में बड़ी और अनुभवी होने के बावजूद वे काफी हद तक किशोरी बनी हुई थीं। उनमें कोई ऐसी बात थी कि जो भी उनके साथ होता बहुत अच्छा महसूस करता। उनका घर, मुख्य भवन से काफी दूर पेड़ों के झुरमुट के बीच छोटा-सा, प्यारा-सा पीले रंग का कॉटेज था। मुझे वह घर जादुई लगता था और मर्गी को जानना मेरे कच्चे मन के लिए एक दादी को पा लेने जैसा था। उनकी पूरब के सभी धर्मों में, परामनोविज्ञान, मानस-नियंत्रण और मन की शक्ति को बढ़ाने में रुचि थी। उनके साथ समय बिताने के बाद यह कुछ-कुछ साफ हो गया था कि वे किसी हद तक दिव्यदर्शी हैं। कभी-कभी मेरे बताने से पहले ही उनको कई बातों का पता होता था और अक्सर फोन पर मेरे पूछने से पहले ही वे मेरे सवाल या टिप्पणी का जवाब दे देती थीं। यह सचमुच चौंका देने वाली बात थी। मेरी जान-पहचान वालों में और कोई ऐसा नहीं था और उनसे मिलने से पहले मैं यह बिलकुल नहीं मानती थी कि ऐसा कुछ संभव भी है।

मन की बात पढ़ लेना

एक दिन की बात है - मैं उनके साथ एक बैले देखने जाने की योजना बना रही थी कि अचानक एक मित्र ने दरवाजे पर दस्तक दे दी। उसने सिर्फ मुझे चौंकाने के लिए पूरे दिन यात्रा की थी और वह सिर्फ एक वही शाम मेरे शहर में बिताने वाला था। मैंने उसको बताया कि दुर्भाग्य से मैंने उस रात के लिए एक कार्यक्रम तय कर रखा है और अगर मैं उसको रद्द करने के लिए मर्गी से बात नहीं कर पायी तो फि र मैं उसके साथ कहीं भी नहीं जा पाऊंगी।

मैं ऊंची उड़ान भर रही थी और मन-ही-मन जानती थी कि टेड और मैं अपने आध्यात्मिक आनंद में हमेशा डूबे रहेंगे।
मैंने लगातार तीन बार मर्गी को फ़ोन लगाने की कोशिश की और तीसरी कोशिश के बाद जब मेरी उंगली फ़ोन के बटन पर थी और रिसीवर मेरे हाथ में, तब मैंने उस मित्र से खेद प्रकट किया कि मुझे बैले जाना होगा। उसी समय फ़ोन की घंटी बजी। दूसरी तरफ मर्गी थीं। उनके पहले शब्द थे, ‘सॉरी, मैं तुम्हारा फ़ोन नहीं उठा पायी, दरअसल मैं घर पर नहीं थी। और सुनो, मैं भी नहीं जाना चाहती।’ उनकी इस बात से हमें जोर का शॉक लगा! वैसे इस तरह की बात उनके साथ अक्सर होती रहती थी। कुछ समय बाद यह सब सामान्य-सा लगने लगा।

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पुनर्जन्म को जानने की रूचि

मर्गी ने मुझे पुनर्जन्म के बारे में भी बताया जो बहुत दिलचस्प था। मैंने इसके बारे में केवल प्राथमिक पाठशाला में पुराने समय के किस्सों में सुना था और सोचा था कि इसका नाता गाय या किसी और जानवर के रूप में दोबारा पैदा होने से है। मर्गी ने मुझे पुनर्जन्म के बारे में पढऩे के लिए दो-तीन पुस्तकें दीं।

उन्होंने बताया कि यह जीवन विकास की एक यात्रा है और मनुष्य का जन्म हमारी वास्तविक ईश्वरीय प्रकृति को जानने का एक सुनहरा मौका है।
मैंने जो पढ़ा और मर्गी ने जो मुझे बताया उसमें मौत के बाद क्या होता है इस बारे में अब तक मेरी सुनी हुई बातों से अधिक सारगर्भित जानकारी थी। उन्होंने बताया कि यह जीवन विकास की एक यात्रा है और मनुष्य का जन्म हमारी वास्तविक ईश्वरीय प्रकृति को जानने का एक सुनहरा मौका है। इस बात ने मेरी रुचि बढ़ा दी। फि र भी हालांकि मेरी ललक को दूसरे विश्लेषणों से कहीं अधिक मिटाने के बावजूद पुनर्जन्म की बात किताबी ही रह गयी, क्योंकि उसके साक्ष्य के रूप में मेरे पास अपना कोई अनुभव नहीं था।

मार्गी के छात्र टेड से मुलाक़ात

इस दिव्यगुरु ने न केवल ध्यान से मेरा परिचय कराने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, उन्होंने सत्रह वर्ष की उम्र में मेरे पहले पति टेड से भी मेरी मुलाकात करायी।

मर्गी स्थानीय जेल में कैदियों को ध्यान सिखाती थीं, जहां टेड उनके छात्रों में से एक था।

इस दिव्यगुरु ने न केवल ध्यान से मेरा परिचय कराने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, उन्होंने सत्रह वर्ष की उम्र में मेरे पहले पति टेड से भी मेरी मुलाकात करायी।
वह हत्या के अपराध में जेल की सजा काट रहा था। सोलह बरस की उम्र में एक लडक़े से मार-पीट के दौरान उसके हाथों उस लडक़े की दर्दनाक मौत हो गयी थी।टेड मर्गी को बहुत प्यारा लगता था। उन्होंने बताया कि वह कितना बुद्धिमान और दयालु है और वे चाहती थीं कि मैं उससे मिलूं। मैंने सोचा कहीं वे मजाक तो नहीं कर रहीं? मैं उससे क्यों मिलना चाहूंगी? ऐसे किसी से जो जेल में है! और मैं यह भी नहीं चाहती थी कि मर्गी किसी के साथ मेरी जोड़ी बना दें - भले ही वे इस बात को नकार रही थीं।

आध्यात्मिक रूचि रखने वाले टेड से जेल में मुलाक़ात

फि र भी वे उसके बारे में बताती रहीं। कभी-कभी वे मुझे अपने साथ जेल ले जाती थीं। आखिरकार मैं टेड से मिली। मेरी मुलाकात के समय टेड 19 बरस का था और जल्दी ही उसको परोल मिलने की गुंजाइश थी। कैदी होने के बावजूद वह एक योगी के रूप में रह रहा था। उसकी अपनी छोटी-सी कोठरी थी और वह अपना अधिकतर समय पढऩे, ध्यान लगाने, उपवास और योग करने में बिताता था।

मर्गी स्थानीय जेल में कैदियों को ध्यान सिखाती थीं, जहां टेड उनके छात्रों में से एक था। वह हत्या के अपराध में जेल की सजा काट रहा था।
वह उस समय बहुत भव्य, तेजस्वी और सुंदर लग रहा था। मर्गी को छोडक़र अब तक मैं जिनसे भी मिली हूं वह उन सबसे अधिक गहरे विचारों वाला लग रहा था। उसकी आध्यात्मिक ललक इतनी तीव्र थी कि मेरी अपनी आध्यात्मिक ललक बड़ी आसानी से उसके साथ जुड़ गयी। मेरी पहचान के एक भी लडक़े को आध्यात्मिकता में दिलचस्पी नहीं थी। हमें एक-दूसरे से प्रेम हो गया और हमने पक्का कर लिया कि जितनी जल्दी हो सके हम एक-दूसरे के हो जाएंगे। ऐसा लग रहा था कि आखिर मैं आंतरिक आनंद पाने की ओर बढ़ रही हूं।

शादी के बाद आध्यात्मिक आनंद में डूबने का फैसला

उसको परोल मिलते ही हमने तुरंत शादी का फैसला कर लिया। मैं उन्नीस बरस की थी। मैं अच्छी तरह जानती थी कि मेरे लिए यह फैसला कितना भयानक हो सकता था और इसके नतीजे कितने डरावने हो सकते थे।

उसकी आध्यात्मिक ललक इतनी तीव्र थी कि मेरी अपनी आध्यात्मिक ललक बड़ी आसानी से उसके साथ जुड़ गयी। मेरी पहचान के एक भी लडक़े को आध्यात्मिकता में दिलचस्पी नहीं थी।
पर मैंने अंदर से महसूस किया कि यदि मेरी आध्यात्मिक ललक सच्ची है तो मुझे इस दिशा में जाना ही होगा। हमारे पिता हमें लेक्सिंग्टन इसलिए लाये थे कि मुझे उत्तम शिक्षा और सारे सही मौके मिल सकें। हालांकि मैं जिन लड़कियों के साथ बड़ी हुई थी उनमें से कई खुलकर पैसा, सफ लता, सामाजिक दर्जा पाने और सही आदमी से शादी करने की बातें करती थीं, पर मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था। मुझे शान-ओ-शौकत वाली शादी में या सारे तामझाम में सचमुच कोई दिलचस्पी नहीं थी, मुझे सिर्फ प्यार चाहिए था। मैं ऊंची उड़ान भर रही थी और मन-ही-मन जानती थी कि टेड और मैं अपने आध्यात्मिक आनंद में हमेशा डूबे रहेंगे।