आध्यात्मिक खोज - तब सद्गुरु मेरे घर आने वाले थे
एक खोजी शेरिल सिमोन ने अपनी रोचक जीवन-यात्रा को ‘मिडनाइट विद द मिस्टिक’ नामक किताब में व्यक्त किया है। इस स्तंभ में आप उसी किताब के हिंदी अनुवाद को एक धारावाहिक के रूप में पढ़ रहे हैं। पेश है इस धारावाहिक की अगली कड़ी जिसमें शेरिल उन दिनों की यादें साझा कर रही हैं, जब सद्गुरु उनके घर आने वाले थे:
धूप में लिपटी एक यादगार दोपहर। मैं कार चलाती हुई अटलांटा हवाई अड्डे पहुंचकर सद्गुरु के आगमन की प्रतीक्षा करने लगी। उत्तरी कैरोलिना के पर्वतों की गोद में, झील के किनारे बने मेरे घर में वे मेरे अतिथि बनने वाले थे। यह पहला अवसर था कि मुझे सद्गुरु के साथ, जिनकी शिक्षा को मैं थोड़ा-बहुत जानने लगी थी, ढेर सारा समय बिताने का मौका मिलने वाला था। मैं इतनी अधिक उत्साहित थी कि विश्वास ही नहीं हो रहा था। साथ ही डर भी लग रहा था कि जाने क्या होगा! हर चीज के बारे में सोचकर आप चाहे जितनी तैयारी कर लें, उनकी जरूरतों का अनुमान लगाना अक्सर कठिन ही होता है।
सद्गुरु के साथ होने पर उसी पल में डूब जाती हूँ
सद्गुरु से अटलांटा में मिलने के बाद पूरे तीन साल बीत चुके थे। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में मैंने उनके साथ बहुत अच्छा समय बिताया था, लेकिन अभी भी जब कभी मैं उनसे मिलने जाती हूं, कई प्रकार के विचार मुझे घेर लेते हैं। मन में बल्लियों उछलते उत्साह के साथ-साथ आगे की होनी की बेचैनी भी होती है। लेकिन यह समस्या कुछ पलों की ही होती है, क्योंकि उनके साथ होते ही मैं पूरी तरह उस पल में डूब जाती हूं। कई बार मैं उनके सान्निध्य की शांति में गहरे और गहरे डूबती जाती हूं। लेकिन कभी-कभी ऐसा भी होता है कि मेरा जिज्ञासु मन अपने अंतहीन सवालों के उत्तर पाने का एक भी अवसर खोना नहीं चाहता।
Subscribe
सद्गुरु और उनकी सहायिका मेरे अतिथि बनने वाले थे
झील के किनारे बने मेरे घर में सद्गुरु और उनकी सहायिका ‐ लीला, पूरे एक सप्ताह तक मेरे अतिथि बनकर रहने के लिए आने वाले थे। सद्गुरु ने पहली बार मेरी झील को तब देखा था जब वे पिछले साल एक रात मेरे घर ठहरे थे।
लीला सद्गुरु के साथ पिछले लगभग पंद्रह सालों से थीं। इंजीनियरिंग में प्रशिक्षित लीला के सामने जीवन बिताने के ढेरों विकल्प थे, लेकिन उन्होंने फुलटाईम स्वयंसेवी बन कर ईशा योग की सेवा करना पसंद किया था। वे अमेरिका में सद्गुरु के रोजमर्रा के अधिकतर कामों में उनकी सहायता करती हैं। ढेरों जिम्मेदारियों के बावजूद वे मुझे अब तक मिले लोगों में सबसे अधिक शांत और स्थिर रहने वाली महिला लगीं। तेज दिमाग और सुंदर हास्य-भाव वाली लीला अकसर बड़ी बेबाकी के साथ अप्रत्याशित रूप से अपनी बात रखती हैं।
सद्गुरु के आतिथ्य की तैयारी
मैं झील के किनारे अपने घर का आनंद दूसरों के साथ बांटना पसंद करती हूं और मुझे जरा भी संदेह नहीं था कि सद्गुरु का आतिथ्य मेरे लिए एक अनोखा अनुभव होगा।
मैं आशा कर रही थी कि जो भी करना होगा सही ढंग से कर पाऊंगी। मैं हर चीज हमेशा बिलकुल सही करना चाहती थी, इसलिए मैंने लीला से तो पहले ही सलाह ले ली पर साथ-साथ ई-मेल करके भारत में सद्गुरु के आश्रम से भी सुझाव मांगे। मेरे दोनों ही निवेदनों का बड़ा विनम्र उत्तर तो मिला, लेकिन बिना किसी जानकारी या सुझाव के। मैं रसोई के सामानों की सूची से लेकर हर चीज के बारे में विस्तार से जानकर बिलकुल तैयार रहना चाहती थी, पर कोई जानकारी नहीं मिली। कहते हैं उनके साथ हमेशा ऐसा ही होता है। लाख कोशिश करने के बावजूद आप कभी भी पूरी तरह तैयार नहीं हो सकते, क्योंकि उनके साथ चीजें हर पल बदलती हैं।