सद्‌गुरुएक खोजी शेरिल सिमोन ने अपनी रोचक जीवन-यात्रा को ‘मिडनाइट विद द मिस्टिक’ नामक किताब में व्यक्त किया है। इस स्तंभ में आप उसी किताब के हिंदी अनुवाद को एक धारावाहिक के रूप में पढ़ रहे हैं। पेश है इस धारावाहिक की अगली कड़ी जिसमें बता रहीं हैं कि कैसे सद्‌गुरु ने उनके मन के सवाल के बारे में जान लिया और उनको सवालों का महत्व समझाया :

मन को खाली और धारदार रखना होगा

मुझे याद हैं अभी भी सद्‌गुरु के वो शब्द। सद्‌गुरु बोल रहे थे, ‘फिलहाल, आप मुक्ति की ओर जाने के लिए अपने मन का उपयोग इसलिए नहीं कर पा रही हैं, क्योंकि यह खचाखच भरा हुआ है।

आपका शरीर है, भावनाएं हैं, ऊर्जा भी है। इनमें से केवल मन जैसी किसी एक चीज का उपयोग करना केवल एक पहिये के सहारे कार में यात्रा करने जैसा है।
आपको अपने मन को ब्लेड की तरह धारदार और खाली रखना होगा। तभी आप अपने मन से मुक्ति तक पहुंचने का रास्ता बना पायेंगी। तब आपका मन कहीं भी जाए उससे कुछ भी नहीं चिपकेगा। तभी मन का उपयोग एक संपूर्ण औजार के रूप में हो सकेगा। लेकिन एक औजार के रूप में केवल मन नहीं साथ में किसी और चीज का भी उपयोग करना बेहतर होता है। आपके दूसरे आयाम भी हैं। आपका शरीर है, भावनाएं हैं, ऊर्जा भी है। इनमें से केवल मन जैसी किसी एक चीज का उपयोग करना केवल एक पहिये के सहारे कार में यात्रा करने जैसा है। गंतव्य तक जाने के लिए कार के चारों पहिए चाहिए।

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चारों आयामों को काम में लाना होगा

केवल चारों पहियों के सहारे ही आप वहां पहुंच सकते हैं। केवल एक आयाम का उपयोग करके शायद आप वहां पहुंच तो जायेंगी, लेकिन संभव है कि आप सामाजिक रूप से अयोग्य हो जाएं।

बैठक के बाद सद्‌गुरु जब कमरे से बाहर जा रहे थे तब मैं उनके पास गयी। ‘सद्‌गुरु, आपने कैसे जाना कि मेरे मन में एक सवाल है?’ मैंने पूछा। ‘आपके पूरे व्यक्तित्व पर लिखा हुआ था,’ उन्होंने कहा।
सभी चारों आयामों का उपयोग करना सबसे अच्छी बात है। जो योग हम सिखा रहे हैं वह इन चारों चीजों का मेल है ‐ तन, मन, भावनाएं और ऊर्जा। ईशा योग इन चारों शक्तियों को एक ही दिशा में लगा देता है। ‘गुरु वह होता है जो हर व्यक्ति की जरूरत को जानता है। जीवित गुरुओं पर इसीलिए इतना जोर दिया जाता है, क्योंकि वे हर व्यक्ति के लिए सही मेल बिठा सकते हैं। ईशा योग प्रत्येक व्यक्ति के लिए इसी कारण से प्रभावी सिद्ध होता है, क्योंकि यह आपके विकास में मदद के लिए केवल आपके मन का नहीं आपके हर पहलू का उपयोग करता है।’ बैठक के बाद सद्‌गुरु जब कमरे से बाहर जा रहे थे तब मैं उनके पास गयी। ‘सद्‌गुरु, आपने कैसे जाना कि मेरे मन में एक सवाल है?’ मैंने पूछा। ‘आपके पूरे व्यक्तित्व पर लिखा हुआ था,’ उन्होंने कहा। मेरे झूठे सपाट चेहरे का कोई फायदा नहीं हुआ।

सद्‌गुरु ने समझाया सच्चे सवालों का महत्व

जब मैं इस उधेड़बुन में थी कि मेरा सवाल उनको इतनी आसानी से कैसे पता चल गया, तभी उन्होंने बड़े सब्र के साथ समझाया, ‘ऐसे सवाल बड़े शक्तिशाली होते हैं। जवाब न मिलने पर ऐसा सवाल लोगों की जान ले सकता है।

बाकी बातों के साथ-साथ उन्होंने मुझे यह भी बताया कि मेरे लिए अपना जीवन ‘आलस्य और आत्म-संतोष’ में गवां देने का खतरा है। मैं जानती थी कि यह सच है।
इस संसार में अधिकतर लोगों के पास अच्छे और असली सवाल नहीं होते, उनके सवालों का मकसद केवल मनोरंजन होता है। वे या तो स्वयं को खुश करने के लिए या फिर अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए सवाल पूछते हैं। यह उनको बुद्धिजीवी होने का अहसास दिलाता है, जो वे बनना चाहते हैं।’ ‘लेकिन यदि आपके मन में कोई अच्छा और वास्तविक प्रश्न है तो उसका जवाब पाने या उसका समाधान होने तक आप चैन से नहीं रह सकतीं। आप उसको नहीं भूल सकतीं। यदि आप उसको गहराई में दफना देंगी तो वह बेचैनी और बीमारी लाएगा। यदि आप उसको बहुत गहरे दफना देंगी तो पायेंगी कि आपके शरीर की हर कोशिका चिल्ला-चिल्ला कर वह सवाल पूछ रही है। ऐसे प्रश्न ही तो मेरा व्यवसाय हैं,’ उन्होंने मुस्करा कर कहा। बात आगे बढऩे पर उन्होंने कुछ और टिप्पणियां कीं। उनकी बातों और टिप्पणियों से मुझे पता लगा कि उनको मेरे स्वभाव की बड़ी आश्चर्यजनक समझ है। आश्चर्यजनक इसलिए क्योंकि मैंने उनको अभी पिछली ही रात पहली बार देखा था। यह मानने से मैं चाहे जितना इंकार करूं लेकिन मेरे बारे में उनकी टिप्पणियां इतनी बोधपूर्ण और सत्य थीं कि मेरा साहस थोड़ा कम होने लगा। बाकी बातों के साथ-साथ उन्होंने मुझे यह भी बताया कि मेरे लिए अपना जीवन ‘आलस्य और आत्म-संतोष’ में गवां देने का खतरा है। मैं जानती थी कि यह सच है। मैं हमेशा वही काम करती थी जो स्वयं को चुनौती दिये बगैर आसानी से कर पाती थी। मैं चाहती थी कि बिना किसी प्रयास के मुझे आंतरिक आनंद मिल जाये, और मैं अपनी आरामदेह जीवनशैली का मजा ले रही थी।

भारत में बीमार पड़ने का डर

फिर उन्होंने मुझे अगले महीने अगस्त में भारत में आयोजित किये जा रहे शिविर में आने को कहा। मैं तुरंत पीछे हट गयी - सवाल ही नहीं था। मैं कदम पीछे हटाती-सी महसूस करने लगी।

दस साल पहले, जब स्वास्थ्य बिलकुल ठीक था, तब मैं भारत गयी थी, फि र भी मैं वहां बुरी तरह बीमार हो गयी थी। वहां के हवा-पानी में पाए जाने वाले हर कीटाणु के लिए जैसे मैं चुंबक की तरह थी।
उनके साथ शिविर में भाग लेने का मेरा चाहे जितना मन रहा हो, पर मैं भारत जाने के लिए अपना मन नहीं बना पा रही थी। मैं इतने बड़े दौरे के लिए बिलकुल तैयार नहीं थी। मेरा स्वास्थ्य भी ठीक नहीं था। मैं दिन में तीन-चार घंटे काम कर सकती थी लेकिन उसके बाद कमरे में एक दीवार से दूसरी दीवार तक भी चल नहीं पाती थी ‐ ऐसा लगता था कि बस, अब सब-कुछ खत्म होने वाला है, मानो मैं पीठ पर ईंटों का एक बड़ा बोझा ढो रही हूं। और चीजों के अलावा मुझे हाइपरथायरॉयडिज्म और निम्न रक्तचाप की समस्या थी। कमरे के आर-पार चलने पर ही मेरा सर चकराने लगता था और बेहोशी छा जाती थी। यह भी बताया गया था कि मुझे दिल का दौरा पडऩे का बड़ा खतरा है। मैं इस बारे में ज्यादा बोलती नहीं थी पर हालत बहुत खराब थी। दस साल पहले, जब स्वास्थ्य बिलकुल ठीक था, तब मैं भारत गयी थी, फि र भी मैं वहां बुरी तरह बीमार हो गयी थी। वहां के हवा-पानी में पाए जाने वाले हर कीटाणु के लिए जैसे मैं चुंबक की तरह थी। इस कारण से मैंने यह फैसला कर लिया था कि भले ही मैं वर्षों से योगियों की इस भूमि से कोई दूर का रिश्ता होने की कल्पना करती रही हूं, पर मुझे दोबारा कभी भारत नहीं जाना। इसके अलावा मुझे लगा कि अगस्त में भारत में जानलेवा गर्मी होगी।