सद्‌गुरुशेरिल सिमोन की जीवन-यात्रा को समेटने वाली पुस्तक ‘मिडनाइट विद द मिस्टिक’ का हिंदी अनुवाद ‐ आप पढ़ रहे हैं एक धारावाहिक के रूप में, पढ़ते हैं उसकी अगली कड़ी


मुझे मालूम ही नहीं था कि एक नन्हे-से बच्चे की देखभाल करना कितना कठिन होता है। हम दोनों की रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने के लिए हमारी इच्छा के विरुद्ध मुझे काफी सारा समय अपने बच्चे से अलग रहना पड़ता था।

एक दिन जब हम समाचार-पत्र डालने निकले तब एक खटारा टूटी-फूटी गाड़ी में एक आदमी हमारा पीछा करने लगा। घबरा कर मैं सोचने लगी कि क्या करूं! आसपास कोई पुलिस चौकी है क्या?
क्रिस(मेरा बेटा) अक्सर रो-रो कर आसमान सिर पर उठा लेता था, क्योंकि उसको मेरा बाहर जाना बिलकुल नहीं भाता था। चार साल की उम्र में एक बार वह खाने की मेज पर जोर से घूंसा मार कर चिल्ला उठा, ‘जब मैं अपने दोस्त के घर जाता हूं तब उसकी मां वहां होती है। वह हमेशा वहां होती है! तुम कहां रहती हो?’ मैं एक अकेली कामकाजी औरत थी। मैं उसको कैसे समझाती?

इस सब के साथ कभी-कभी कुछ अच्छा भी हो रहा था। मैं अपने वर्तमान अनौपचारिक पति डेविड से मिली और प्रेम के प्रति अपनी कटुता के बावजूद मैं एक बार फि र से प्रेम के बवंडर में घिर गयी। यह आज तक मेरे जीवन में हुई सबसे सुखद बात है। किसी से प्रेम करना बहुत अच्छी बात है। शुरुआत में उठी उमंग की लहर खुशी का एक ज्वार ले आती है। आपको पूरी दुनिया से प्रेम हो जाने का अहसास होता है। शुरु में नशीली दवा-जैसा यह उन्माद बहुत सुंदर होने के बावजूद समय के साथ शांत हो जाता है। यदि आपको एक अच्छा मित्र और साथी मिल जाये जिसे आप दिल से चाहें तो यह जीवन का एक बहुत बड़ा उपहार है और मैं सौभाग्यशाली हूं कि कई साल से मैं यह अनुभव कर रही हूं।

नई नौकरी में मिली नई चुनौतियाँ

मैंने जल्दी ही वेट्रेस की नौकरी छोड़ दी और नये शुरू किये गये समाचार-पत्र ‘यू.एस.ए. टुडे’ के साथ समाचार-पत्र का रास्ता पकड़ा। ऐसा इसलिए कि इससे मेरे लिए रियल एस्टेट का काम आगे बढ़ाना आसान हो जाता।

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हालांकि इस घटना में हमारा कुछ नहीं बिगड़ा मगर अपने बच्चे की सुरक्षा की जिम्मेदारी और इससे जुड़ी सारी भावनाएं इस प्रकार मेरे मन पर हावी हो गयीं जिसकी मां बनने से पहले कभी मैं कल्पना तक नहीं कर सकती थी।

मेरा काम पूरे शहर के घरों में समाचार-पत्र डालना था और इसमें मुझे अच्छे-खासे पैसे मिल जाते थे। मेरा काम सुबह दो घंटे में अधिकतर लोगों के जागने से पहले ही पूरा हो जाता। इसके लिए मुझे क्रिस को साथ ले जाना पड़ता था क्योंकि मेरा काम सुबह चार बजे शुरू हो जाता। पहले मैं सुबह का यह समय तभी देख पाती थी जब मैं उस समय तक जगी रहती थी। उन दिनों उस समय तक जगे रहना अब उस समय सो कर उठने से ज्यादा आसान और मजेदार लगता था। मैं अलार्म घड़ी से नफरत करने लगी थी।

एक दिन जब हम समाचार-पत्र डालने निकले तब एक खटारा टूटी-फूटी गाड़ी में एक आदमी हमारा पीछा करने लगा। घबरा कर मैं सोचने लगी कि क्या करूं! आसपास कोई पुलिस चौकी है क्या? कहां जाएं जहां और लोग दिखें? क्रिस अचानक जाग गया। उसने उस आदमी और कार को और फि र मुझे देखा। उसने दोबारा कार की तरफ देखा और फि र मेरी तरफ देख कर बोला, ‘अगर कोई हमें मारे-पीटे तो उससे हम कैसे बचेंगे?’ मेरे मन में भी यही चल रहा था। हम सौभाग्यशाली निकले और एक आकर्षक युवा पुलिस वाला हमें बचाने आ गया।

हालांकि इस घटना में हमारा कुछ नहीं बिगड़ा मगर अपने बच्चे की सुरक्षा की जिम्मेदारी और इससे जुड़ी सारी भावनाएं इस प्रकार मेरे मन पर हावी हो गयीं जिसकी मां बनने से पहले कभी मैं कल्पना तक नहीं कर सकती थी।

रियल एस्टेट कंपनी खोलने का लक्ष्य

रियल एस्टेट लाइसेंस पाने के कुछ ही समय बाद मैंने अपने मित्रों को सूचना दी कि तीन साल में ब्रोकर बनने की योग्यता प्राप्त होने तक मेरी अपनी रियल एस्टेट कंपनी होगी। यह बड़ा साहसपूर्ण दावा था, क्योंकि मैं कमीशन के भरोसे अपने और क्रिस के लिए दो वक्त की रोटी और कपड़े जुटाने के संघर्ष में लगी हुई थी।

मैंने काफी हद तक एक धनी जीवन बिताया है, लेकिन रियल एस्टेट का व्यवसाय, बाजार के उतार-चढ़ाव के भरोसे होता है और कुछ हद तक लास वेगास में जुआ खेलने जैसा है।
यह दावा करने के कुछ ही समय बाद आवास-ऋण(होम लोन) दिलाने वाले एक लोन ऑफि सर ने अपने बिल्डर ग्राहकों से मुझे मिलवाना शुरू कर दिया। अचानक मेरे पास संभाल पाने से ज्यादा काम आने लगा और उसी तरह पैसा भी आने लगा। मुझे इस काम में मजा आ रहा था और मैंने इसमें अपना खून-पसीना लगा दिया। तीन साल बाद मुझे रियल एस्टेट लाइसेंस मिल गया और महीना खत्म होते-होते किसी और ने मुझे कुछ निवेशकों से मिला दिया, फि र क्या था मैंने अपना स्वयं का व्यवसाय शुरू कर दिया।

लगभग दो साल बाद अपने वर्तमान व्यवसायी साझेदार की मदद से मैंने अपने पहले निवेशक साझेदार का हिस्सा खरीद लिया। बाद में मैं घर बनाने और भूमि-विकास के काम में लग गयी। मैंने काफी हद तक एक धनी जीवन बिताया है, लेकिन रियल एस्टेट का व्यवसाय, बाजार के उतार-चढ़ाव के भरोसे होता है और कुछ हद तक लास वेगास में जुआ खेलने जैसा है। आप ढेरों पैसा बना सकते हैं लेकिन अगर देश की आर्थिक स्थिति बिगड़ जाये या आप कुछ गलत फैसले कर लें तो आपको भारी नुकसान भी हो सकता है। वैसे तो कई बरसों से सब-कुछ बहुत बढिय़ा चल रहा है पर ऐसा कभी महसूस नहीं हुआ कि सब-कुछ यूं ही चलता रहेगा। इस कारण अपने व्यवसाय को ले कर अक्सर मन में एक तनाव बना रहता था।

आध्यात्मिकता और पैसा कमाना एक साथ चलता रहा

पैसा कमाते और अपना व्यवसाय बढ़ाते हुए मैं आत्मोन्नति की भी कोशिश कर रही थी। मैं इन दोनों चीजों पर साथ-साथ जोर दे रही थी - व्यावसायिक स्वावलंबन के जरिए आत्मोन्नति का क्षेत्र और आध्यात्मिकता का क्षेत्र।

मैंने योग के विभिन्न रूपों को भी आजमा कर देखा। मैंने योगानंद फाउंडेशन द्वारा डाक से दिये जा रहे योग पाठों से शुरुआत की (जो उनकी पुस्तक पढऩे के बाद मैंने उनसे मंगवाया)।
अब मैं अपने व्यवसाय में आराम महसूस करने लगी थी। मैं एक व्यवसायी के रूप में अपनी प्रगति को आध्यात्मिक मुक्ति पाने की प्रक्रिया से अलग नहीं मानती थी। यह प्रक्रिया कुछ ऐसी थी कि मैं अपने काम में इसका इस्तेमाल कर सकती थी और परिणाम देख सकती थी। टोनी रॉबिन्स और नेपोलियन हिल जैसे व्यावसायिक पुस्तकों के लेखकों ने भी बहुधा हमारे अंदर की एक बहुत बड़ी-सी, अनछुई-सी चीज की ओर संकेत किया है।

मैंने योग के विभिन्न रूपों को भी आजमा कर देखा। मैंने योगानंद फाउंडेशन द्वारा डाक से दिये जा रहे योग पाठों से शुरुआत की (जो उनकी पुस्तक पढऩे के बाद मैंने उनसे मंगवाया)।

अलग-अलग ध्यान विधियों से जुड़ने का अनुभव

साल-दर-साल कई कक्षाओं और शिविरों में हिस्सा ले कर मैंने अनेक प्रकार के नए-नए गुरुओं के बारे में जाना जो जीवित थे। योग के अलावा मैंने कई और चीजों को आजमाया। ट्रांसेंडेंटल मेडिटेशन, विपश्यना ध्यान और तिब्बती बौद्धवाद।

उनकी पुस्तक से यों लगा था कि योग अंतर्ज्ञान पाने का एक अत्यंत शीघ्र और सीधा रास्ता है, इसलिए योग में मेरी रुचि कभी नहीं घटी।
इनमें से प्रत्येक मार्ग के पास अनेक ऐसे व्यक्तियों की सफ लता की कहानियां थीं जिन्होंने उनकी क्रियाओं के अभ्यास से अंतज्र्ञान या कम-से-कम रूपांतरण तो अवश्य प्राप्त किया था। शुरू में प्रत्येक मार्ग मुझे अपनी तरफ खींच रहा था लेकिन इन विविध मार्गों के साथ कई-कई साल तक जुड़े रहने के बावजूद मुझे मायूसी ही मिली। किसी कारण से मैं इन मार्गों को पसंद नहीं कर पा रही थी और मुझे यह विश्वास नहीं हो पा रहा था कि ये मेरे लिए लाभकारी होंगे। छोटे-छोटे लाभ हो रहे थे पर मुझे लगा कि इनमें से किसी एक या अधिक के साथ मैं अपना पूरा जीवन भी बिता दूं तब भी कुछ ठोस और कारगार होने के लिए मुझे अनंत काल तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। मैं बेहद परिणाम-पसंद हूं और इतने विविध मार्गों पर इतना सारा समय बिताने के बावजूद मुझमें कोई विशेष रूपांतरण नहीं हुआ था। इसका यह अर्थ नहीं कि मेरे आजमाये हुए मार्ग अच्छे नहीं थे, वे शायद मेरे लिए नहीं बने थे।

मुझे मालूम था कि मैं बहुत अधिक की आशा कर रही थी। मैं अंतर्ज्ञान चाहती थी। शायद मेरी आशाएं ही मुझे कष्ट दे रही थीं लेकिन उनको त्याग देना मेरे लिए संभव नहीं था। आखिर योगानंद की पुस्तक ने मुझे यह विश्वास दिलाया था कि परम तक पहुंचना संभव है और मैं परम तक पहुंचे बिना खुश नहीं रह सकती थी। उनकी पुस्तक से यों लगा था कि योग अंतर्ज्ञान पाने का एक अत्यंत शीघ्र और सीधा रास्ता है, इसलिए योग में मेरी रुचि कभी नहीं घटी।