एक जिज्ञासु शेरिल सिमोन ने अपनी बेचैनी भरी जीवन यात्रा को एक किताब का रूप दिया ‐ ‘मिडनाइट विद द मिस्टिक’। इस ब्लॉग में आप उसी पुस्तक का हिंदी अनुवाद पढ़ रहे हैं, एक श्रृंखला के रूप में:

मैं अब तक की अपनी उन्नति से मायूस तो थी पर मेरा अब तक का अध्ययन बेकार नहीं गया था। कई वर्षों तक विभिन्न आध्यात्मिक विधाओं का अभ्यास कर के मुझे थोड़ी मुक्ति की अनुभूति अवश्य हुई। भावनात्मक तौर पर मैं स्थिर थी और काफी हद तक आशावान। मैंने अपने विचारों और कार्य में थोड़ा अधिक अंतर रखना सीख लिया था ‐ असल में अपनी भावनाओं और प्रतिक्रिया के बीच। यह अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके बिना जीवन हमेशा ज्वार-भाटा बना रह सकता है।

बौद्ध गुरुओं से भेंट

इस राह पर मैं कई सुंदर और दिलचस्प लोगों से भी मिली। मैं दलाई लामा से मिली और एक ऊंचे पद वाले तिब्बती रिनपोचे और उनके सहायक का आतिथ्य भी किया जो मेरे पति, बेटे और मेरे साथ पूरे आठ महीने रहे।

हमारे साथ रहते समय इन बौद्धों ने प्रतिदिन ध्यान लगाया और मंत्र पढ़े ‐ दिन भर और देर रात तक। मैं अक्सर सुबह तीन-चार बजे उठ जाती और उनको मंत्र पढ़ते हुए पाती।
तिब्बती समुदाय रेजांग रिनपोचे का बहुत आदर करता है। उन्होंने इसी जीवन में एक गुफा में रहते हुए नौ साल मौन में बिताये थे। उनका आंतरिक प्रकाश और गहरी समझ-बूझ उनके अंदर से तेज बिखेरते हैं। जब उन्होंने एक कक्षा में ‘शून्यता में परिपूर्णता’ की बात कही तो मुझे लगा कि वे अपने स्वयं के अनुभव से ऐसा कह रहे हैं। हमारे साथ रहते समय इन बौद्धों ने प्रतिदिन ध्यान लगाया और मंत्र पढ़े ‐ दिन भर और देर रात तक। मैं अक्सर सुबह तीन-चार बजे उठ जाती और उनको मंत्र पढ़ते हुए पाती।

हालांकि उनका जीवन अध्यात्म के अनुशासन से पूर्ण था पर वे अधिक गंभीर स्वभाव के नहीं थे और निरंतर हंसते रहते थे। उनके निवास के समय हमारे घर का वातावरण बदल गया था। जाने क्यों वह कुछ आवेशित लग रहा था। हालांकि मुझे उनका साथ प्यारा लग रहा था और उनको जानना मेरी यात्रा को समृद्ध कर रहा था पर उनके मार्ग मेरे रूपांतरण के लिए कोई झंकार पैदा नहीं कर पा रहे थे।

स्वामी मुक्तानंद से मुलाकात

जिन दूसरे गुरुओं से मैं मिली वे थे स्वामी मुक्तानंद और राम दास। मैं स्वामी मुक्तानंद से मिलने अपने कई मित्रों के साथ कॉलेज से गयी थी।

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स्वामी मुक्तानंद एक तेजस्वी पुरुष थे और उनके प्रभाव में लोग कुछ निराला ही व्यवहार कर रहे थे। वे नाच रहे थे, गा रहे थे और उन पर स्वामी जी का प्रभाव स्पष्ट दिख रहा था, लेकिन जाने क्यों मैं उनसे कोई जुड़ाव अनुभव नहीं कर पायी।
हमने सुन रखा था कि वे अंतर्ज्ञानी हैं और यह कि इस आध्यात्मिक गुरु के प्रभाव में अक्सर लोग सहज ही ऐसा अनुभव करते थे कि उनके अंदर की कुंडलिनी जाग गयी है और फिर वे ऐसे मंत्र बोलने लगते थे, नाचने लगते थे या हाथ से ऐसी योगमुद्राएं करने लगते थे जो वे जानते भी नहीं थे। स्वामी से मिलने जाते समय शक्की मिजाज के मेरे मित्रों और मेरे बीच इस बात पर बहस हुई। हमने फैसला कर लिया था कि जब तक हममें से किसी एक के साथ ऐसा कुछ नहीं होता हम अपना संदेह पाले रखेंगे। स्वामी मुक्तानंद एक तेजस्वी पुरुष थे और उनके प्रभाव में लोग कुछ निराला ही व्यवहार कर रहे थे। वे नाच रहे थे, गा रहे थे और उन पर स्वामी जी का प्रभाव स्पष्ट दिख रहा था, लेकिन जाने क्यों मैं उनसे कोई जुड़ाव अनुभव नहीं कर पायी। उस पूरे दृश्य, नाच की दीवानगी और रोने-गाने से मेरा मन उचट गया था। यह सब मेरे लिए नहीं था।

अध्यात्म की अपनी ललक के बावजूद मैं हमेशा से उन आध्यात्मिक दृश्यों को नापसंद करती रही थी जिनमें लोग आत्मनियंत्रण खो बैठे-से लगते थे। अब भी उस्तादों व गुरुओं के बारे में मेरे अपने खास विचार थे। अपनी नादानी में मैं सचमुच यह सोचती थी कि भक्ति सिर्फ उन मूर्खों के लिए है जो किसी ऐसे को ढूंढ़ रहे होते हैं, जो उनको बता सके कि वे क्या करें। मैं इन आध्यात्मिक दृश्यों से उद्वेलित तो हो जाती थी, पर मेरे मन का एक कोना पूरी तरह से सहज रहता था। मैं आध्यात्मिक साधकों और ‘न्यू एज कम्यूनिटी’ के बजाय व्यवसायियों और बुद्धिजीवियों के साथ अधिक सहजता का अनुभव करती थी। मैं निश्चित रूप से किसी ऐसी चीज के साथ नाता नहीं जोडऩा चाहती थी जो एक ‘कल्ट’ व पंथ की तरह लगती हो।

गुरु राम दास के साथ हुई दिव्य अनुभूति

मैं अमरीकी आध्यात्मिक गुरु राम दास से भी मिली और उनकी कई वार्ताओं और शिविरों में शामिल हुई। राम दास के साथ जुड़ पाना मेरे लिए आसान था। वे बुद्धिजीवी थे और ऐसी भाषा में बात कर रहे थे जो मेरी समझ में आ रही थी।

उन्होंने कहा कि जब मैं अपने वास्तविक गुरु को पा लूंगी तो मुझे पता चल जायेगा। उन्होंने अपने गुरु नीम करोली बाबा के साथ भारत में कुछ वर्ष बिताये थे।
मेरी ही तरह राम दास ने भी एल.एस.डी. को आजमाया था। राम दास के साथ पहली बैठक में मुझे एक शक्तिशाली दिव्य अनुभूति हुई (इसके बारे में मैं बाद में बताऊंगी)। इसको मैं समझ नहीं सकी। उस विशेष अनुभूति के कारण मैंने उनसे पूछा कि क्या वे मेरे गुरु हैं। वैसे मैं किसी गुरु को नहीं खोज रही थी पर मैंने सोचा कि शायद गुरु ने ही मुझे ढूंढ़ लिया है। लेकिन राम दास ने कहा, नहीं वे किसी भी दृष्टि से गुरु नहीं हैं। उन्होंने कहा कि जब मैं अपने वास्तविक गुरु को पा लूंगी तो मुझे पता चल जायेगा। उन्होंने अपने गुरु नीम करोली बाबा के साथ भारत में कुछ वर्ष बिताये थे। उन्होंने मुझे बताया कि जब किसी की साधना गहरी हो जाती है तो उनके जरिये बहुत-कुछ होने लगता है। मैं मायूस हो कर लौट आयी। पर साथ-साथ मेरा विश्वास और अधिक बढ़ गया कि किसी-न-किसी प्रकार स्वयं मेरी अंतरात्मा मुझे मुक्ति की ओर ले जायेगी।

समय के साथ मैं बहुत से दूसरे लोगों से मिली जिनको अंतर्ज्ञानी माना जा रहा था। कुछ लोगों ने, जिनके अंतर से तेज और ओज दमकता-सा लगता था, कथित अंतर्ज्ञानियों के साथ समय बिताया था। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो राम दास की तरह उनके भी गुरु जीवित थे।

मैंने सोचना शुरू किया कि जीवन में बदलाव लाने वाले वास्तविक आंतरिक रूपांतरण का अनुभव करने के लिए मुझे किसी अंतर्ज्ञानी सिद्ध योगी ‐ यदि वास्तव में ऐसे कोई हों तो - के पास रहना होगा।

गुरु से जुड़ने का क्या अर्थ होता है?

हालांकि मैं अपने जीवन को सुखी और कुछ मायनों में संपूर्ण समझ रही थी, मेरे अंदर एक विचित्र प्रकार का गहरा मायूसी-भरा प्रश्नचिह्न था। क्या सचमुच में जीवन का अर्थ बस इतना ही है? मैं सोचने लगी।

मुझे कोई अनुमान नहीं था कि गुरु से जुडऩे का क्या अर्थ होता है, आप एक ऐसे क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं जहां आप निश्चित तौर पर नहीं जानते कि सब-कुछ आपकी शर्तों पर होगा या नहीं।
मैं जानती थी कि मुझे जो सबसे अधिक चाहिए था वह मेरे पास अब भी नहीं है। लेकिन क्या मुझे गुरु चाहिए? क्या मैं गुरु की ही खोज कर रही थी? बौद्धिक रूप से मैं यह जानती थी कि थोड़ी-बहुत सांसारिक सफलता के बावजूद आध्यात्मिक विषयों में मुझे कोई पटुता हासिल नहीं थी। तीस साल के बाद मैं इस बात को नकार नहीं सकती थी। यह एक विडंबना थी कि अपने व्यवसाय में तो मैं किसी विशेषज्ञ से सलाह लेने या कुछ पूछने में कभी नहीं हिचकिचाई । वैसे विशेषज्ञों के साथ आप अपनी शर्तों पर काम करते हैं। मुझे कोई अनुमान नहीं था कि गुरु से जुडऩे का क्या अर्थ होता है, आप एक ऐसे क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं जहां आप निश्चित तौर पर नहीं जानते कि सब-कुछ आपकी शर्तों पर होगा या नहीं। फिर अव्वल तो यह कि क्या मैं एक सच्चे गुरु को पहचान भी पाऊंगी? दूसरे, क्या होगा यदि मैं सक्षम नहीं हुई और आवश्यक कार्य नहीं कर पायी?

उस समय मैं नहीं जानती थी कि जब आप वास्तव में सच्चे और ईमानदार हो कर मदद लेना चाहते हैं तो आपमें उस मदद को ग्रहण करने की क्षमता पैदा हो जाती है। आप अपने संदेहों और उद्विग्नताओं को ताक पर रखने और एक अज्ञात आयाम में कूद पडऩे को तैयार हो जाते हैं।

पूरे ब्रह्माण्ड से प्रार्थना की

आखिर एक दिन मैं टूट गयी, अपने अहम् को किनारे रख, मैंने पूरे ब्रह्मांड से -या अनंत या जिसको को मैं उस समय ‘वह’ कहती थी - मदद मांगी। मुझे किसी भी तरह की मदद मांगना कभी अच्छा नहीं लगता था, इसलिए मैंने यह गुहार यूं ही नहीं लगायी।

यह कोई बड़ी घटना नहीं थी। सहायता की मेरी प्रार्थना के बाद न तो आसमान में बिजली कौंधी न बादल गरजे। पर लग रहा था कि कुछ हो गया है। उसके बाद मैं एक अज्ञात शांति में डूब गयी।
अपने ही बूते पर अपनी खोज की चीज पाने के एक लंबे संघर्ष के बाद मैं इस पड़ाव पर पहुंची थी। मैं इस निष्कर्ष पर पहुंची थी कि किसी असाधारण और विशेष सहायता के बिना मेरे जीवन में सचमुच कोई गहरा रूपांतरण कभी नहीं हो सकता। मेरी कल्पना से कहीं अधिक तेजी से मेरे जीवन का आखिरी पल आ पहुंचेगा और ये पल भर का पथिक जो वर्षों से समाधान ढूंढ़ रहा है वह पाकर या पाये बिना ही इस संसार से चला जायेगा। इसलिए मैंने हथियार डाल दिए।

यह कोई बड़ी घटना नहीं थी। सहायता की मेरी प्रार्थना के बाद न तो आसमान में बिजली कौंधी न बादल गरजे। पर लग रहा था कि कुछ हो गया है। उसके बाद मैं एक अज्ञात शांति में डूब गयी। हालांकि बाहर कुछ नहीं बदला था, पर मेरे अंदर एक विशेष शांति और शीतलता छा गयी थी। जाने क्यों ऐसा लगा कि मेरी यात्रा अब सचमुच सही ढंग से शुरू हो चुकी है।

कुछ ही महीनों के अंदर, मेरी मुलाकात एक ऐसे दिव्यदर्शी से हुई जो उतना ही रहस्यमय साबित हुआ जितना कि वह साधारण था।