सद्‌गुरुअहम की प्रकृति ही ऐसी है कि यह हर चीज को कठिनता से करना चाहता है। अहम इस बात को लेकर चिंतित नहीं रहता कि आप क्या कर रहे हैं। इसकी एक ही चिंता होती है, कि किसी और से एक कदम आगे रहे, बस।

बचपन से लेकर अब तक हमें यही बताया गया है कि खूब मेहनत से पढ़ाई करो। काम करो तो खूब मेहनत से करो। किसी ने भी हमें यह नहीं सिखाया कि पढ़ाई या काम आनंद और प्रेम के साथ करो। बस हर कोई यही कहता है - कठिन परिश्रम करो, मेहनत से पढ़ो। लोग हर काम कठिनता से करते हैं और जब जीवन कठिन हो जाता है तो शिकायत करते हैं।

जब लोग हर चीज को कठिन परिश्रम से करते हैं तो यह उनके लिए संतुष्टि का साधन बन जाती है। अगर वे चीजों को आनंद के साथ करते हैं, तो उन्हें ऐसा लगता है जैसे उन्होंने कुछ किया ही नहीं है।
अहम की प्रकृति ही ऐसी है कि यह हर चीज को कठिनता से करना चाहता है। अहम इस बात को लेकर चिंतित नहीं रहता कि आप क्या कर रहे हैं। इसकी एक ही चिंता होती है, कि किसी और से एक कदम आगे रहे, बस। जीवन जीने का यह बेहद दुखद तरीका है लेकिन अहम की तो प्रकृति ही यही है। जब लोग हर चीज को कठिन परिश्रम से करते हैं तो यह उनके लिए संतुष्टि का साधन बन जाती है। अगर वे चीजों को आनंद के साथ करते हैं, तो उन्हें ऐसा लगता है जैसे उन्होंने कुछ किया ही नहीं है।

क्या यह शानदार बात नहीं है कि बहुत सारे काम करने के बाद भी आपको ऐसा लगे कि आपने कुछ किया ही नहीं है? ऐसा ही होना चाहिए। दिन भर में 24 घंटे काम करने के बाद भी अगर आपको लगता है कि आपने कुछ नहीं किया है, तो आप काम का भार अपने ऊपर लेकर नहीं चलते। आप एक बच्चे की तरह जीवन से गुजरते हैं, अपनी क्षमताओं का अधिकतम इस्तेमाल करते हुए आगे बढ़ते हैं। अगर आप सभी कामों को अपने सिर पर लेकर चलेंगे, तो आपकी क्षमताओं का कभी भरपूर उपयोग नहीं हो सकेगा और आपको रञ्चतचाप, मधुमेह या अल्सर जैसे रोग हो जाएंगे।

अगर आपके और आपके दिमाग के बीच, आपके और आपके शरीर के बीच, आपके और आपके आसपास की हर चीज के बीच एक खास दूरी है, तो वह आपको आजादी देती है कि आप जीवन के साथ जो भी करना चाहते हैं, वह कर सकते हैं, लेकिन जीवन आपको नहीं छुएगा। यह आपको किसी भी तरह से चोट नहीं पहुंचाएगा। तर्क  से सोचेंगे तो आप इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि अगर आप इस तरह के हो जाते हैं तो आपके लिए दुनिया में रहना मुश्किल हो जाएगा, लेकिन सच्चाई यह नहीं है। एक स्तर पर आप अनछुए हैं, लेकिन दूसरे स्तर पर आपकी सहभागिता इतनी ज्यादा है कि हर चीज आपका हिस्सा बन जाती है। आप खुद को हर किसी के जीवन में शामिल कर सकते हैं, जैसे वह आपका अपना ही जीवन हो। जब तकलीफ और उलझन का डर नहीं होता, तो आप खुद को पूरी तरह से जीवन में झोंक सकते हैं और हर चीज में बिना किसी हिचकिचाहट के शामिल हो सकते हैं।

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