चलते-चलते आज हम एक बड़े ही नाजुक मोड़ पर पहुंच गए हैं। हम ने कभी यह सोचा न था। शायद इसकी कल्पना भी न की। जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई करना बहुत आसान नहीं लगता। वैसे यह इतना मुश्किल भी नहीं है, पर जिस तरह इंसान लोलुपता के भंवर में पडक़र अपने को तुष्ट करने की कोशिश में धरती का दोहन कर रहा है, उससे यह एक कठिन कार्य जरूर हो गया है।

पिछली दो सदियों में, उद्योग और तकनीक के क्षेत्र में इंसान को जो अभूतपूर्व सफलता मिली, उससे उसके हजारों साल पुराने भ्रम मिट गए, एक अंधेरे युग का अंत हुआ, अचानक उसकी आखें चमक उठीं और उसे कई उज्ज्वल मार्ग दिखने लगे। इस चकाचौंध में वह अपने होश खो बैठा और उस बेहोशी में अपने ही एक अंश को मारकर दूसरे को पोषित करने लगा। धरती के सीमित संसाधन से बेखबर वह अपनी संक्चया बढ़ाता गया और अपने आसपास के जीवन का भक्षण कर फलने-फूलने लगा। तब उसे इतनी समझ न थी कि उसका- पेड़ पौधों, पशु-पक्षियों, कीड़े मकोड़ों... के साथ कितना गहरा संबंध है। अपने एक हिस्से को नष्ट कर दूसरे को जीवित रखना भला कैसे संभव है?

अपनी इंद्रिय भूख को मिटाने की आतुरता में इंसान ने इस धरती पर अबतक जो तबाही मचाई है, उसके भयंकर परिणाम हमारे सामने हैं। इस हालात से निपटने के लिए वक्त रहते अगर सही कदम नहीं उठाया गया तो एक पीढ़ी के रूप में हम अबतक की सबसे निकृष्ट पीढ़ी साबित होंगे, और हमारे इस अपराध के लिए आनेवाली पीढिय़ा हमें कभी माफ नहीं करेंगी। ग्लोबल वार्मिंग के संकट पर प्रकाशित कुछ महत्वपूर्ण आंकड़ों के अनुसार:

  • अगर वायुमंडल में हो रहे ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को नहीं घटाया गया तो अगले सौ सालों में हमारी पृथ्वी का तापमान 4 डिग्री सेंटिग्रेट से भी ज्यादा बढ़ जाएगा। उसके आगे की सदियों में तापमान और बढ़ेगा।
  •  उस तप रही दुनिया में सूखे इलाके और ज्यादा सूख जाएंगे और बरसाती इलाकों में और ज्यादा बारिश होगी। लंबे सूखे और गर्म हवाओं से खेत-खलिहान चौपट हो जाएंगे, नतीजा हर इंसान को कम खाना नसीब होगा।
  • भारत में 1947 में प्रति व्यक्ति पीने के पानी की मात्रा जितनी थी, आज उसकी 20 फीसदी ही है। 2025 तक हमारे पास इसका महज सात फीसदी पीने का पानी रह जाएगा। इसका मतलब यह है कि हम न सिर्फ  बोतल से पानी पी रहे होंगे, बल्कि हम नहा भी बोतल से ही रहे होंगे, बाल्टी से नहीं।
  • इससे धरती के ध्रुवों पर जमा बर्फ  तेजी से पिघल रही है, जो समुद्र के जलस्तर को बढ़ा रहा है, जिसकी चपेट में आकर कई शहर डूब जाएंगे। जलवायु परिवर्तन के कारण अभी हर साल पचास लाख लोग मारे जा रहे हैं। 2030 तक हर साल साठ लाख लोग इस वजह से मारे जाएंगे।

आज देखा...
रात का माथा तप रहा था और
आसमान रात के माथे पर
चाँद की ठंडी पट्टी रख रहा था
मैंने पूछा रात से....
आज तुम्हें बुखार क्यों आया
रात कराहते हुए बोली
आज फिर कुछ लोगों ने
एक जंगल काटकर मॉल बनाया...

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सद्‌गुरु ने अपनी चिंता कुछ इस तरह से जाहिर की-‘आजकल यह चर्चा और बहस का विषय बना हुआ है कि धरती का जीवन खतरे में है। धरती का जीवन खतरे में नहीं है, अगर कोई खतरे में है तो वह है मानव जीवन। अगर आबादी को देखें, तो धरती पर इस संकट से प्रभावित होने वाला पहला देश अफ्रीका नहीं, बल्कि निश्चित तौर पर भारत होगा, क्योंकि तबाही पैदा करने का सारा सामान हमारे पास है। अफसोस की बात है कि ऐसी किसी त्रासदी के होने पर उसका सामना करने के लिए तब हमारे पास कोई व्यवस्था भी नहीं होगी।'

 दुनिया के भिन्न-भिन्न देशों में किए गए शोध और सभी आंकड़े मौजूदा संकट और भावी त्रासदी को लेकर एक ही निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि हर इंसान को इस पर सिर्फ  गंभीरतापूर्वक विचार ही नहीं करना होगा बल्कि इस दिशा में तत्काल कदम उठाने होंगे। हालांकि इन तमाम समस्याओं के बीच खुशी की बात यह है कि कई संस्थाएं इस दिशा में पिछले कई सालों से लगातार कोशिश कर रहीं हैं- बस अगर उन्हें चाहिए तो आपका एक छोटा सा सहयोग। ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए हमें कई स्तरों पर कई चरणों में काम कना होगा।

पहले चरण के तौर पर, पाठाकों से अनुरोध है कि आप सभी ईशा फाउंडेशन के प्रोजेक्ट ग्रीन हैंड्स द्वारा चलाये जा रहे अभियान में हिस्सा लें और अधिक से अधिक लोगों को इसमें हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करें।

प्रोजेक्ट ग्रीन हैंड्स को वृक्षारोपण के लिए 2008 के इंदिरा गांधी पर्यावरण का पुरस्कार से नवाजा गया। ग्रीनहैंड्स परियोजना आपके पेड़ों का रोपण और पोषण करती है, इसके जरिये आप अपने पेड़ के वास्तविक स्थान की जानकारी पा सकते हैं और उस किसान का नाम भी जान सकते हैं जिसने आपका पेड़ लगाया है।

100 रुपये प्रति पेड़ दान कीजिए और अपने पेड़ को बढ़ता देखिए।(इसमें शामिल है रोपण, उसके बाद देखरेख तथा पुन:रोपण- 2 साल तक, जब तक कि आपके पेड़  आत्मनिर्भर न हो जायें)

पेड़ लगाने के लिए देखें: www/giveisha.org/pgh 

कविता : पल्लवी त्रिवेदी नेट से सभार