नदी अभियान रैली मुंबई के बाद अहमदाबाद पहुंची। जानते हैं अहमदाबाद में हुए कार्यक्रम के बारे में और देखते हैं कुछ तस्वीरें। साथ ही जानते हैं रैली के दौरान सद्‌गुरु की दिनचर्या के बारे में

नदी अभियान के दौरान सद्‌गुरु की दिनचर्या

60 वर्ष की आयु में सद्गुरु, 3 सितंबर से गाड़ी चला रहे हैं। और वे इस 16 राज्य से गुजरने वाली यात्रा के 7 राज्यों से गुज़रते हुए 5500 से अधिक किलोमीटर कवर कर चुके हैं।

 वह बस हर पल तैयार हैं! थकान नहीं, थकान का कोई संकेत नहीं। और अभी 10 राज्य बाकी हैं, और कुछ दिन बाकी हैं, जब तक यात्रा 2 अक्टूबर को समाप्त नहीं होती।
इस यात्रा से जागरूकता पैदा हो रही है और भारत का भविष्य, बच्चों का भविष्य आश्वस्त हो रहा है। और वे गाड़ी खुद ही चला रहे हैं। अन्य कारों में दो ड्राइवर हैं, एक आराम करता है और दूसरा ड्राइव करता है। लेकिन उनकी कार में वे अकेले हैं।
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3 सितंबर से वे दिन रात लगातार गाड़ी चला रहे हैं, वे कभी-कभी केवल दो घंटों के लिए सोते हैं, या फिर सोते ही नहीं हैं। वे एक दिन में एक बार खाते हैं। उन्होंने 41 से अधिक बैठकों और कॉन्फ्रेंसिस में भाग लिया है। सभी आधिकारिक और अनौपचारिक प्रेस मीटिंग्स इस गिनती में शामिल नहीं है। वह बस हर पल तैयार हैं! थकान नहीं, थकान का कोई संकेत नहीं। और अभी 10 राज्य बाकी हैं, और कुछ दिन बाकी हैं, जब तक यात्रा 2 अक्टूबर को समाप्त नहीं होती। 60 वर्ष की आयु में, वह फिर से मानवता के सामने ये प्रमाणित कर रहे हैं, कि वह एक सुपर इंसान नहीं है, लेकिन इंसान होना अपने आप में सुपर है।

सद्‌गुरु साबरमती आश्रम में

सद्‌गुरु ने साबरमती आश्रम जाकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित की। इसके बाद वे नदी अभियान रैली के लिए अमदावाद गए।

सद्‌गुरु इस स्थान से काफी प्रभावित थे और उन्होंने लिखा कि “ये स्थान सरलता, समर्पण, प्रतिबद्धता और जीवन के हर पहलू के प्रति भक्ति भाव से भरपूर एक मंदिर है।”
 आश्रम के ट्रस्टियों ने हाथ से बुने हुए खादी के धागों से बना हार पहनाकर उनका स्वागत किया। ये साबरमती आश्रम की परंपरा है।

साबरमती आश्रम साबरमती आश्रम

सद्‌गुरु का साबरमती आश्रम आना वाकई महत्वपूर्ण था, क्योंकि साल 1930  में इसी स्थान से महात्मा ने डांडी मार्च की शुरुआत की थी, जो कि उस स्वतंत्रता आंदोलन का पहला कदम था, जिससे हमें अपनी स्वतंत्रता मिली। कई तरीकों से, नदी अभियान भी हमारे देश में पर्यावरणीय संतुलन लाने की दिशा में पहला कदम है, जिससे भारत आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो सकता है।
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आश्रम घूमने के बाद, ट्रस्टियों की सहायता से सद्‌गुरु ने गांधीजी के चरखे पर कुछ खादी के धागे भी बुने। उसके बाद उन्होंने अन्य प्रदर्शित चीज़ों को देखा जिसके बाद उन्हें आगंतुक नोटबुक में अपनी यात्रा के बारे में लिखने के लिए कहा गया। सद्‌गुरु इस स्थान से काफी प्रभावित थे और उन्होंने लिखा कि “ये स्थान सरलता, समर्पण, प्रतिबद्धता और जीवन के हर पहलू के प्रति भक्ति भाव से भरपूर एक मंदिर है।”

उसके बाद वे साबरमती रिवर फ्रंट के लिए रवाना हो गए, जहां 8000 से ज्यादा दर्शकों के समूह ने उनका स्वागत किया।

 

अतिथियों के संबोधन

मनोज जोशी

"एक ऐसा समय था जब भागीरथ आए थे, और आज कलियुग में भागीरथ के रूप में सद्‌गुरु मौजूद हैं। इस भागीरथ ने हमारी सूखी नदियों को बचाने के लिए भारत यात्रा शुरू की है।"

मनोज जोशी मनोज जोशी

जेना भाई पटेल

"एक भागीरथ थे जो गंगा को पृथ्वी पर लाए, और जो गंगा हिमालय से मैदानों की ओर बहती है। और आज ये भागीरथ उसी गंगा को पुनर्जीवित करने कोयंबतूर से हिमालय की ओर निकल पड़े हैं।"

श्री भूपेन्द्र सिंह मनुभा चुडासमा माननीय मुख्य मंत्री श्री विजय रूपाणी 

माननीय शिक्षा मंत्री

"वे ये अपने लिए नहीं कर रहे बल्कि देश के भविष्य के लिए कर रहे हैं। मैं पूरे दिल से इस पहल के लिए उनका अभिनन्दन करता हूँ।"

श्री विजय रमणीक लाल रूपाणी

गुजरात के माननीय मुख्य मंत्री

ये हमारा सौभाग्य है कि माननीय सद्‌गुरु ने इस नदी अभियान की शुरुआत की है। और वे पूरे देश में नदियों को बचाने के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए रैली कर रहे हैं। अब उन्होंने हमारे गुजरात को पावन किया है। मैं गुजरात के लोगों की ओर से उनका स्वागत करता हूँ और अपना आभार व्यक्त करता हूँ।