शिवांग साधना – 42 दिनों का एक शक्तिशाली व्रत

‘शिवांग’ एक यात्रा है - सृष्टि के एक अंश होने से स्रष्टा का एक अंश बनने तक की। हमारे आस-पास के हर जीवन में वही स्रोत मौजूद है, लेकिन इंसान के जीवन का सबसे बड़ा फायदा, चुनौती या संभावना यह है कि हम अपने भीतर उस स्रोत को पहचान सकते हैं। हम इसे एक चेतन प्रक्रिया में बदल सकते हैं। बाकी कोई जीवन यह नहीं जान सकता कि वह किस चीज से बना है। अगर आप अपने दिल में भक्ति की आग जलाएं, तो आप यहां धरती के एक अंश की तरह नहीं, बल्कि शिव के एक अंग की तरह जीवन जिएंगे। शिवांग साधना पुरुषों के लिए एक शक्तिशाली व्रत है जिसकी अवधि बयालिस दिनों की होती है। शिवांग का अर्थ है ‘शिव का अंग’। सद्‌गुरु द्वारा तैयार यह साधना ध्यानलिंग की ऊर्जा के प्रति ग्रहणशीलता को बढ़ाती है और व्यक्ति शरीर, मन और ऊर्जा में अनुभव के गहन स्तरों की खोज कर सकता है। यह साधना पवित्र वेलंगिरि पर्वत की यात्रा करने और एक शक्तिशाली क्रिया - ‘शिव नमस्कार’ में दीक्षित होने का अवसर भी देती है। महाशिवरात्रि के लिए शिवांग साधना में दीक्षा 1 जनवरी को दी जाएगी, जो उत्तरायण की पहली पूर्णिमा है। यह दीक्षा विश्व भर के कई शहरों में मिल सकती है। साधना 13 फरवरी को महाशिवरात्रि पर ईशा योग केंद्र में समाप्त होगी। एक शिवांग साधक अपना अनुभव साझा कर रहे हैं: ‘जब मेरे दोस्त जतिन ने सबसे पहले मुझे शिवांग साधना के बारे में बताया, तो मेरी पहली प्रतिक्रिया थी, ‘यह कितना बेतुका है की एक बैंक मैनेजर साधना के तौर पर भिक्षा मांगे!’ मगर उसने जिस खुशी और उत्साह से अपना अनुभव बताया था, उसने मेरे दिल के तारों को छू लिया था। और इसलिए इस साल मैंने शिवांग साधना के लिए खुद को रजिस्टर्ड करवाया। तीन दिनों बाद मैं भिक्षा मांगने गया। मैंने जो अनुभव किया, उसने इस पवित्र परंपरा और उसका पालन करने वालों के प्रति मेरे नजरिए को पूरी तरह बदल दिया।

भिक्षा मांगने का पहला दिन

मैं उत्तरी मुंबई के उत्तान में ब्रह्मदेव मंदिर के बाहर खड़ा हो गया सिर झुकाकर, अपना भिक्षापात्र पकड़े हुए और अपने अंदर काफी उत्सुकता लिए हुए। पहले तो कुछ खास नहीं हुआ। मैं खड़ा रहा, भिक्षा मांगी। मैंने इंतजार किया। और फिर, करीब तीस मिनट बाद, मुझे अपनी पहली भिक्षा मिली और मेरे अंदर मानो कुछ पिघलने लगा। फिर एक और व्यक्ति ने मुझे भिक्षा मांगते देखा और मकसद जानना चाहा। इस साधना के बारे में सुनकर, वह अपने दोस्तों को मेरे पास लेकर आया। उन सभी ने मेरे पात्र में कुछ पैसे डाले। मैं हैरान रह गया जब पहले व्यक्ति ने मेरे पैर छुए और आशीर्वाद मांगा। मेरी आंखों से आंसू बहने लगे, किसी तरह मैं बोल पाया, ‘सद्‌गुरु का आशीर्वाद आपके साथ रहे!’ फिर उसने हाथ जोडक़र कहा, ‘आपको आज इक्कीस लोगों से भिक्षा मिलेगी। आपके गुरु आपके पास आएंगे।’

मंदिर का पुजारी भी हुआ अभिभूत

रात 9:30 बजे, पुजारी ने मंदिर बंद कर दिया और उसने भी मेरे भिक्षापात्र में कुछ डाल दिया। अब तक मुझे सोलह लोगों से भेंट मिल चुकी थी। इनमें एक छह साल की बच्ची भी थी जिसने मुझे भिक्षा दी थी। मगर अचानक महिलाओं का एक झुंड मेरी ओर तेजी से आया और मुझे भिक्षा देने के लिए वे कतार बनाकर खड़ी हो गईं। उन्होंने सिर झुका कर पूरी श्रद्धा के साथ भिक्षा दी। मैं अभिभूत हो गया। कतार में मौजूद आखिरी महिला ने पूछा, ‘आप भिक्षा के लिए यहां क्यों खड़े हैं?’ मैंने उन्हें अपनी साधना के बारे में बताया, अपनी कमीज पहनी और वापस घर जाने के लिए तैयार हो गया। मगर उसने बहुत उत्साह से मुझे एक पल के लिए इंतजार करने को कहा। एक मिनट बाद वह महिला पांच पड़ोसियों के साथ लौटी। वे भी भिक्षा देने आई थीं। इन सब के बीच पुजारी वहां खड़ा होकर सारा दृश्य देखता रहा। जब मैं वहां से चलने लगा, तो उसने कहा, ‘कृपया यहां रोज भिक्षा मांगने आया कीजिए!’

सड़क के भिखारियों के साथ भिक्षा मांगने का अनुभव

मैंने अपने जीवन में पहली बार लोगों को इतनी गरिमा से मुझे कुछ देते देखा था, जबकि वे मेरा नाम तक नहीं जानते थे। दूसरी बार भिक्षा मांगते समय मैं बोरिवली के एक मंदिर के पास कुछ भिखारियों के पास खड़ा था। उस दिन पांच घंटे खड़े रहने के बाद सिर्फ तीन लोगों ने मुझे भिक्षा दी। बहुत से लोगों ने हमें अनदेखा किया, मगर यह अनुभव और भी गहन था। चाहे कुछ घंटों के लिए, अपने अहं को एक ओर रखने, अपने पास वाकई कुछ न होने का हल्कापन और अपने आस-पास के समस्त जीवन के प्रति संवेदनशील बना गया। जिन लोगों ने उदारता दिखाई और जिन्होंने नहीं दिखाई, उन दोनों से मैं एक ही साथ पूरी तरह असहाय और पूरी तरह सुरक्षित भी महसूस कर रहा था।’
 

- डेनिश मकवाना, बिजनेस डेवलपमेंट मैनेजर, मुंबई।

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