ईशा ग्रामोत्सवम ग्रामीण जीवन और कायाकल्प का एक जश्न है, जो कोयंबटूर में 4 सितंबर को मनाया जा रहा है। इस उत्सव में ग्रामीण कला, नाटक, संगीत और भोजन की एक विस्तृत प्रदर्शनी के जरिये ग्रामीण तमिलनाडु के मूल-तत्व को प्रोत्साहन दिया जाता है।

सद्‌गुरु बता रहे हैं कि किस तरह खेल वाकई जीवन को बदल सकते हैं और किस तरह उससे तमिलनाडु के ग्रामीण इलाकों में एक बड़ा बदलाव आया है।

सद्‌गुरुअंग्रेजी की उक्ति ‘आर यू गेम’ का मतलब यह है कि ‘क्या आप जीवन के लिए तैयार हैं।’ कोई खेल खेलना शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य और यहां तक कि आध्यात्मिक प्रक्रियाओं के लिए भी बहुत जरूरी है। किसी खेल का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि आप इसे आधे-अधूरे मन से नहीं खेल सकते। आप आधे-अधूरे मन से काम पर जा सकते हैं, आप आधे-अधूरे मन से अपनी शादी भी चला सकते हैं, मगर आधे-अधूरे मन से खेल नहीं सकते। जब तक आप खेल में पूरे मन से शामिल नहीं होंगे, तब तक कोई खेल नहीं होगा।

खेल का सबसे जरूरी हिस्सा है, उसमें पूरी तरह से लीन होना। यही वजह है कि कहीं कोई फुटबॉल मैच होता है और उसकी वजह से दुनिया के दूसरे हिस्सों में बैठे करोड़ों लोग अपने घरों में खड़े होकर चीखते-चिल्लाते हैं। मैच खेल रहे खिलाडिय़ों का खेल के साथ जबर्दस्त जुड़ाव होने की वजह से ऐसा होता है। यह भागीदारी या जुड़ाव हर किसी में जीवन के लिए जरूरी एक मूल भावना भी लाता है।

खेलों की अहमियत यही है, कि एक बार आप उसमें शामिल हो जाते हैं तो फिर बस इतना ही महत्वपूर्ण रह जाता है कि आप कौन हैं और उस वक्त आप क्या कर रहे हैं। आपके पिता कौन थे, इसका कोई महत्व नहीं रह जाता।
कोई भी व्यक्ति कोई खेल तब तक नहीं खेल सकता, जब तक कि वह वाकई जीतना न चाहता हो। साथ ही, अगर आप हार जाते हैं, तो भी उसे स्वीकार करना आना चाहिए। अपनी जीत और अपनी हार, दोनों को पूरी गरिमा के साथ स्वीकार करने का यह गुण अपने जीवन में लाना बहुत जरूरी है।

इसलिए इस धरती पर हर इंसान के जीवन में खेलों को लाना बहुत जरूरी है। खासकर हमारे देश में हम यह पक्का करना चाहते हैं कि हम एक बड़े पैमाने पर खेलों का एक आंदोलन शुरू करें। अगर खेलों को शुरुआती स्तर पर इस्तेमाल किया जाए तो सामाजिक बदलाव, आर्थिक पुनरुद्धार और आध्यात्मिक विकास जैसी बातें समाज में आसानी से लाई जा सकती हैं।

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जीवन का उत्सव  

भारत एक ऐसा देश है, जहां साल के हर दिन एक उत्सव होता था। हमारी पूरी की पूरी संस्कृति हमेशा उत्सव के माहौल में रहती थी। अगर आज खेत जोतने का दिवस है तो यह एक तरह का उत्सव था। कल वृक्षारोपण दिवस है तो दूसरी तरह से जश्न मनाया जाता था। परसों खर-पतवार साफ करने का दिन है तो वह भी उत्सव। फसल कटाई का मौका तो बड़े पैमाने पर मनाया जाता था। लोग वाकई जीवन के लिए तैयार थे और उसके हर पहलू का जश्न मनाते थे।

इतना ज्यादा जश्न मनाने वाली हमारी संस्कृति अब निराशा और कुंठा की स्थिति में पहुंच गई है। गांवों में रहने वाली भारत की आबादी के एक बड़े हिस्से ने जश्न के माहौल को पूरी तरह छोड़ दिया है, और इसकी वजह है पिछली कुछ पीढिय़ों की घोर गरीबी। मगर इस संस्कृति में खेल को शामिल करने पर वह माहौल फिर से वापस लाया जा सकता है।

खेल जीवन के एक उत्साह के साथ इंसान को अपनी सीमाओं से आगे ले जाने के लिए तैयार करने का एक आसान तरीका है। ईशा में हमने अपनी परियोजना “एक्शन फॉर रूरल रेजुवनेशन” - ‘ग्रामीण कायाकल्प कार्य’ के जरिये, ग्रामीण समाज में नई ऊर्जा लाने के लिए, खेल को एक शुरुआती क्रियाकलाप के रूप में इस्तेमाल किया है।

शुरुआत में जब हम अपने कार्यक्रमों और परियोजनाओं के साथ ग्रामीण समुदाय के पास जाते थे, तो जाति और वर्ग के फर्क के कारण हमारा जबर्दस्त विरोध होता था। हमने खेलों को शामिल करने का फैसला किया जिससे बहुत फर्क पड़ा। अब जो भी उस खेल को अच्छी तरह खेलता था, वह गांव में बहुत महत्वपूर्ण हो जाता था। किसी को उसकी जाति, वर्ग या मां-बाप से कोई मतलब नहीं रह जाता था।

खेलों की अहमियत यही है, कि एक बार आप उसमें शामिल हो जाते हैं तो फिर बस इतना ही महत्वपूर्ण रह जाता है कि आप कौन हैं और उस वक्त आप क्या कर रहे हैं। आपके पिता कौन थे, इसका कोई महत्व नहीं रह जाता। हर व्यक्ति को उसकी काबिलियत के लिए जाना जाता है, वह पहले से क्या करता रहा है, इसके कोई मायने नहीं होते। देश में यह सवाल कोई नहीं पूछता कि – “महेंद्र सिंह धोनी की जाति क्या है?”, क्योंकि इसकी किसी को कोई परवाह नहीं है। धोनी मैदान पर क्या करते हैं, हमारे लिए बस वही मायने रखता है।

ग्रामीण तमिलनाडु का रूपांतरण

खेल का एक और अहम पहलू है कि वह लोगों को शारीरिक तौर पर फिट करता है। आज भारत के ग्रामीण समाज में मांसपेशियों और अस्थिपंजर से जुड़ी समस्याएं तीन मुख्य स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है।

शुरुआत में जब हम अपने कार्यक्रमों और परियोजनाओं के साथ ग्रामीण समुदाय के पास जाते थे, तो जाति और वर्ग के फर्क के कारण हमारा जबर्दस्त विरोध होता था। हमने खेलों को शामिल करने का फैसला किया जिससे बहुत फर्क पड़ा।
खेल को शामिल करने के बाद, हम योग को भी ले कर आए और इससे लोगों के रहन-सहन में एक बड़ा बदलाव आया है। लोग सिगरेट-शराब के नशे से बाहर निकले हैं और अब फिट होने के लिए मेहनत कर रहे हैं क्योंकि वे स्पोर्ट्स टीमों में शामिल होना चाहते हैं।

तमिलनाडु के ग्रामीण समाज में खेलों ने लड़के-लड़कियों दोनों में और सभी उम्र के लोगों में जिस तरह की भागीदारी को प्रेरित किया है, वह देखने लायक है। खास तौर पर बहुत सी बुजुर्ग स्त्रियों ने छह-सात साल की उम्र के बाद से अपने जीवन में कोई खेल नहीं खेला है। अब सत्तर साल की उम्र में वे आकर टूर्नामेंटों में शामिल होती हैं। गांवों के बीच होने वाले इन टूर्नामेंटों को देखना बहुत ही सुखद अनुभव होता है, जहां बुजुर्ग महिलाएं युवाओं के साथ खेलकर जीतती भी हैं। यही खेल का चमत्कार है।

यह एक अनोखा आंदोलन है जो तमिलनाडु में शुरू हुआ है और हम चाहते हैं कि सारे देश में ऐसा ही हो। इसका मकसद हार-जीत वाले किसी खेल को विकसित करना नहीं बल्कि हर किसी के जीवन में खेल भावना लाना है, हर किसी को ‘जीवन के लिए तैयार’ करना है।

संपादक की टिप्पणी: ईशा ग्रामोत्सवम 2015 पर नई जानकारियों के लिए हमसे जुड़े रहें। अधिक जानकारी के लिए isha.sadhguru.org पर जाएं।