केवल वोट दे देना काफी नहीं
"लोकतंत्र एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें हर किसी की सक्रिय भागिदारी होनी चाहिए। यह कोई ऐसा खेल नहीं है, जिसमें आप सिर्फ एक दर्शक बने रहें। आप ये सोच कर चुपचाप नहीं बैठे रह सकते कि कोई और इस लोकतंत्र को चलाएगा। लोकतंत्र का मतलब है कि आप खुद बॉस हैं। ...
लोकतंत्र में क्या हमारा फर्ज सिर्फ पांच साल में एक बार वोट देने तक ही सीमित है? ध्यान दें कि हमारी और आपकी सक्रियता लाखों जिंदगी बदल सकती है। आइए जानें कैसे -
हम लोग दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के हिस्से हैं। लोकतंत्र का हिस्सा बनने का मतलब यह नहीं है कि आपने पांच साल में एक बार जाकर वोट डाल दिया। वैसे बहुत सारे लोग तो इतना भी नहीं करते हैं, लेकिन जो लोग वोट देते भी हैं, उनके लिए भी इतना कर देना काफी नही है। लोकतंत्र एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें हर किसी की सक्रिय भागिदारी होनी चाहिए। यह कोई ऐसा खेल नहीं है, जिसमें आप सिर्फ एक दर्शक बने रहें। आप ये सोच कर चुपचाप नहीं बैठे रह सकते कि कोई और इस लोकतंत्र को चलाएगा। लोकतंत्र का मतलब है कि आप खुद बॉस हैं। आपके इर्द-गिर्द जो कुछ भी हो रहा है, उसमें आपको सक्रिय रूप से भाग लेना होगा, आप आंख मूंद कर नहीं रह सकते। जब तक यह जागरूकता और सक्रियता इस देश के आम लोगों में नहीं आएगी, तब तक लोकतंत्र कारगर नहीं हो पाएगा। दूसरी तरफ अगर आप हर बात के लिए विरोध-प्रदर्शन करने लगें, बंद और हड़ताल करने लगें तो यह तकनीक सिर्फ देश को ठप करने के काम आ सकती है। देश को चलाया कैसे जाए, यह एक अलग तरह की तकनीक है।
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महीने में कम से कम एक बार अपने इलाके के किसी खास जगह पर सब लोग इकट्ठे हों और अपने इलाके के काउंसिलर या एम. एल. ए. को वहीं बुलाकर एक मीटिंग करें। इस मीटिंग में उन्हें बताइए कि आपको क्या चाहिए या इलाके में किन-किन कामों को कराए जाने की जरूरत है। एक नेता भी एक आम नागरिक है जिसे एक अस्थाई काम मिला है। पांच साल में एक बार जाकर वोट डाल देने भर से ही आपका काम खत्म नहीं होता। इससे तो यही होगा कि आपने एक शख्स को पांच साल के लिए कुछ काम तो सौंप दिया और फिर उससे एक बार भी नहीं पूछा कि वह कर क्या रहा है? इसका कोई मतलब नहीं है और न ही इससे किसी समस्या का समाधान होगा।
यह बहुत महत्वपूर्ण है कि एक-एक इंसान इस बात को सही संदर्भ में और ठीक तरह से समझ ले। क्योंकि इन चौंसठ सालों में (2011 के समय), यानी दो पीढ़ियों के जीवन काल में, कम-से-कम पचास-साठ फीसदी लोगों के साथ बहुत नाइंसाफी हुई है। आप और हम आज यहां इस बारे में बात करेंगे और फिर घर जा कर बढ़िया खाना खा कर सो जाएंगे। लेकिन तमाम लोग, लगभग चालीस करोड़ लोग ऐसे हैं, जिनके लिए ऐसा कर पाना भी संभव नहीं।
हर भारतीय को यह समझना होगा। अर्थव्यवस्था का मतलब सिर्फ स्टॉक मार्केट नहीं होता, यह उन भूखे लोगों के बारे में है, जिनकी थाली में खाना होना चाहिए। इस संभावना को जोखिम में डाला जा रहा है। मैं जहां भी जाता हूं, दुनिया भर में तमाम आर्थिक और राजनीतिक नेताओं से चर्चा करता हूं। हर नेता कहता है, “हम भारत आना चाहते हैं। भारत एक बहुत बड़ी संभावना है, लेकिन भ्रष्टाचार से होने वाली बेइज्जती – हम बरदाश्त नहीं कर सकते।”
हर दिन उनको जो बेइज्जती झेलनी पड़ती है, जिसके हम तो आदी हो चुके हैं, उसे वे झेलना नहीं चाहते। वे सोचते हैं, “हम कारोबार न कर पाएं तो कोई बात नहीं, हम यहां आ कर इस दलदल में फंसना नहीं चाहते।”
अगर हम अगले पांच-दस साल ठीक ढंग से चला लें, तो हम इस स्थिति को बदल सकते हैं। एक जबरदस्त संभावना हमारे चौखट पर खड़ी है। एक आर्थिक संभावना हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रही है। अगर हम इसको ठीक से सही मौका देंगे, तो हम उन सब लोगों की जिंदगी बदल सकते हैं - वे लोग जिन्होंने ठीक से खाना नहीं खाया, वे बच्चे जो कुपोषित हैं, वे लोग जो शिक्षा नहीं ले पाए, वे लोग जिनके सामने कोई मौके नहीं हैं, वे लोग जो एक भयंकर सामाजिक और आर्थिक गर्त में गिरे हुए हैं, अगर हम अपना काम ठीक ढंग से करें, तो अगले पांच-दस साल में उनकी जिंदगी बदल सकती है।