Sadhguruक्या आपके साथ अक्सर ऐसा नहीं होता? आपको पहले लगता है कि आप बहुत अच्छा कर रहे हैं, तभी अचानक कोई आता है और ऐसे काम करता है कि आपको महसूस होता है कि आप तो मूर्ख हैं।

जीवन के कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जहां हमारी सीखने की पूरी प्रक्रिया सिर्फ इसलिए संभव हो पाती है, क्योंकि अतीत में बहुत सारी चीजें हो चुकी हैं। आप क-ख-ग लिख सकते हैं, क्योंकि आपसे पहले कोई और था, जिसने क-ख-ग लिखा था। अपने आप तो आप क-ख-ग लिख नहीं पाते यानी आपके सीखने की प्रक्रिया किसी और की वजह से है। तो जब आपने लिखना शुरु किया और साथ ही एक और बच्चे ने लिखना शुरु किया, तो यह स्वाभाविक रूप से सवाल उठता है कि कौन बेहतर लिखता है। यह तुलना ठीक है, लेकिन यह आपकी बात नहीं है, बल्कि तुलना इस बात की है कि आप क्या कर सकते हैं, यानी तुलना आपकी क्षमताओं की है। यहां समझने की बात यह है कि आप जो कर सकते हैं, वह यूं ही आपके भीतर से नहीं आ रहा है। आप जो कर सकते हैं, वह इस मानव-जाति के अनुभवों के कारण बाहर आ रहा है। आप अक्षर लिख सकते हैं, यह आपकी वजह से नहीं हैं। आप लिख पा रहे हैं, तो इसकी वजह आपसे पहले की कई पीढिय़ों की भाषा की समझ है। इस तरह तुलना जरूरी हो जाती है क्योंकि तुलना न होने पर अगर आप जीवन में बेक्कुफी भरे काम भी कर रहे होंगे, तब भी आपको यही लगता रहेगा कि आप बहुत बड़ा काम कर रहे हैं। क्या आपके साथ अक्सर ऐसा नहीं होता? आपको पहले लगता है कि आप बहुत अच्छा कर रहे हैं, तभी अचानक कोई आता है और ऐसे काम करता है कि आपको महसूस होता है कि आप तो मूर्ख हैं।

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तुलना करें, लेकिन ध्यान से

तो ऐसी तुलना जरूरी है, नहीं तो हर कोई बेक्कुफी भरे काम करता रहेगा और अपने मन में सोचेगा कि वह तो बहुत महान है। लेकिन यह आपकी बात नहीं है, यह आपकी गतिविधियों की बात है। तमाम गतिविधियों में हम सभी की क्षमताएं अलग-अलग होती हैं। अगर हमारे पास कोई मानदंड (बेंचमार्क) नहीं होगा तो हम अपनी गतिविधियों को सुधार नहीं सकते। हर कोई किसी जुनून की वजह से अपना काम नहीं कर रहा है। अगर ऐसा हो तो निश्चित रूप से वे अपना सबसे बेहतरीन प्रदर्शन करेंगे। लेकिन सबके साथ ऐसा नहीं है। बाकी लोगों को बेहतरीन करने के लिए कुछ मानदंड की जरूरत होती है। मान लीजिए मैं कम ऊंचा कूद रहा हूं, और सोच रहा हूं कि मैं बहुत अच्छा कर रहा हूं। जब मैंने किसी दूसरे शख्स को अधिक ऊंचा कूदते देखा तो मैंने सोचा, अच्छा! इतना ऊंचा भी कूद सकते हैं। मैं भी कोशिश करके देखता हूं। तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। इसकी जरूरत है, नहीं तो हर दिन आप दोबारा से पहिए का आविष्कार कर रहे होंगे। हर दिन आप शून्य से शुरुआत कर रहे होंगे।

कोई आपसे लंबा हो गया, आप उसकी दोनों टांगें काट देंगे। जीने का यह बड़ा ही मूर्खतापूर्ण तरीका है।

अगर यह जानकर आपको कोई परेशानी होती है कि कोई आपसे बेहतर कर रहा है, केवल तभी यह तुलना आपके लिए समस्या बनती है। कोई आपसे बेहतर कर रहा है, यह आपके लिए समस्या नहीं होनी चाहिए। अगर आप परिपक्व होंगे तो आप अच्छे तरीके से किए गए कामों का मजा ले सकेंगे, चाहे वे काम आपने किए हों या किसी और ने। मैं हमेशा ऐसे लोगों को खोजता हूं जो मुझसे बेहतर तरीके से काम कर सकते हों, क्योंकि उससे मेरा जीवन आसान हो जाएगा। मैं ऐसे बेवकूफ लोगों के साथ नहीं रहना चाहता, जो उतनी अच्छी तरह से काम नहीं कर सकते, जितनी अच्छी तरह से मैं। अगर वे मुझसे बेहतर तरीके से काम कर सकते हैं, तो मेरा जीवन आसान और सुंदर हो जाएगा, लेकिन अगर आप क्रू र व्यक्ति हैं, अगर आप एक तानाशाह किस्म के शख्स हैं, तो आप नहीं चाहेंगे कि कोई भी आपसे बेहतर काम करे। तब अगर कोई आपसे तेज दौड़ रहा है तो आप उसकी एक टांग काट देंगे। कोई आपसे लंबा हो गया, आप उसकी दोनों टांगें काट देंगे। जीने का यह बड़ा ही मूर्खतापूर्ण तरीका है। यह बेक्कुफी आपके भीतर इसलिए घर कर गई है, क्योंकि आप हमेशा लोगों को इसी नजरिये से देखते हैं कि आप उनसे बड़े हैं कि छोटे। इसकी वजह यह है कि आप पूरी तरह से इस कोशिश में जुटे हैं कि सबसे ऊपर जाकर बैठा जाए।

दूसरों से आगे रहने की चाह

आपके माता पिता आपको आगे बढऩे के लिए उकसाते हैं, आपका कॉरपोरेट सेक्टर आपको बेहतर करने को उकसाता है तो इसकी सामान्य सी वजह यह है कि उनकी दिलचस्पी चीजों को बेहतर तरीके से करने में नहीं है। वे बस नंबर एक बनना चाहते हैं। अगर कोई चल नहीं सकता, और आप रेंग सकते हैं, तो वे खुश हैं। उनकी दिलचस्पी इस बात में नहीं है कि आप 7 सेकंड में 100 मीटर दौड़ लें, सात सेकंड में अभी तक कोई नहीं दौड़ पाया है। वे तो बस यह चाहते हैं कि आप बाकी लोगों से बस एक इंच आगे रहें। यह एक मूर्खतापूर्ण सोच है, क्योंकि इसका जोर इस बात पर नहीं है कि कोई इंसान अपनी पूरी शक्ति को पहचाने और हर उस संभव चीज को करे, जो वह कर सकता है। यह खेल तो बस दूसरों से एक कदम आगे रहने भर का हो गया है।

यह समस्या इसलिए पैदा हो रही है, क्योंकि आपके भीतर भयंकर असुरक्षा की भावना है। आपका पूरा जीवन इसी में निकल गया कि दूसरों से एक कदम आगे कैसे रहा जाए। ऐसे में आपका जीवन बर्बाद ही होगा, क्योंकि इस बात की पूरी संभावना है कि आप कामयाब नहीं होंगे। कामयाबी की आपकी परिभाषा यह है कि आप किसी दूसरे शख्स से एक कदम आगे रहें। अगर आप बस दूसरों से एक कदम ही आगे रहना चहते हैं तो जाहिर है कि आप अपनी पूरी शक्ति को जान ही नहीं पाएंगे। अगर आप सफ ल नहीं होंगे तो आपको कष्ट होगा। अगर आप कामयाब हो गए तो आपको और ज्यादा कष्ट होगा, क्योंकि लगातार दूसरे लोगों से एक कदम आगे रहने की कोशिश करते रहना जीवन जीने का एक बेहद कष्टपूर्ण तरीका है। असुरक्षा की यह भावना कि कोई आपको खींच कर पीछे कर देगा या कोई दूसरा आपसे आगे निकल जाएगा, आपको जीवन नहीं जीने देती। यह जीवन जीने का बहुत ही डरावना तरीका है।

स्थितियों में से खुशी निचोड़ना बंद करें

हर कोई किसी न किसी चीज को पाने की कोशिश में लगा है। आप इसे नहीं रोक सकते। अगर इंसान कुछ पाने की कोशिश नहीं करेगा तो वह आगे बढ़ ही नहीं पाएगा। ऐसे में सबसे अहम बात यह है कि आप अपने जीवन को अनुभव करने के तरीकों को ठीक करें। आप स्वभाव से आनंदित रहने लगें तो आप जो चाहे करें, आप अपने भीतर इस तरह की अस्वस्थ भावना में नहीं फसेंगे। आप किसी भी तरह की प्रतियोगिता में हिस्सा लें, आप हमेशा आनंद में ही रहेंगे। ऐसे में आप जो भी करेंगे, सबसे अच्छे तरीके से कर पाएंगे। अगर आपका नंबर सबसे आखिरी भी आया तो भी आपको आनंद ही आएगा, क्योंकि आपने अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश की। जब आप अपने स्वभाव से ही आनंदित होते हैं, केवल तभी आप अपने किए गए क्रियाकलाप के आनंद को महसूस कर पाते हैं।

एक नवजात शिशु का भी पेट भरा हो, तो उसे पता है कि आनंदित कैसे रहना है। जब वह भूखा होता है, केवल तभी रोता है, बाकी समय वह आनंद में रहता है। प्रकृति आपको साफ-साफ  बता रही है कि स्वस्थ जीवन जीने के लिए जरूरी अवस्था यही है कि आप आनंदित प्राणी बनें। 

अगर आपकी गतिविधि का मकसद अपने आसपास की स्थितियों में से खुशी निचोडऩे का है, तो एक बार के लिए, अगर आपको सफ लता मिल गई तो आपको खुशी मिलेगी और जब सफ लता नहीं मिलेगी, आपकी हालत दयनीय होगी। आप जिस भी तरह का काम करें, आपका काम कितना भी मामूली हो, दिन में आपको कामयाबी के कितने पल मिल सकते हैं? संभवत: एक भी नहीं। अगर आप जबर्दस्त रूप से सनकी किस्म के शख्स हैं, तो आपको कुछ कामयाबी के पल मिल जाएंगे, क्योंकि कामयाबी का आपका पैमाना यह भी हो सकता है कि अगर आप किसी दरवाजे से दूसरे को धक्का देकर पहले निकल गए तो आपको उपलब्धि का अहसास होता है। अगर आप इससे भी ज्यादा सनकी प्राणी हैं तो हो सकता है कि दिन भर में आपको कामयाबी के आठ-दस पल मिल जाएं। लेकिन अगर आप गहनता चाहते हैं, तो कामयाबी आप तक सालों में एक बार आएगी। तो इस तरह से आप कई साल में एकाध बार आनंद का अनुभव कर पाएंगे। जीवन जीने का यह तरीका सही नहीं है।

एक स्वस्थ जीवन जीने के लिए किसी इंसान को जिन आधारभूत चीजों की जरूरत होती है, बगैर उन पर ध्यान दिए हम जीवन की प्रक्रिया में डूबने की कोशिश कर रहे हैं। सोचकर देखिए, जब एक बच्चा इस दुनिया में आता है तो उसके लिए सबसे बड़ा आनंद क्या होता है? बस उसका पेट भरा हो। एक नवजात शिशु का भी पेट भरा हो, तो उसे पता है कि आनंदित कैसे रहना है। जब वह भूखा होता है, केवल तभी रोता है, बाकी समय वह आनंद में रहता है। तो जीवन की मूलभूत संरचना यही है। प्रकृति आपको साफ-साफ बता रही है कि स्वस्थ जीवन जीने के लिए जरूरी अवस्था यही है कि आप आनंदित प्राणी बनें। यह बात पूरी तरह से पक्की है। इसे नकारा नहीं जा सकता।