तमिलनाडू के लोकप्रिय खेल जलिकट्टू को लेकर आज देशभर में चर्चा हो रही है। इसे बंद करने के पक्ष में तमाम पशु-प्रेमि अपने तर्क दे रहे हैं। लेकिन क्या सचमुच उचित हैं उनके तर्क?

 सद्‌गुरुसद्‌गुरु : स्त्री के लिए जो महत्व सौंदर्य का है, पुरुष के लिए वही महत्व वीरता का है। हमारे देश के ग्रामीण युवा ऐसे कई पहलुओं को खो चुके हैं, जिनके द्वारा वे दैनिक जीवन में अपनी वीरता, कौशल और योग्यता को परख सकते थे और प्रदर्शित कर सकते थे। जलिकट्टू - ग्रामीण तमिल नाडू का एक पारंपरिक खेल – एक ऐसा खेल था जो तमिल युवाओं को अपनी वीरता और अपना कौशल दिखाने का अवसर देता था। सबसे महत्वपूर्ण ये है कि आज की दुनिया में जलिकट्टू ग्रामीण युवाओं को शराब और अन्य नशों से दूर रख रहा था, क्योंकि इस तरह के खेल में सेहतमंद, कुशल और चुस्त बने रहना जरुरी हो जाता है।

ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि जलिकट्टू में भाग लेने वाले सांड को कोई नुकसान पहुंचा हो, या फिर वो मारा गया हो। अगर कभी कोई लहुलुहान होता है, कोई चोटग्रस्त होता है, अगर कोई मारा भी जाता है तो वो इंसान होता है, सांड नहीं होता। वे लोग जो पशु अधिकार और पशुओं के प्रति क्रूरता के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं, अगर वे सच में इस चीज़ के प्रति गंभीर हैं - तो उन्हें सबसे पहले जा कर सारे बूचड़ खाने बंद करवाने चाहिए जो रोज़ लाखों जानवरों की जान ले रहे हैं। क्रूरता का सबसे बुनियादी रूप तो जानवर की हत्या करना है। ऐसा खाने के लिए भी नहीं, निर्यात करने के लिए किया जा रहा है। यह कितने शर्म की बात है कि आज भारत गोमांस का सबसे बड़ा निर्यातक देश बन गया है।

वे जानवर जिन्होंने हमें पोषित किया, जिन्होंने हमारे लिए काम किया, जिन्होंने हमारी धरती को दिन-प्रतिदिन उपजाऊ बनाया, आज हम उन्हें केवल खाने के लिए ही नहीं, निर्यात करने और पैसा कमाने के लिए मार रहे हैं। एक जानवर जिसका दूध हमने अपनी मां के दूध की तरह पीया, हम उसे मारकर दूसरे देशों में भेज रहे हैं। ये बेहद शर्मनाक है। इसके खिलाफ लड़ने की जगह, तमिल नाडू के ग्रामीण युवाओं की एक सरल सी ख़ुशी को छीन लेना ठीक नहीं है।

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