आर्थिक खुशहाली : ग्रामीणों को शिक्षित करनेे में निवेश करना होगा
अनुमान है कि अगले 20 सालों में भारत में काफी आर्थिक प्रगति होगी। इस प्रगति में मदद करने के लिए आज कौन से कदम उठाये जा सकते हैं? जानते हैं कि कैसे ग्रामीण आबादी को रूपांतरित करके हम भविष्य में लाभ उठा सकते हैं
अनुमान है कि अगले 20 सालों में भारत में काफी आर्थिक प्रगति होगी। इस प्रगति में मदद करने के लिए आज कौन से कदम उठाये जा सकते हैं? जानते हैं कि कैसे ग्रामीण आबादी को रूपांतरित करके हम भविष्य में लाभ उठा सकते हैं
आर्थिक रूप से हमने अपनी राश्ट्रीय सीमाओं को वैश्विक अर्थव्यवस्था के सामने मिटा दिया है। विश्व की आर्थिक गतिविधियों की दुनिया में आज राश्ट्रीय सीमाओं के लिए कोई जगह नहीं बची है। एक बार जब इसकी शुरुआत हो गई तो फिर हम जो भी करते हैं तो उसे अंतरराश्ट्रीय मानदंडों के मतुाबिक होना चाहिए, वर्ना हम इस दुनिया में अपना अस्तित्व नहीं बचा पाएंगे। सबसे बड़ी बात, एक पीढ़ी के तौर पर यह पहला मौका होगा, जहां हमारी पीढ़ी की एक विशाल आबादी को एक जीवनस्तर से उठकर दूसरे जीवनस्तर में जाने का मौका मिला है। हमसे पहले शायद ही कभी किसी पीढ़ी को यह मौका मिला होगा।
लोगों के जीवन स्तर को सुधारने का मौका
लोगों को लगता है कि सौ साल पहले भारत की आर्थिक स्थिति अच्छी थी। लेकिन अगर आप हकीकत पर गौर करेंगे तो देखेंगे कि वह दौर राजा महाराजाओं का था, जिसमें ढेर सारी दौलत और बड़े व आलीशान महल हुआ करते थे, लेकिन ये सारी चीजें चंद लोगों के हाथों तक ही सीमित थीं।
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हमारी आबादी ही हमारी पूँजी है
हमारे पास आज जो भी पूंजी है, वह हमारी आबादी है। अभी तक हम अपनी आबादी को हमेशा अभिशाप समझते आए हैं। दरअसल, हम आबादी का मतलब 120 करोड़ मुँह और 120 करोड़ पेट ही समझते हैं। लेकिन ऐसा सोचते समय हम यह भूल जाते हैं कि हमारे पास 240 करोड़ हाथ व 120 करोड़ दिमाग भी हैं। अगर हमारे पास सुशिक्षित व एकाग्रित दिमाग हों और सुशिक्षित हाथ हों तो 120 करोड़ की यह आबादी दुनिया में लोगों की एक जबरदस्त ताकत के रूप में सामने आ सकती है। लोग कहते हैं कि अगले बीस सालों में भारत दुनिया की महाशक्ति बन जाएगा। महाशक्ति होने का मतलब अब सबसे ज्यादा हथियार या बम रखने वाली ताकत नहीं रहा। महाशक्ति का मतलब है कि हमारे यहां सबसे ज्यादा शिक्षित और कुशल/सक्षम लोगों के होने से है और भारत में इसकी संभावना है। दरअसल, इसे साकार कर दिखाने के लिए हमारे पास पर्याप्त आधार होने के साथ-साथ जरूरी संस्कृति भी है।
काम को बाहर भेजना पड़ सकता है
पिछले कुछ सालों में सॉफ्टवेयर और आउटसोर्सिंग क्रांति ने भारत के दरवाजे पर दस्तक देकर भारतीय अर्थव्यवस्था को बड़ी छलांग लगाने में खासी मदद की है। जिस तरह आज अर्थव्यवस्था बढ़ रही है, कुछ सालों में आप देंखेगे कि हमें अपने कामों को दूसरे देशों में आउटसोर्स करना पड़ेगा। उस समय हमारे पास काम करने वाले लोग नहीं होंगे, क्योंकि तब अपने यहां कुशल और क्षमतावान काम करने वालों की कमी होगी।
ईशा विद्या का लक्ष्य है ग्रामीणों को तैयार करना
इसी चीज को ध्यान में रखते हुए हमने ईशा विद्या स्कूलों की स्थापना की। आज अंग्रेजी बोलने वाली व कंप्यूटर की जानकार आबादी हमारी सबसे बड़ी जरूरत है। ईशा विद्या स्कूलों के जरिए गांवों में ऐसे लोगों को तैयार करना ही हमारा उद्देश्य है। फिलहाल हमारा उद्देश्य व लक्ष्य तमिलनाडु के सभी बत्तीस जिलों में एक ऐसा ही अंग्रजी माध्यम व कंप्यूटर की जानकारी देने वाला स्कूल खोलने का है। इन बत्तीस स्कूलों को खोलने के पीछे हमारा उद्देश्य देश को यह दिखाना भी है, कि कर अगर कोई करना चाहे तो देश के हर हिस्से ऐसे स्कूल खोले जा सकते हैं।
देश का कॉर्पोरेट जगत और बड़े उद्योग आसानी से इस लक्ष्य को लेकर साकार कर सकते हैं। युवा आबादी की शिक्षा व स्वास्थ्य में निवेश करना समाजसेवा नहीं है।
ग्रामीणों तक अंग्रेज़ी को पहुंचाना होगा
बेहतर अर्थव्यवस्था के मौके से चूकने से बचने के लिए जो पहली चीज हम तुरंत कर सकते हैं, वह है देश की ग्रामीण आबादी तक अंग्रेजी शिक्षा के ज्ञान को पंहुचाना। कायदे से तो यह काम आज से पंद्रह साल पहले ही हो जाना चाहिए। हालाँकि तब ऐसा नहीं हो पाया, लेकिन कम से कम अब इसे हो जाना चाहिए।