ये तो गंदगी का लेन-देन है
अकसर शिकायत की जाती है कि भारतीय युवा पश्चिमी संस्कृति से बहुत ज्यादा प्रभावित हैं। क्या है इसकी वजह, क्या है सही और क्या गलत आइए जानते हैं सद्गुरु के विचार -
प्रश्न: भारत के युवा पश्चिमी संस्कृति को अपना रहे हैं। क्या हमें इसे स्वीकार कर लेना चाहिए या इस चलन को रोकना चाहिए?
सद्गुरु:
आज का युवा जिस चीज के संपर्क में आ रहा है, वह पश्चिमी संस्कृति नहीं है। यह तो पश्चिमी संस्कृति की गंदगी है, यह उस संस्कृति की महत्वपूर्ण चीजें नहीं हैं। पश्चिमी संस्कृति की असली ताकत, उनकी काम के प्रति ईमानदारी, तार्किक क्षमता और उनका शिष्टाचार है। इनमें से कुछ भी हमारे युवा नहीं अपना रहे हैं। बस वहां की गंदगी यहां आ रही है। कोकाकोला, शराब, ड्रग्स और शोर-शराबा, जिसे आप संगीत कहने लगे हैं, बस यही सब तो वहां से आ रहा है।
Subscribe
युवा का अर्थ है कि उनका निर्माण अभी पूरा नहीं हुआ है। वे अभी तक कुछ बन नहीं पाए हैं। जो लोग बनने की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं, उनके पास उन लोगों की अपेक्षा अधिक संभावनाएं हैं, जो कुछ बन चुके हैं। आप कुछ बन कर उसी में अटक गए हैं जबकि वे अब भी संभावनाएं तलाश रहे हैं। चूंकि वे सभी संभावनाओं को नाप-तौल रहे हैं, इसलिए ऐसा लगता है कि वे उलझे हुए हैं। आापके माता-पिता ने भी यही सोचा होगा कि आप उलझे हुए हैं। जो लोग बड़े हो चुके हैं, वे यह नहीं समझ पाते कि बच्चे जो बड़े हो रहे हैं, वे अभी भी संभावनाएं तलाश रहे हैं।
सबसे बड़ी बात है, कि पिछली पीढियां खासतौर से पिछली दो-तीन पीढियां अपनी आने वाली पीढ़ियों को यह जताने में नाकाम रहीं हैं, कि हमारे पास जो सांस्कृतिक धरोहर है, वो कितना बेश कीमती है। क्योंकि अपनी धरोहर को खुद आपने ही कभी नहीं छुआ है। आप खुद ही उन बातों को अपने जीवन में नहीं उतार पाए हैं। और अब आप पश्चिम की नकल की बातें कर रहे हैं, जबकि आपकी भी हर चीज अब पश्चिमी है। आपकी शर्ट पश्चिमी है, आपकी पैंट पश्चिमी है, आपके बालों का स्टाइल पश्चिमी है। आपका पश्चिमी करण सिर्फ उस सीमा तक हुआ, जहां तक आपने हिम्मत दिखाई। आज युवा पीढ़ी कुछ कदम और आगे जा रही है। वैसे भी नई पीढ़ी को वे कदम उठाने ही चाहिए, जिन्हें उठाने की हिम्मत पिछली पीढ़ी में नहीं थी। आपमें क्या बचा है जो भारतीय है? हो सकता है आप आज भी भारतीय खाना खा रहे हों और युवा पीढ़ी को जंक फूड पसंद आ रहा है। उन्हें मैक्डॉनल्ड पसंद है और आप अभी भी सांभर खा रहे हैं। मुझे बताइए, क्या कोई बड़ा फर्क है?
अमेरिका में बसे भारतीयों की दूसरी पीढ़ी के कुछ युवा अब मेरे साथ वापस आ रहे हैं, क्योंकि उन्हें यहां की संस्कृति में भरपूर गुण नजर आते हैं। आप नई पीढ़ी को बस यहां के गुण दिखाइए, उन्हें बदलने की कोशिश मत कीजिए। अगर आप उन्हें यहां की संस्कृति की कीमत बताना नहीं जानते, तो कोई नहीं बदलेगा। उनसे यह मत कहिए - पिज़्ज़ा मत खाओ, डोसा खाओ। ऐसा कहने पर तो वे सिर्फ पिज़्ज़ा ही खाएंगे।
यह लेख ईशा लहर अक्टूबर 2013 से उद्धृत है।
आप ईशा लहर मैगज़ीन यहाँ से डाउनलोड करें या मैगज़ीन सब्सक्राइब करें।