इस्तेमाल करो और फेंक दो
जब हम किसी चीज का इस्तेमाल करते हैं तो कभी सोचते हैं उसके इस्तेमाल के प्रति हमारा नजरिया क्या है? क्या हमारा मकसद सिर्फ अपना काम निकालना है? अगर ऐसा है तो जरूरत है एक बार गंभीरता से सोचने की। सोचिए एक बार और पढ़िए इस संबंध में सद्गुरु के विचार-
आज के समाज का नजरिया है 'यूज एंड थ्रो'यानी इस्तेमाल करो और फेंक दो। इस्तेमाल करके फेंक देना आसान काम है, लेकिन यह नजरिया निश्चित रूप से आध्यात्मिक प्रक्रिया को नष्ट कर देगा।
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एक चंचल दिमाग से जीवन के रहस्यों को उजागर नहीं किया जा सकता। इसके लिए एक समर्पित प्रेम की जरूरत होती है, इसके बिना आप इस सृष्टि के मर्म को नहीं जान पाएंगे। जिस व्यक्ति के मन में अस्थिरता है, जिसका मन एक चीज से दूसरी चीज पर उछल कूद कर रहा है, उसे कोई फल प्राप्त नहीं होगा। उसके दिमाग में सिर्फ यादें बची रहेंगी। उसका दिमाग समझने का यंत्र नहीं होगा, वह तो बस बेकार की चीजों को इकट्ठा करने वाला एक गोदाम बन जाएगा। अगर इस मन के बटोरने की आदत को, ग्रहण करने की आदत में रूपांतरित करना है, तो सबसे पहले उसे प्रेम का दिखावा करने की स्थिति से समर्पित प्रेम की अवस्था में आना होगा। यही वजह है कि युगों से लोग भक्ति की बात करते आ रहे हैं। लेकिन आज के समाज का नजरिया है 'यूज एंड थ्रो' यानी इस्तेमाल करो और फेंक दो। इस्तेमाल करके फेंक देना आसान काम है, लेकिन यह नजरिया निश्चित रूप से आध्यात्मिक प्रक्रिया को नष्ट कर देगा।
यूज़ एंड थ्रो का चलन
जब हम बच्चे थे, तो उन दिनों 'इस्तेमाल करो और फेंकदो' का चलन इतना ज्यादा नहीं था। उन दिनों राशन का सामान अखबार की थैली में सुतली से बांध कर मिलता था। मेरा परिवार आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ नहीं था। हम अच्छे खासे खाते पीते लोग थे, फिर भी मेरी मां हर बार उस सुतली को जो सामान के साथ आती थी, अच्छे तरीके से गोला बनाकर एक जगह रख देती थी। हर अखबार को सफाई से मोडक़र एक जगह रख देती थी। फिर बाद में उन्हें बार-बार इस्तेमाल में लाया जाता था। कभी सुतली का गोला बाजार से खरीद कर नहीं आया, बस घर में पहले से रखी उन चीजों को ही इस्तेमाल में लाया जाता था। यहां बात सुतली की नहीं है, ना ही बात पैसे बचाने की है। यह बात है अपने आसपास मौजूद हर चीज को सम्मान देने की। यह बात है एक खास तरीके से जीने की। यह बात है बिल्कुल प्रकृति जैसा होने की।
धरती मां ने कभी कोई चीज नहीं फेंकी। वह सब कुछ अपने भीतर समा लेती है, किसी भी चीज को बाहर नहीं फेंकेगी। मरे हुए लोगों को धरती ने बाहर फेंक दिया हो, ऐसा कभी नहीं होता। हर चीज का बार-बार प्रयोग किया जाता है। यह इस धरती का ही नहीं, पूरी प्रकृति का, पूरे अस्तित्व का नियम है। आध्यात्मिक प्रक्रिया अस्तित्वगत प्रक्रिया से अलग नहीं है। जिस तरह से ईश्वर का हाथ काम करता है, उसी तरह से मेरा मन काम करता है, मेरी भावनाएं काम करती हैं, मेरा शरीर भी काम करता है। अगर ऐसा है फिर तो आप बस पहुंच गए!
इस्तेमाल करो और फेंक दो में बदलाव लाना होगा
इस धरती पर आप थोड़े समय के लिए ही हैं। घबराइए नहीं, मैं आपके मरने की कामना नहीं कर रहा हूं, लेकिन आपको पता ही है कि हम सब यहां थोड़े से समय के लिए ही हैं। अगर हम सौ साल भी जीवित रहें तो भी बाकी सभी चीजों की तुलना में यह थोड़ा सा ही समय है। इस अस्तित्व के पैमाने पर देखें तो यह महज एक पल की तरह नजर आएगा।
तो आप जहां कहीं भी हैं, जीवन के जिस भी क्षेत्र में आप हैं, उसमें जो भी इस्तेमाल करो और फेंक दो होता है, उसे अचानक मत बदल डालिए। इसे संबंधित व्यक्ति की नजर में लाइए और अगर आप ही वह व्यक्ति हैं तो इस पर गौर कीजिए कि इसे कैसे बदला जा सकता है। कोई भी चीज 'इस्तेमाल करो और फेंक दो' नहीं होनी चाहिए। इसकी शुरुआत आप कागज से कर सकते हैं, फिर आप कलम पर, फिर और चीजों पर आते हैं और फिर आप इंसानों तक आ पाएंगे। यह 'इस्तेमाल करो और फेंक दो' की बात इंसानों पर भी लागू होती है। क्या दुनिया भर के लोगों के मन में यह सोच नहीं आ गई है कि लोगों का फायदा उठाओ और फिर उन्हें नजरंदाज कर दो। इसलिए इस सोच में बदलाव हर क्षेत्र में लाना होगा।