आज के समाज का नजरिया है 'यूज एंड थ्रो'यानी इस्तेमाल करो और फेंक दो। इस्तेमाल करके फेंक देना आसान काम है, लेकिन यह नजरिया निश्चित रूप से आध्यात्मिक प्रक्रिया को नष्ट कर देगा।

अगर इस मन के बटोरने की आदत को, ग्रहण करने की आदत में रूपांतरित करना है, तो सबसे पहले उसे प्रेम का दिखावा करने की स्थिति से समर्पित प्रेम की अवस्था में आना होगा। यही वजह है कि युगों से लोग भक्ति की बात करते आ रहे हैं।
इस सृष्टि का हर कण अपने आप में अनूठा होता है, लेकिन बात यह भी है कि जब यह कण किसी नई ऊर्जा के प्रभाव में आता है, तो इसमें तेजी के साथ बदलाव आता है। सृष्टि का आधार यही है। निर्वात या शून्य की स्थिति को ऊर्जा का पहला चरण कहते हैं। इस निर्वात से तेजी के साथ कुछ घटित होता है। जब कभी कोई कण ऊर्जा के नए अनुभव के प्रभाव में आता है, वह तुरंत बदल जाना चाहता है। इन कणों को अपने पुराने तौर तरीकों या अवस्था के साथ कोई लगाव नहीं होता। वे पूरी तरह बदल जाना चाहते हैं। मुझे लगता है कि अगर हम भौतिक विज्ञान को अपने लिए इस्तेमाल करने की बजाय उसको सही संदर्भ में देखें तो लोगों के लिए यह एक अच्छी आध्यात्मिक प्रक्रिया है। लोगों को यह समझ आएगा कि इस जगत में हर कण कैसे व्यवहार कर रहा है, मैं स्थूल कणों की बात कर रहा हूं, दिव्य कणों की नहीं। स्थूल कण किस तरीके से व्यवहार कर रहे हैं, अगर हर कोई इस बात को समझ ले और उसकी नकल करने लगे, तो वह आध्यात्मिक हो जाएगा। यह बड़ी साधारण सी बात है जिसे मैं लंबे समय से कह रहा हूं। हर परमाणु, हर कण एक द्वार है। अगर गौर से देखें तो, आपको हर कण एक द्वार की तरह नजर आएगा। लेकिन इस द्वार को खोलने के लिए थोड़ा ध्यान देना पड़ता है।

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एक चंचल दिमाग से जीवन के रहस्यों को उजागर नहीं किया जा सकता। इसके लिए एक समर्पित प्रेम की जरूरत होती है, इसके बिना आप इस सृष्टि के मर्म को नहीं जान पाएंगे। जिस व्यक्ति के मन में अस्थिरता है, जिसका मन एक चीज से दूसरी चीज पर उछल कूद कर रहा है, उसे कोई फल प्राप्त नहीं होगा। उसके दिमाग में सिर्फ यादें बची रहेंगी। उसका दिमाग समझने का यंत्र नहीं होगा, वह तो बस बेकार की चीजों को इकट्ठा करने वाला एक गोदाम बन जाएगा। अगर इस मन के बटोरने की आदत को, ग्रहण करने की आदत में रूपांतरित करना है, तो सबसे पहले उसे प्रेम का दिखावा करने की स्थिति से समर्पित प्रेम की अवस्था में आना होगा। यही वजह है कि युगों से लोग भक्ति की बात करते आ रहे हैं। लेकिन आज के समाज का नजरिया है 'यूज एंड थ्रो' यानी इस्तेमाल करो और फेंक दो। इस्तेमाल करके फेंक देना आसान काम है, लेकिन यह नजरिया निश्चित रूप से आध्यात्मिक प्रक्रिया को नष्ट कर देगा।

यूज़ एंड थ्रो का चलन

जब हम बच्चे थे, तो उन दिनों 'इस्तेमाल करो और फेंकदो' का चलन इतना ज्यादा नहीं था। उन दिनों राशन का सामान अखबार की थैली में सुतली से बांध कर मिलता था। मेरा परिवार आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ नहीं था। हम अच्छे खासे खाते पीते लोग थे, फिर भी मेरी मां हर बार उस सुतली को जो सामान के साथ आती थी, अच्छे तरीके से गोला बनाकर एक जगह रख देती थी। हर अखबार को सफाई से मोडक़र एक जगह रख देती थी। फिर बाद में उन्हें बार-बार इस्तेमाल में लाया जाता था। कभी सुतली का गोला बाजार से खरीद कर नहीं आया, बस घर में पहले से रखी उन चीजों को ही इस्तेमाल में लाया जाता था। यहां बात सुतली की नहीं है, ना ही बात पैसे बचाने की है। यह बात है अपने आसपास मौजूद हर चीज को सम्मान देने की। यह बात है एक खास तरीके से जीने की। यह बात है बिल्कुल प्रकृति जैसा होने की।

धरती मां ने कभी कोई चीज नहीं फेंकी। वह सब कुछ अपने भीतर समा लेती है, किसी भी चीज को बाहर नहीं फेंकेगी। मरे हुए लोगों को धरती ने बाहर फेंक दिया हो, ऐसा कभी नहीं होता। हर चीज का बार-बार प्रयोग किया जाता है। यह इस धरती का ही नहीं, पूरी प्रकृति का, पूरे अस्तित्व का नियम है। आध्यात्मिक प्रक्रिया अस्तित्वगत प्रक्रिया से अलग नहीं है। जिस तरह से ईश्वर का हाथ काम करता है, उसी तरह से मेरा मन काम करता है, मेरी भावनाएं काम करती हैं, मेरा शरीर भी काम करता है। अगर ऐसा है फिर तो आप बस पहुंच गए!

हर चीज का बार-बार प्रयोग किया जाता है। यह इस धरती का ही नहीं, पूरी प्रकृति का, पूरे अस्तित्व का नियम है।
लेकिन अब इंसानी जीवन टुकड़े-टुकड़े हो गया है, दिमागों में सनक घुस रही है और इसकी वजह यही है कि हम प्रकृति के ताल से ताल मिला कर काम नहीं कर रहे हैं। यह कोई पर्यावरण संबंधी प्रोजेक्ट नहीं है। यह एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है। अगर आप खूब ध्यान करते हैं तो आप स्वाभाविक रूप से वैसे ही हो जाएंगे, लेकिन इसके बारे में आपको जागरूक होना चाहिए।

इस्तेमाल करो और फेंक दो में बदलाव लाना होगा

इस धरती पर आप थोड़े समय के लिए ही हैं। घबराइए नहीं, मैं आपके मरने की कामना नहीं कर रहा हूं, लेकिन आपको पता ही है कि हम सब यहां थोड़े से समय के लिए ही हैं। अगर हम सौ साल भी जीवित रहें तो भी बाकी सभी चीजों की तुलना में यह थोड़ा सा ही समय है। इस अस्तित्व के पैमाने पर देखें तो यह महज एक पल की तरह नजर आएगा।

तो आप जहां कहीं भी हैं, जीवन के जिस भी क्षेत्र में आप हैं, उसमें जो भी इस्तेमाल करो और फेंक दो होता है, उसे अचानक मत बदल डालिए। इसे संबंधित व्यक्ति की नजर में लाइए और अगर आप ही वह व्यक्ति हैं तो इस पर गौर कीजिए कि इसे कैसे बदला जा सकता है। कोई भी चीज 'इस्तेमाल करो और फेंक दो' नहीं होनी चाहिए। इसकी शुरुआत आप कागज से कर सकते हैं, फिर आप कलम पर, फिर और चीजों पर आते हैं और फिर आप इंसानों तक आ पाएंगे। यह 'इस्तेमाल करो और फेंक दो' की बात इंसानों पर भी लागू होती है। क्या दुनिया भर के लोगों के मन में यह सोच नहीं आ गई है कि लोगों का फायदा उठाओ और फिर उन्हें नजरंदाज कर दो। इसलिए इस सोच में बदलाव हर क्षेत्र में लाना होगा।