आइए, सबसे पहले यह समझ लें कि “शादी-ब्याह किसलिए?” मनुष्य के रूप में, चाहे मर्द हों या औरत, आपकी कुछ जरूरतें होती हैं। आठ बरस की उम्र में आपसे अगर मैंने शादी के बारे में पूछा होता तो आपके लिए इस सवाल का कोई मतलब नहीं होता। है न? चौदह बरस की उम्र में पूछा होता तो शायद आप थोड़ा शरमा जाते, क्योंकि उस उमर में शादी का खयाल आपके मन को गुदगुदा जाता। चूंकि आपका शरीर एक खास तरीके से बढ़ने लगा और हॉरमोन्स आपकी बुद्धि को बहकाने लगे थे, इसलिए यह खयाल आपके जहन में रेंगने लगा था। अगर मैंने अट्ठारह की उम्र में पूछा होता, तो चौदह से अट्ठारह के बीच अपने तजुर्बे के आधार पर आप या तो साफ-साफ कह देते, “हां”, या “नहीं”, या “अभी नहीं”, या फिर “बिलकुल नहीं”।

कुछ समाजों में युवा वर्ग शादी को बुरा मानने लगा है। जवानी के जोश में आप इसके खिलाफ होते हैं, क्योंकि आपका भौतिक शरीर एक खास अंदाज में होता है। उस वक्त शादी एक बंधन लगती है, एक जंजीर की तरह दिखती है।

व्‍यक्तिगत आजादी के अपरिपक्‍व समझ के कारण दुनिया के कुछ हिस्सों में शादी को एक गलत नजरिये से देखा जाने लगा है। कुछ समाजों में युवा वर्ग शादी को बुरा मानने लगा है। जवानी के जोश में आप इसके खिलाफ होते हैं, क्योंकि आपका भौतिक शरीर एक खास अंदाज में होता है। उस वक्त शादी एक बंधन लगती है, एक जंजीर की तरह दिखती है। आप हर चीज अपने अंदाज में करना चाहते हैं। लेकिन धीरे-धीरे जब शरीर कमजोर पड़ने लगता है, तब आपको लगने लगता है कि काश, साथ निभाने वाला कोई जीवन साथी होता! है न? यह एक नाबालिग सोच है: जब आप ताकतवर हैं, आपको किसी की जरूरत नहीं और जब आप कमजोर पड़ जाते हैं, तब आप ख्‍वाब देखने लगते हैं कि काश, मेरा साथ देनेवाला कोई होता! यह ठीक नहीं है, मेरा मानना है कि जोड़ी तब बनानी चाहिए, जब आप एकदम चुस्त-दुरुस्त और हर तरह से खुशहाल हों। जब आपकी दशा बिगड़ती है तो आप अपनी व्‍यग्रता में कोई अच्‍छा जीवनसंगी नहीं ढूढ़ पायेंगे। जब आप तंदुरुस्त हों, आपकी खुशहाली चरम पर हों तभी आपको जीवनसाथी ढूढ़ना  चाहिए जो जिंदगी के तमाम ऊबड़-खाबड़ उतार-चढ़ावों में आपका साथ निभाये। जीवनसाथी तभी बनानी चाहिए जब आप खूब खुशहाल हों।

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यह अच्छी बात होगी अगर इन सब मुकामों से गुजरने के बाद आप शादी के बारे में खुद सवाल करें। सवाल मुझे या आपके मां-बाप को नहीं करना चाहिए। आप खुद से यह सवाल पूछें, “क्या मुझे शादी करनी चाहिए?” एक मनुष्य के रूप में आपकी कई जरूरतें हैं – शारीरिक, भावनात्मक, मानसिक, सामाजिक और आर्थिक। लोग शायद इन चीजों पर गहराई से गौर नहीं करना चाहते, क्योंकि उनका मानना है कि इन बातों से शादी भद्दी हो जायेगी। बहरहाल, इन जरूरतें और विचारों को आप नजरअंदाज नहीं कर सकते ये तो अपनी जगह हैं ही।

जब आप तंदुरुस्त हों, आपकी खुशहाली चरम पर हो तभी आपको जीवनसाथी ढूढ़ना  चाहिए जो जिंदगी के तमाम ऊबड़-खाबड़ उतार-चढ़ावों में आपका साथ निभाये।

इस नये जमाने की औरत के लिए दुनिया बहुत बदल गयी है। उसकी नजर में सामाजिक और आर्थिक जरूरतों के लिए शादी जरूरी नहीं रह गयी है। उसके सामने कई विकल्प हैं। वह अपने आर्थिक हालात से निबट सकती है और सामाजिक दर्जे के लिए लड़ सकती है। सौ साल पहले ऐसा नहीं था। अब थोड़ी आजादी मिल चुकी है। शादी करने के कम-से-कम दो कारण अब नहीं रहे हैं। अब आपको बाकी तीन कारणों पर गौर करना होगा। मनोवैज्ञानिक रूप से क्या आपको एक जीवनसाथी की जरूरत है? क्या आपको किसी का भावनात्मक साथ चाहिए? और आपकी शारीरिक जरूरत कितनी सख्‍त है? आपको इन सब चीजों के बारे में एक आजाद इंसान की तरह सोचना होगा। यह कोई सामाजिक फरमान नहीं है कि हर-किसी को शादी करनी होगी या कोई भी शादी न करे। अब ऐसे काम नहीं चलेगा।

एक व्‍यक्ति के रूप में आपकी जरूरतें कितनी सख्‍त हैं? क्या यह जरूरत चंद दिनों की है जो समय के साथ गायब हो जायेगी? अगर ऐसा है तो मैं कहूंगा कि आप शादी मत कीजिए। क्योंकि तब फिर इस रिश्‍ते का कोई मतलब नहीं बनता। अगर शादी करते हैं तो सिर्फ दो जनों के इस जोड़े को ही नहीं पूरे परिवार को उसका नतीजा भुगतना होगा। मैं यह नहीं कह रहा कि शादी करना गलत है। सवाल यह है कि क्या यह आपकी जरूरत है। हर इंसान को इस पर खुद सोच-विचार करना चाहिए। शादी इसलिए नहीं करनी चाहिए कि यह समाज का दस्तूर है।