कैसे बनाएं रिश्तों को खूबसूरत? भाग-2
अगर आपका शरीर किसी संबंध की तलाश करे तो इसे हम काम-वासना कहते हैं। अगर मस्तिष्क संबंध तलाशे तो भाईचारा या साहचर्य, भावनाएं की तलाश को प्रेम और ऊर्जाओं की तलाश को योग कहते हैं।
आपके शरीर, दिमाग और भाव कुछ इस तरह से बने है कि इन्हें संबंधों की आवश्यकता पड़ती ही है। यह सब कुछ किसी दूसरे के साथ एक हो जाने की कोशिश है। आप हर स्थिति में किसी दूसरे के साथ एक होने की चेष्टा कर रहे हैं क्योंकि आप अभी जो भी हैं, सिर्फ उतना ही काफी नहीं है। किसी और के साथ आप एक कैसे हो सकते हैं ? आपने शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक तौर पर पूरी कोशिश कर ली है। लगता है कि आप सब कुछ हासिल करने वाले थे, लेकिन कहीं न कहीं कोई कमी रह गई। इन तीनों चीजों को आप आजमा चुके हैं। ये चीजें आपको उस अनुभव के नजदीक तो ले जाती हैं, लेकिन आप पूरी तरह एक नहीं हो पाते। फिर आपके अंदर हमेशा एक तड़प बनी रहती है। यह इच्छा लोगों के लिए एक मधुर अनुभव बन सकती है और वे इस इच्छा के आदी हो सकते हैं।
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फिर किसी के साथ एक हो जाने की इच्छा को पूरा करने का क्या तरीका है ? दरअसल, एक हो जाने की यह चाहत किसी एक के साथ एकात्म हो जाने भर से रुकने वाली नहीं है बल्कि और बढ़ जाएगी। आप पूर्णता का अनुभव करना चाहते हैं।
पहले तो यह बताइए कि वह क्या है जिसे आप ‘मैं’ कहते हैं? आपके लिए यह जानने का क्या आधार है कि यह मैं हूं और यह मैं नहीं हूं। इंद्रियबोध ही है न। आपके इंद्रियबोध के दायरे में जो कुछ भी है, वह आप हैं और जो कुछ भी इस इंद्रियबोध से बाहर है, वे दूसरे हैं। किसी और को अपने जीवन के हिस्से के तौर पर शामिल करने की इच्छा ही रिश्ते या संबंध कहलाती है। जो कुछ भी आपकी इंद्रियबोध की सीमाओं के भीतर है, उसे आप स्वयं या मैं के तौर पर महसूस करते हैं। "मैं” के तौर पर आप जो महसूस करते हैं, वह आपको स्वर्ग जैसा लगता है और जो बाकी दूसरी चीजें हैं वे नरक के समान। तो उस स्वर्ग को अनुभव करना, स्वर्ग के उस हिस्से को अपने जीवन में लाना कुछ और नहीं बल्कि संबंध बनाने का आधार है। अपने रिश्तों को एक सच्चा आशीर्वाद बनाया जा सकता है जहां न कोई तड़प होगी, न कोई रगड़ होगी।
योग की पूरी प्रक्रिया इसी बारे में है। योग शब्द के मायने हैं जुड़ना। अब अगर आप अपने आसपास के जीवन को अपने हिस्से के रूप में अनुभव करने लगते हैं। अब जीने का तरीका ही बदल जाएगा। अब आपके संबंध खुद की जरूरतों के बारे में नहीं बल्कि दूसरों की आवश्यकताओं की ओर ध्यान देने का जरिया बन जाएंगे, क्योंकि अब आपकी खुद की जरूरतें ही नहीं है। अगर आपके भीतर कोई मजबूरी नहीं रहती, तो आप सबकुछ एक खास जागरूकता में एक खास तरह की चेतना में करते हैं। अगर आपके भीतर संबंध बनाने की मजबूरी या दबाव खत्म हो जाता है, तो आप हर काम पूरी चेतना के साथ करेंगे। ऐसे में संबंध आपके लिए एक सच्चे आशीर्वाद के जैसे हो जाएंगे। फिर रिश्तों में कोई तड़प नहीं होगी, कोई रगड़ नहीं होगी।