सद्‌गुरुहम कब खाएं और कितना खाएं – यह तो बहुत लोग जानते हैं और बताते भी हैं, लेकिन यह भी जानना जरुरी है कि हमें कहां का उगाया हुआ भोजन करना चाहिए।

प्रश्न: सद्‌गुरु, आप मानव तंत्र और खगोलीय ज्यामिति के बीच संबंध की बात बताते हैं। क्या शरीर का धरती के उस खास भाग से भी कोई संबंध होता है, जहां वह मौजूद है? उदाहरण के लिए जमैकावासी बहुत अच्छे धावक होते हैं। कोई व्यक्ति जिस जगह पर बड़ा होता है, क्या उस खास जगह का उस पर असर पड़ता है? क्या इसीलिए हमें स्थानीय भोजन खाने के लिए कहा जाता है?

सद्‌गुरु: मानव-तंत्र जिस गहराई से काम करता है, उस पर निश्चित रूप से स्थान का असर पड़ता है। यह हर दूसरे जीवन पर भी लागू होता है। जो पौधे और पशु दक्षिणी भारत में बहुत आराम से पनपते हैं, वे न्यूयार्क के आस-पास या दुनिया के उस हिस्से में नष्ट हो जाएंगे क्योंकि वहां जीवन अलग तरह से विकसित हुआ है।

 अगर आप उसी इलाके में उगा हुआ खाना खाते हैं, जहां आप रहते हैं, तो आपके शरीर और धरती के बीच एक लगातार संपर्क बना रहता है। अभी भी आप जहां बैठे हैं, उस जगह पर बैठे हुए, आपका शरीर और धरती का वह हिस्सा, जिस पर आप बैठे हुए हैं, एक दूसरे पर बहुत गहन प्रभाव डाल रहे हैं।  
 इसकी वजह सिर्फ मौसम या धूप या ठंड की मात्रा नहीं है। इनका भी बहुत असर पड़ता है, लेकिन एक खास तरह से जीवन के विकसित होने का संबंध उस स्थान से होता है।
यह तथ्य मानव विज्ञान में साबित हो चुका है कि जब लोगों की कोई खास नस्ल बिल्कुल अलग भौगोलिक स्थान पर जाकर बसती है, तो उनके शरीर में पाई जाने वाली कई नस्ली विशेषताएं धीरे-धीरे बदलने लगती हैं। समय के साथ, एक स्पष्ट बदलाव सामने आता है, उस हद तक, जहां आप भूल जाते हैं कि उनका पिछला रूप-रंग कैसा था। भारत में लंबे समय तक नस्ली मेलजोल होता रहा है। लेकिन आप देख सकते हैं कि धरती के इस स्थान पर रहने से उनका शारीरिक रूप-रंग कैसे पूरी तरह बदल गया है। यह जरूर है कि तापमान, मौसम, जिस तरह का भोजन वे खाते हैं, इन चीजों का भी असर पड़ता है।

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दुर्भाग्यवश, कुछ इंसान हर अंतर को एक भेद-भाव में बदल देते हैं। वरना अगर आप इस धरती पर पैदा होने वाले इंसानों और जीवन रूपों के विभिन्न प्रकारों का अध्ययन करें, तो यह अद्भुत और अविश्वसनीय है। इसके बारे में जानने के लिए ढेर सारी चीजें हैं।

हमें आकार देने वाली शक्तियां

इस धरती पर जीवन के लिए काम करने वाली शक्तियां अलग-अलग अक्षांशों में अलग-अलग तरह से काम करती हैं। यह शरीर के विकास पर असर डालती है।  

धरती के संपर्क में रहना हमारी सेहत और खुशहाली का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है।
जीवन का कोई अंश जिस तरह का आकार-प्रकार ग्रहण करता है, उसके अनुसार उसकी क्षमताएं भी बिल्कुल अलग तरह की होती हैं। भारत की अक्षांश और देशांतर रेखाएं इसके निवासियों को बाहर की जगह भीतर की ओर केंद्रित करती हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि दूसरे लोग भीतर की ओर नहीं मुड़ सकते – हर कोई ऐसा कर सकता है। मगर निश्चित तौर पर दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में रहने पर शरीर अलग-अलग रूपों में सक्षम बनता है। ऐसा नहीं है कि अगर आप एक जगह से दूसरी जगह चले जाएं, तो अगले दो सालों में आपकी हर चीज बदल जाएगी, जब तक कि आप बदलने के लिए इच्छुक न हों। आप विरोध कर सकते हैं, मगर आपके विरोध के बावजूद आपके अपने जीवनकाल में भी आपके अंदर बदलाव होंगे क्योंकि आप बिल्कुल अलग स्थान पर जाकर बस गए हैं।

इस तरह के बदलाव को नापना बहुत मुश्किल है क्योंकि सांस्कृतिक प्रभाव और दूसरे सामाजिक प्रभाव इतने ज्यादा हैं और वे एक-दूसरे में इतने गुंथे हुए हैं कि आप उन्हें एक-दूसरे से अलग नहीं कर सकते। लेकिन मान लीजिए हम आज की तरह यात्राएं शुरु करने से पहले दुनिया को देख पाते, तो फिर आप इस बदलाव को साफ-साफ देख पाते – कि किस तरह धरती ने दुनिया के किसी खास हिस्से में एक खास तरह का जीवन पैदा किया है। यह हर जीवन रूप पर लागू होता है और निश्चित रूप से इंसानों पर भी।

भोजन का योगिक तरीका

योग में, भोजन के बारे में यह कहा जाता है कि एक दिन में आप पैदल जितनी दूरी तय कर सकते हैं, आपको उतने ही दायरे के भीतर उगने वाली चीजें खाना चाहिए। आपको ऐसा भोजन नहीं करना चाहिए, जो आपसे काफी दूर उगाया गया हो क्योंकि आपका शरीर मुख्य रूप से इस धरती का एक अंश है। अगर आप उसी इलाके में उगा हुआ खाना खाते हैं, जहां आप रहते हैं, तो आपके शरीर और धरती के बीच एक लगातार संपर्क बना रहता है। अभी भी आप जहां बैठे हैं, उस जगह पर बैठे हुए, आपका शरीर और धरती का वह हिस्सा, जिस पर आप बैठे हुए हैं, एक दूसरे पर बहुत गहन प्रभाव डाल रहे हैं।

इसी वजह से धरती के संपर्क में रहना हमारी सेहत और खुशहाली का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है। योग केंद्र में हम हमेशा उन लोगों से बगीचे में काम करवाते हैं, जिनकी सेहत अच्छी नहीं है ताकि वे लगातार मिट्टी के संपर्क में रहें। आधुनिक स्पा में मिट्टी के साथ इस संपर्क ने खुद को मड बाथ तक सीमित कर लिया है। आपको किसी न किसी रूप में संपर्क में रहना चाहिए। चाहे आप इसे कैसे भी करें, मड बाथ से, मिट्टी में काम करते हुए, फर्श पर सोते हुए, या और कुछ करते हुए – मुख्य रूप से आप उसके संपर्क में रहने की कोशिश कर रहे हैं।

खुशहाली के लिए खाना

भोजन एक लेन-देन है। जो चीज धरती में थी, उसे आप अपने शरीर के अंदर ले रहे हैं। अगर आप जिस इलाके में रहते हैं, उसी इलाके में पैदा होने वाला भोजन खाएं, तो आपका शरीर सबसे अच्छी तरह काम करेगा। मान लीजिए, आप जमीन के एक टुकड़े पर रहते हैं, खुद अपना भोजन उगाते हैं और खाते हैं। फिर एक महीने में आपको अपने शरीर की सेहत में बदलाव बहुत साफ देखने को मिलेगा। अगर सिर्फ यह सरल चीज कर ली जाए, तो मेरे ख्याल से हम धरती पर कैंसर की घटनाओं में पचास से साठ फीसदी कमी ला सकते हैं। अगर हम जिस धरती पर रहते हैं, उसके संपर्क में रहें और जिस इलाके में आप रहते हैं, वहीं पर उगा भोजन खाएं, कहीं और पर उगाया हुआ नहीं, तो कैंसर की घटनाएं कम से कम पचास फीसदी कम हो सकती हैं।

अभी अगर मैं नाश्ता करने जाऊं, तो वह भोजन न्यूजीलैंड, वियतनाम या पता नहीं कहां से आया होगा। हम चीजों को दुनिया भर में भेज रहे हैं और ऐसे सुपरमार्केट हैं, जो दुनिया भर की चीजें आपको बेच रहे हैं। मगर यह सब हम खुशहाली के लिए नहीं, मजे के लिए ज्यादा कर रहे हैं।