दियों की रोशनी और पटाखों की आवाज... क्या है इनका राज?
दिवाली पूरे भारत में बड़े ही धूम-धाम से मनाई जाती रही है। रोशनी और पटाखे इसके अभिन्न अंग रहे हैं, लेकिन क्या है इनका औचित्य, क्या है इनसे लाभ,आइए जानते हैं सद्गुरु से-
दिवाली पूरे भारत में बड़े ही धूम-धाम से मनाई जाती रही है। रोशनी और पटाखे इसके अभिन्न अंग रहे हैं, लेकिन क्या है इनका औचित्य, क्या है इनसे लाभ,आइए जानते हैं सद्गुरु से-
भारतीय संस्कृति में एक समय ऐसा भी था जब साल का हरेक दिन एक उत्सव होता था, यानि साल में 365 त्यौहार।
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दिवाली का मकसद भी जश्न के उसी पहलू को आपके जीवन में लाना है। लोग इसी वजह से पटाखे चलाते हैं ताकि उनके अंदर थोड़ी आग जल सके, थोड़ी जिवंतता आ सके। इसका मकसद यह नहीं है कि सिर्फ एक दिन मौज-मस्ती की, फिर सब कुछ खत्म। हमारे भीतर हर दिन ऐसा ही होना चाहिए। अगर हम सिर्फ बैठे भी हों, तो हमारी जीवन ऊर्जा, दिल, दिमाग और शरीर एक पटाखे की तरह फूटते रहें, रोशन होते रहें। अगर आप अपने भीतर से एक सीले हुए पटाखे की तरह हैं, तो आपको रोजाना किसी बाहरी पटाखे की जरूरत पड़ेगी।
दिवाली रोशनी का त्यौहार है। आप देखते हैं कि दिवाली पर हर शहर और गांव हजारों दीयों की रोशनी में जगमगा रहा है। मगर यह सिर्फ बाहर दीये जलाने का उत्सव नहीं है, आपको अपने अंदर रोशनी लानी होगी। रोशनी का मतलब है, स्पष्टता। स्पष्टता के बिना आपका कोई भी गुण आपके लिए वरदान नहीं, बल्कि अभिशाप बन सकता है। जैसे स्पष्टता के बिना आत्मविश्वास बहुत घातक होता है। आज दुनिया में बहुत सारा काम स्पष्टता के बिना किया जा रहा है।
एक दिन एक अनाड़ी पुलिसवाला पहली बार किसी शहर में अपने एक अनुभवी साथी के साथ गश्त कर रहा था। उन्हें रेडियो पर एक संदेश मिला जिसमें कहा गया कि एक सड़क पर कुछ लोगों का एक झुंड आवारागर्दी कर रहा है। उन्हें तितर-बितर करना था। वे उस सड़क पर गए जहां उन्होंने एक कोने में कुछ लोगों को खड़े देखा। कार के नजदीक आने पर, नए पुलिसवाले ने बड़े जोश से कार का शीशा नीचे किया और कहा, ‘सुनो, तुम सब लोग उस कोने से बाहर निकलो।’ लोगों ने उलझन में एक-दूसरे की ओर देखा। फिर वह और जोर से चिल्लाया, ‘तुम लोगों ने सुना नहीं? मैंने कहा कि सारे वहां से हट जाओ।’ वे सब तितर-बितर हो गए। अपनी पहली ड्यूटी के दिन लोगों पर ऐसे असर से खुश होकर उसने अपने अनुभवी साथी से पूछा, ‘क्या मैंने ठीक से काम किया?’ उसका साथी बोला, ‘यह देखते हुए बुरा नहीं है कि वह एक बस स्टॉप था।’