सद्‌गुरुहम जीवन में शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आर्थिक व ऊर्जा के स्तर पर बंधन बनाते हैं। क्या मुक्ति की ओर जाने के लिए हमें इन बंधनों को तोड़ना होगा? जानते हैं कि मुक्ति पाने  के लिए हमारे बन्धनों में कुछ विशेष गुण होने चाहिएं...

बंधन - चेतन या अचेतन दोनों ही रूपों से बनते हैं

वे सभी चीजें जो इंसान के जीवन को पूर्ण बनाती हैं, वे सभी पहलू जो किसी इंसान को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, उनमें से एक पहलू बेहद महत्वपूर्ण है, जिसे आधुनिक समाज ने पूरी तरह से अनदेखा कर दिया है, वह है - किसी बंधन में बंधना। जब मैं बंधन की बात करता हूं तो मेरा मतलब है - हम अपनी पांचों ज्ञानेंद्रियों के संपर्क में आने वाली हर चीज से जाने-अनजाने, चेतन या अचेतन रूप से एक खास तरह का बंधन बना लेते हैं। यह बंधन सिर्फ अपने आसपास के लोगों से ही नहीं होता, जिस धरती पर हम चलते हैं, जिस हवा में हम सांस लेते हैं, हर वो चीज जो हम देखते, सूँघते, सुनते, चखते और स्पर्श करते हैं, उससे भी होता है।

ऋणानुबंध - ऊर्जा भी शामिल होती है इन बंधनों में

दरअसल, ये सारी चीजें तब तक नहीं हो सकती, जब तक हम इनमें कुछ मात्रा में ऊर्जा न लगाएं।

इस ऊर्जा के निवेश से एक जुड़ाव आता है, एक बंधन बनता है। संस्कृत में इसे ‘ऋणानुबंध’ कहते हैं। ऋणानुबंध का मतलब है - भरण-पोषण का बंधन।
आप किसी चीज को तब तक देख नहीं सकते, ढंग से सुन नहीं सकते, स्वाद या स्पर्श का अनुभव नहीं कर सकते जब तक आप उसमें कुछ ऊर्जा न लगाएं। इस ऊर्जा के निवेश से एक जुड़ाव आता है, एक बंधन बनता है। संस्कृत में इसे ‘ऋणानुबंध’ कहते हैं। ऋणानुबंध का मतलब है - भरण-पोषण का बंधन। यह बंधन इंसान के जीवन के लिए जरुरी है। जो खाना हम खाते है, जो पानी हम पीते हैं, जिस हवा में हम सांस लेते हैं, केवल वही चीजें इंसान के लिए काफी नहीं हैं, इंसान को एक स्तर की योग्यता, क्षमता और सक्रियता से जीवन को जीने के लिए जुड़ाव की जरूरत भी होती है।

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सन्यासी - केवल एक विशेष तरह का बंधन

आध्यात्मिक परंपरा में शुरू से ही यह बिल्कुल स्पष्ट रहता है कि ‘क्या करना है’। जिन लोगों को इस बात की परवाह नहीं होती कि वे क्या निर्माण करते हैं और क्या नहीं, उन लोगों को सिर्फ अपनी भीतरी प्रकृति की चिंता होती है, ऐसे लोग संन्यासी बन जाते हैं।

जब आप सचेतन रूप से कोई बंधन चाहते और बनाते हैं, तो आप उस बंधन के पीछे का कारण और मकसद अच्छी तरह समझते हैं। उस स्थिति में जो भी तमाशा या नौटंकी हो, बंधन कभी अपने मकसद से भटकता नहीं, क्योंकि यह बंधन सचेतन तैयार किया गया होता है।
इसका मतलब हुआ कि उन्होंने सारे बंधन खत्म कर दिए। कोई बंधन नहीं, सिर्फ एक बंधन है और कोई दूसरा नहीं। लेकिन जो लोग कुछ करना व निर्माण करना चाहते हैं, उन्हें सही तरह के जुड़ाव की जरूरत होती है। अगर कोई ऋण ही नहीं होगा तो आपमें बहुत दूर जाने की इच्छा को कोई पोषण नहीं मिलेगा। जीवन में कुछ बड़ा करने का कारण ही नहीं होगा। जब हम ऋण या ऋणानुबंध की बात करते हैं - लोग शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आर्थिक व ऊर्जा बंधन बनाते हैं। इंसान अपने जीवन में कई तरह के बंधन बना सकता है, लेकिन अगर वह इन सबसे परे जाना चाहता है तो उसे खास तरह के बंधनों की जरूरत होती है। जब वह बिल्कुल अलग स्तर के बंधन तैयार करता है, तब अपने जीवन और अपने आस-पास के चीजों के निर्माण की उसकी क्षमता कई गुना बढ़ जाती है।

मैं आपको एक बात बताना चाहूंगा। जिस पल मुझे याद आ गया कि मुझे अपने जीवन के साथ क्या करना है, जिस पल मेरे सामने यह पूरी तरह स्पष्ट हो गया कि मुझे क्या बनाना है, उसी पल से मैं अपने पुराने बंधनों की तलाश में जुट गया - अतीत से जुड़ी वही जगहें, वही पुराने कई लोग। अगर आप सफलतापूर्वक किसी ऐसी चीज का निर्माण करना चाहते हैं, जो वाकई मूल्यवान हो तो ये बंधन बेहद महत्वपूर्ण हो जाते हैं। वर्ना जीवन में कोई वास्तविक बंधन या जुड़ाव न होने की वजह से यह जिंदगी छोटी-छोटी चीजों में निकल जाती है।

आज बंधन पोषक की तरह काम नहीं करते

आधुनिक समाज ऐसी ही समस्याओं से गुजर रहे हैं। उनका शारीरिक लगाव एक व्यक्ति के साथ है, उनकी भावनाएं कहीं और होती हैं, उनका मन किसी और के साथ है और इस तरह से सारी चीजें गड्डमड्ड हो जाती हैं।

आज के समय में एक ही बंधन से तीनों-चारों जरूरतों को पूरी करना एक बहुत बड़ी बात हो गई है। अगर ऐसा है तो बंधन एक पोषक की तरह काम नहीं करता, बल्कि एक उलझन की तरह काम करता है।
आज के समय में एक ही बंधन से तीनों-चारों जरूरतों को पूरी करना एक बहुत बड़ी बात हो गई है। अगर ऐसा है तो बंधन एक पोषक की तरह काम नहीं करता, बल्कि एक उलझन की तरह काम करता है। ऋणानुबंध बेहद फलदायी भी हो सकते हैं और बहुत ज्यादा उलझाने वाले और विनाशकारी भी हो सकते हैं। जब आप सचेतन रूप से कोई बंधन चाहते और बनाते हैं, तो आप उस बंधन के पीछे का कारण और मकसद अच्छी तरह समझते हैं। उस स्थिति में जो भी तमाशा या नौटंकी हो, बंधन कभी अपने मकसद से भटकता नहीं, क्योंकि यह बंधन सचेतन तैयार किया गया होता है। लेकिन जब हम मजबूर करने वाली जरूरतों को लेकर बंधन बनाते हैं, तो समय के साथ स्वाभाविक तौर पर ये बंधन हमें उलझनों में डाल देते हैं।

गुरु के साथ बंधन कभी नहीं बांधता

तो सचेतन बंधन और मजबूरी में बने बंधन, ये दोनों अलग-अलग आयाम हैं।

गुरु के साथ बंधन के पीछे यही सोच है कि जब सही वक्त आएगा तो वह हर हाल में उस बंधन को विलीन कर देंगे।
आध्यात्मिक प्रक्रिया को एक विशेष तरीके से तैयार करने के पीछे मकसद ही यही है कि हमारे अंदर सचेतन बंधन ही हो। गुरु के साथ बंधन के पीछे यही सोच है कि जब सही वक्त आएगा तो वह हर हाल में उस बंधन को विलीन कर देंगे। अगर आप सचेतन रूप से किसी और के साथ बंधे हैं और जब जरुरत का पल आता है, और आप अगर उसे खत्म करना चाहें भी तो दूसरा पक्ष इसके लिए तैयार नहीं होता। इस बंधन को परिपूर्णता के स्तर तक ले जाने के योग्य बनना भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके बिना हम जीवन में कुछ बड़ा और महत्वपूर्ण काम नहीं कर पाते।