पिछले सात दिनों से ईशा योग केंद्र में हो रहे अध्‍यात्‍म और संगीत के संगम का हाजारों लोग आनंद उठा रहे हैं। कभी वे संगीतकारों की धुन पर थिरकते हैं तो कभी वातावरण में मौजूद ईश्‍वरीय कृपा को पाकर विभोर हो जाते हैं।

23 फरवरी (चौथा दिन )

कलाकार- एन विजय शिवा

प्रस्‍तुति- कार्नेटिक गायन

कार्नेटिक गायक एन विजय शिवा विख्यात गायक डी के जयरमन के शिष्य हैं और उन्होंने महान डी के पट्टमल से भी तालीम हासिल की है। बचपन से विलक्षण प्रतिभा के धनी वह मुश्किल से तीन साल के थे, जब उन्होंने राग पहचानने की अपनी क्षमता दिखाई। उन्होंने अपनी माता कार्नेटिक गायिका और शिक्षिका अखिला शिवा से भी संगीत सीखा।

गणेश के एक छोटे से आवाहन के बाद, विजय शिवा ने दो अपेक्षाकृत छोटे गीतों से शुरुआत की। पहला था राग चित्त रंजिनी में संत त्यागराज का नाद तनुमनीषम, जिसमें संत शिव को ‘नाद तनु’ अर्थात नाद के निरंतर विस्‍तार की प्रतिमूर्ति के रूप में देखते हैं। अगला गीत राग बेगडा में पलानी के भगवान मुरुगा को समर्पित था – इन्नम परामुखम, जिसकी रचना दुरइस्वामी कवि रयार ने की है। इसमें कवि दुखी होकर भगवान से पूछता है, “आपने अब भी मुंह फेर लिया है, क्या यह अच्छी बात है?”

इस कलाकार ने ईशा की मीडिया टीम से मिलने के लिए थोड़ा समय निकाला और कहा, “मैं इससे पहले भी ईशा योग केंद्र आया हूं। इन पहाड़ियों में आते हुए, मन बिल्कुल शांत हो जाता है और आप समझ जाते हैं कि आप ईश्वरीय शक्ति की मौजूदगी में हैं।''

संगीत और आध्यात्मिकता के बीच परस्पर संबंध के बारे में पूछे जाने पर, विजय शिवा ने बताया कि किस तरह भारत में पहले शास्त्रीय कलाओं को मानव मन को संवेदनशील बनाने वाला माना जाता था: “हम अच्छाई और बुराई दोनों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं, इसीलिए हमें संगीत के जरिये ईश्वर पर ध्यान देने की सलाह दी जाती थी ताकि हम खुद ब खुद अच्छाई को ग्रहण कर सकें।”

24 फरवरी (पांचवा दिन )

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.

कलाकार- पंडित कुशाल दास

प्रस्‍तुति- हिंदुस्तानी, सितारवादन

हिंदुस्तानी शैली के सितारवादक पंडित कुशाल दास प्रतिभाशाली संगीतकारों के परिवार से ताल्लुक रखते हैं: उनके पिता सैलेन दास और चाचा शांतनु दास प्रतिष्ठित सितारवादक थे और उनके दादा बिमल दास एक प्रसिद्ध इसराज वादक थे।

पंडित दास ने अपनी प्रस्तुति राग मिश्र शिवरंजिनी में एक बहुत सुंदर ‘धुन’ से समाप्त की। उन्होंने प्रसिद्ध हिंदी गीत ‘मेरे नैना सावन भादो’ से एक पंक्ति गाकर मानो राग का भाव स्मरण किया और फिर उस धुन को विस्तार में पेश किया। पूरा कंसर्ट के दौरान श्रोता एक बहुत खूबसूरत समां में बांधे रहे।

उससे पहले आज ब्लॉग टीम से बात करते हुए, उन्होंने कहा, “यहां आकर बहुत अच्छा लग रहा है। मैंने इस कार्यक्रम के तय होने से पहले भी इस जगह के बारे में काफी कुछ सुन रखा था।”

उन्होंने संगीत के अपने सफर के बारे में बताया, “हमारी शास्त्रीय परंपरा में हमें राग को एक व्यक्ति मानने की सीख दी जाती है। हम उसके अधिक से अधिक नजदीक जाने की कोशिश करते हैं। एक बार एक खास अंतरंगता और दक्षता पा लेने के बाद, वह वाकई आपको ध्यान की अवस्था में पहुंचा सकता है।”

उन्होंने एक दिलचस्प कहानी सुनाई: “मैं इस मामले में खुशकिस्मत रहा हूं कि अपने जीवन में एक-दो बार भाव समाधि की गहन अवस्थाओं में चला गया हूं। एक बार मैं इटली की यात्रा पर था। किसी ने मुझसे पूछा कि क्या किन्हीं खास रागों को गाने या बजाने से बारिश होती है और दीप जलते हैं। मैंने हंसते हुए कहा कि मियां तानसेन जैसे महान उस्ताद ऐसा कर पाते थे। उस शाम बाद में मैंने दर्शकों से कहा कि मैं राग मेघ बजाने वाला हूं जो मानसून का राग है लेकिन उससे बारिश होने की उम्मीद न करें। मैंने बजाना शुरू किया और उसके बाद मुझे कुछ भी याद नहीं। मैं दो घंटे तक बजाता रहा। जब मैं रुका तो दर्शक दम साधे बैठे थे। मैंने भी स्तब्धता में उनकी ओर देखा। धीरे-धीरे उन्होंने तालियां बजानी शुरू की। फिर किसी ने ऑडिटोरियम का दरवाजा खोला, बाहर झमाझम बारिश हो रही थी। बाद में मुझे पता चला कि बारिश का पूर्वानुमान नहीं था और बारिश सिर्फ तीन-चार किलोमीटर के घेरे में हुई थी। मैंने अपने गुरु से पूछा कि ऐसा कैसे संभव हुआ।” उन्होंने मुझसे पूछा, ‘क्या तुम्हें याद है कि तुमने क्या बजाया था?’ मैंने कहा, “नहीं, मैं भाव समाधि में था।” उन्होंने जवाब दिया, “फिर ऐसा संभव है।”

25 फरवरी (छठवां दिन )

कलाकार- राकेश चौरसिया और शशांक सुब्रह्मण्यम

प्रस्‍तुति- बांसुरीवादन

 आज के दोनों कलाकार बहुत ही प्रतिभासंपन्न हैं। मुख्य रूप से कार्नेटिक शैली में बजाने वाले शशांक सुब्रह्मण्यम ग्रैमी में नामांकित बांसुरीवादक हैं। वह बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी रहे हैं और उन्होंने छह वर्ष की उम्र से ही मंच पर प्रदर्शन करना शुरू कर दिया था। उन्होंने अपने पिता और शास्त्रीय गायकों आर के श्रीकांतन, पालघट केवी नारायणस्वामी से प्रशिक्षण लिया और साथ ही हिंदुस्तानी शैली के शास्त्रीय गायक पंडित जसराज से भी सीखा। हिंदुस्तानी शैली के बांसुरीवादक राकेश चौरसिया भी बचपन से विलक्षण प्रतिभा के धनी रहे हैं। वह महान बांसुरीवादक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया के भतीजे और शिष्य हैं। उनकी शैली पर अपने गुरु का प्रभाव होते हुए भी एक व्यक्तिगत छाप है। दोनों ने जुगलबंदी प्रस्तुत किए।

इन संगीतकारों ने शाम की प्रस्तुति खूबसूरत कार्नेटिक राग वाचस्पति से शुरू की। उन्होंने रूपक और तीन ताल में संगीत संयोजन के साथ आलाप, जोर और झाला प्रस्तुत किया। शशांक छोटी, पतली बांसुरी इस्तेमाल करते हैं जो कार्नेटिक शैली में इस्तेमाल की जाती है, जिसकी ध्वनि तेज और महीन होती है और राकेश चौरसिया लंबी, मोटी बांसुरी इस्तेमाल करते हैं जिसकी ध्वनि मंद और गहरी होती है। “कभी हम बांसुरी की अदला-बदली करेंगे,” राकेश ने मजाक में कहा।

जुगलबंदी का हिस्सा बनना बहुत चुनौतीपूर्ण हो सकता है। उसमें बहुत आदान-प्रदान होता है और दोनों एकल वादकों के बीच एक तरह के तालमेल से यह प्रक्रिया बेहतर होती है। दिलचस्प बात यह थी कि इन दोनों कलाकारों के बीच एक अद्भुत तालमेल था – उन दोनों से बातचीत भी एक तरह की जुगलबंदी जैसी लगी। एक के बोलने पर दूसरा सहमति में सिर हिलाता, दोनों एक ही तरह के विचार व्यक्त करते और एक-दूसरे के वाक्यों को पूरा करते।

26 फरवरी (सातवां दिन)

कलाकार – डॉ अश्विनी भिडे देशपांडे

प्रस्‍तुति- हिंदुस्तानी, गायन

यक्ष महोत्‍सव के अंतिम दिन अतिप्रतिभावान और मशहूर हिंदुस्‍तानी गायक डॉ अश्विनी भिडे देशपांडे ने अपनी प्रस्‍तुति दी। इनका तबला पर साथ दे रहे थे पं कुशल दास। डॉ देशपांडे का ईशा योग केंद्र में यह पहला आगमन था जबकि पं कुशल दास पहले भी यहां भ्रमण कर चुके हैं।

डॉ देशपांडे ने कहा, 'योग केंद्र का भ्रमण मेरे लिए अह्लादकारी और दिव्‍य अनुभव रहा है। अंतर की खोज करना हमेशा से भारतीय परंपरा रही है। पर अब ये वक्‍त की मांग बन गई है। हमारे लिय यह सौभाग्‍य की बात है कि हमें यह विरासत मिली है फिर भी हमें एक ऐसे व्‍यक्ति की आवश्‍यकता होती है, जो हमें हमारी उस विरासत की याद दिलाए जो इतनी समृद्ध और भव्‍य रही है। हमारे लिए यह गौरव की बात है कि सद्गुरु जैसे लोगों का हमें सानिध्‍य प्राप्‍त है जो इन मूल्‍यों को पुन: स्‍थापित कर रहे हैं।'

संपादक की टिप्‍पणी:  महाशिवरात्रि  महोत्‍सव का सीधा प्रसारण आप इस ब्‍लॉग पर देखेंगे कल 27 फरवरी को शाम 6 बजे से सुबह 6 बजे तक।