Sadhguruहमारी संस्कृति त्यौहारों की संस्कृति रही है। ऐसी व्यवस्था इसलिए रची गई थी क्योंकि हम चाहते थे कि हमारे जीवन में उत्साह और उल्लास बना रहे। अगर हमारे भीतर उत्साह होगा तो हम हर चीज़ के साथ पूरी तरह जुड़ पाएंगे, और साथ ही उस चीज़ को लेकर बहुत ज्यादा गंभीर भी नहीं होंगे...

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यह त्यौहार बहुत रूपों में शुभ है। कहा जाता है कि इस दिन यदि किसी को धन की जरूरत हो, तो उसके घर लक्ष्मी आती है। अगर किसी को सेहत चाहिए, तो शक्ति आती है। अगर किसी को शिक्षा चाहिए, तो सरस्वती उसके घर पधारती हैं। कुल मिलाकर यह त्यौहार खुशहाली लाता है।

भारतीय संस्कृति में एक समय ऐसा भी था जब‍ साल का हरेक दिन एक उत्सव होता था, यानि साल में 365 दिन त्यौहार - इसका कारण यह है कि त्यौहार एक औजार की तरह है जो हमारे जीवन में उत्साह और उल्लास लाता है। दुर्भाग्य से आज लोगों के लिए त्यौहार का मतलब सिर्फ छुट्टी होता है, जब वो बारह बजे सो कर उठते हैं। फिर वो खूब खाते हैं, फिल्म देखने जाते हैं या घर पर बैठकर टीवी देखते हैं। पहले ऐसा नहीं था। किसी त्यौहार में सारा शहर एक जगह इकट्ठा होता था और खूब बड़ा जश्न होता था। त्यौहार के दिन हम सुबह चार बजे उठते थे और घर भर में ढेर सारी चीजें होती थीं।

लोगों के बीच इस संस्कृति को वापस लाने के लिए, ईशा में चार महत्वपूर्ण त्यौहार मनाए जाते हैं - पोंगल या मकरसंक्रांति, महाशिवरात्रि, दशहरा और दीपावली। अगर हम ऐसा कुछ नहीं करेंगे तो संभव है कि अगली पीढ़ी कोई भी त्यौहार नहीं मनाएगी। उन्हें पता ही नहीं होगा कि त्यौहार क्या होता है। वो बिना किसी की परवाह किए बस कमाने, खाने और सोने में अपनी सारी जिंदगी बिता देंगे। बहुत से लोग अब भी इसी तरह जीते हैं।

अगर आप हर चीज को जश्न की तरह लेते हैं, तो आप जीवन को लेकर गंभीर न होते हुए भी उससे पूरी तरह जुड़ाव रखना सीख जाते हैं। आजकल ज्यादातर लोगों की समस्या यह है कि अगर उन्हें कोई चीज महत्वपूर्ण लगती है, तो वे उसे लेकर घोर गंभीर हो जाते हैं। अगर उन्हें लगता है कि कोई चीज महत्वपूर्ण नहीं है, तो वे उसे लेकर लापरवाह हो जाते हैं, वे उससे जुड़ाव नहीं दिखाते। जब कोई कहता है, ‘वह बहुत गंभीर हालत में है’ तो आप समझ जाते हैं कि उसका अगला कदम क्या होने वाला है। बहुत से लोग गंभीर हालत में है। उनके साथ एक ही चीज होने वाली है जो कोई अहमियत रखती है। बाकी चीजों से वे बच कर निकल जाएंगे क्योंकि जो उन्हें गंभीर बात नहीं लगती, वे उसके लिए जुड़ाव और समर्पण नहीं दिखा सकते। सारी समस्या यही है। जबकि जिंदगी का मर्म यह है कि हरेक चीज को गंभीरता से न लेते हुए भी उससे पूरी तरह जुड़ाव रखना रखिए, जैसा हम किसी खेल में करते हैं। इसी वजह से जीवन के सबसे गंभीर पहलुओं के साथ जश्न जुड़ा हुआ है ताकि आप यह बात समझ सकें।