“कृष्णपक्ष में हरेक  चन्द्रमास का चौदहवां दिन या अमावस्या से पहले वाला दिन शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। एक पंचांग वर्ष की सभी बारह शिवरात्रियों में से, महाशिवरात्रि, सबसे अधिक महत्वपूर्ण  मानी जाती है। इस रात पृथ्वी के  ऊपरी गोलार्ध की दशा कुछ ऐसी होती है कि मानव शरीर में सहज रूप से ऊर्जा ऊपर की ओर चढ़ती है। यह एक ऐसा दिन होता है जब प्रकृति इंसान को उसके आध्यात्मिक शिखर की ओर ढकेल रही होती है। इस घटना का उपयोग करने के लिए हमारी परंपरा में यह खास त्योहार बनाया गया है, जो पूरी रात मनाया जाता है। इसे पूरी रात मनाने का मूल मकसद यह तय करना है कि ऊर्जा का यह प्राकृतिक चढ़ाव या उमाड़ अपना रास्ता पा सके। महाशिवरात्रि की पूरी रात आपको अपना मेरूदण्ड सीधा रखना चाहिए और जगे रहना चाहिए।

जो लोग अध्यात्म मार्ग पर हैं उनके लिए महाशिवरात्रि बहुत महत्वपूर्ण है। जो लोग पारिवारिक जिंदगी जी रहे हैं, उनके लिए भी यह बहुत महत्वपूर्ण है। महत्वकांक्षी इंसानों के लिए भी यह एक अहम दिन है। पारिवारिक जिंदगी जी रहे लोग महाशिवरात्रि को शिव की शादी की सालगिरह के रूप में मनाते हैं। शिव ने इस दिन अपने सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी, सांसारिक महत्वकांक्षा वाले लोग इसे उस रूप में मनातें हैं। लेकिन तपस्वियों के लिए यह वह दिन है जब शिव कैलाश के साथ एक हो गए थे, जब वे पर्वत की तरह निश्चल और पूरी तरह शांत हो गए थे।  

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 महाशिवरात्रि की पूरी रात आपको अपना मेरूदण्ड सीधा रखना चाहिए और जगे रहना चाहिए।

पूर्व के ऋषियों और मनीषियों ने इसे पहचाना, इसलिए उन्होंने इसका उपयोग एक साधना दिवस के रूप में, आध्यात्मिक प्रक्रिया को तेज करने के लिए इसे परंपरा का एक हिस्सा बना दिया। इसके अलावा शिव का वर्णन हमेशा से त्रिअंबक के रूप में किया जाता रहा है, जिसकी तीन आँखें हैं। तीसरी आँख वह आँख है जिससे दर्शन होता है। आपकी दो आँखें इन्द्रियां हैं, ये मन को सभी तरह की अनर्गल चीजें पहुँचाती हैं, क्योंकि जो आप देखते हैं वह सत्य नहीं है। ये दो आँखें सत्य को नहीं देख पातीं हैं, इसलिए एक तीसरी आँख, एक गहरी भेदन शक्ति वाली आंख को खोलना होगा।

आज के लिए नुस्खा यह है, कि आप समानांतर या क्षैतिज अवस्थाओं में न लेटें, हमेशा मेरूदण्ड सीधा रखें। केवल सीधा रखना ही काफी नहीं है, हमें एक ऐसी अवस्था में रहना होगा जहाँ हम, हम नहीं रह जाते। शिव का अर्थ है: ‘वह जो नहीं है’। आज की रात इसे अपने साथ होने दें, स्वयं को खो दें। फिर जीवन में एक नई दृष्टि खुलने की संभावना पैदा होगी, जीवन को स्पष्ट रूप से देखने की संभावना पैदा होगी, जिससे आप जीवन को वैसे देख पाएंगे जैसा यह है।”- सद्‌गुरु, महाशिवरात्रि के अवसर पर।

हर वर्ष ईशा योग केंद्र में, पूरी रात मनाई जाने वाली महाशिवरात्रि के शुभ मुहूर्त में सद्‌गुरु के साथ सत्संग और ध्यान का आयोजन होता है, जहां पर सद्‌गुरु दर्शकों को योग की प्राचीन प्रक्रियाओं में दीक्षित करते हैं। साथ ही साथ कुछ रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम भी पेश किए जातें हैं। इस वर्ष 10 मार्च को ईशा में महाशिवरात्रि महोत्सव मनाया जाएगा, जिसका सीधा प्रसारण आस्था चैनल पर शाम 6 बजे से सुबह 6 बजे तक होगा। आप टीवी के माध्यम से अपने घर पर ही योग और ध्यान प्रक्रियाओं में भाग ले कर अपने अंदर धन्यता का रसास्वादन कर सकते हैं।

ईश्वरीय कृपा और अनुकंपा से सराबोर इस प्रेम और आनंद से भरी रात का जरूर आनंद लें। आप अपने परिवार व मित्रों के साथ इस महोत्सव में भाग लेने के लिए सादर आमंत्रित हैं।

विशेष जानकारी के लिए देखें - mahashivarathri.org