सद्‌गुरुक्या एक पर्वत और इंसान में कोई समानताएं हो सकती है? इस लेख में सद्‌गुरु बता रहे हैं कि इंसान और हिमालय में काफी समानताएं हैं। सबसे बड़ी समानता है, अपने चरम को पाने की ललक ...

इंसान और हिमालय में काफी समानताएं हैं। सबसे बड़ी समानता है, अपने चरम को पाने की ललक की। यही कोशिश इनके जीवन में तमाम उथल-पुथल और भूचाल लाती है, फिर भी ये दोनों अपनी चाह नहीं छोड़ते। यही चीज दोनों को जोड़ती है और पास लाती है। जैसे ही आप हिमालय के नजदीक पहुंचते हैं, वैसे ही इस धरती के सबसे युवा प्राणी यानी आप और सबसे युवा पर्वत श्रृंखला यानी हिमालय के बीच एक रूमानियत की शुरुआत होने लगती है।

दोनों ही अभी भी बढ़ रहे है, दोनों की जद्दोजहद जारी है, अभी भी विकसित हो रहे हैं और दोनों अपने चरम को पाने की कोशिश में हैं। हालांकि हिमालय के लिए अपनी चोटी या चरम को छूना आसान नहीं है। अपने विकास के इस प्रयास में यह रोज अपने आप टूटता है, जिसके चलते बड़े-बड़े भूस्खलन और बर्फस्खलन होते हैं। जब भी कोई व्यक्ति आगे बढऩे का प्रयास करता है, उसके जीवन में भूचाल और भूस्खलन तो आते रहते हैं। प्रत्यक्ष रूप से दिखने वाली यह सारी अफरातफरी इस पर्वंत श्रृंखला के बढऩे और अपने चरम को छूने की कोशिशों के चलते होती है, जो इंसानों के जीवन से कोई खास अलग नहीं है। यह बेहद सांकेतिक है। पर्वत श्रृंखला के बढऩे से हर रोज कई भूचाल, भूस्खलन और अन्य गड़बडिय़ां होती रहती हैं। कुछ यही हाल इंसान के जीवन का भी है। जब भी आप बढऩा चाहेंगे, आपके जीवन में भूचाल और भूस्खलन आते रहेंगे।

पर्वत श्रृंखला के बढऩे से हर रोज कई भूचाल, भूस्खलन और अन्य गड़बडिय़ां होती रहती हैं। कुछ यही हाल इंसान के जीवन का भी है। जो भी इंसान विकास करना चाहता है, उसके जीवन में भूचाल और भूस्खलन तो आते ही रहेंगे।

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जो लोग निष्क्रिय होते हैं और बढऩा नहीं चाहते, उनके जीवन में ठहराव और स्थायित्व आता है और वह औरों से बेहतर नजर आते हैं। लेकिन असल में उनका जीवन बेजान होता है। जो व्यक्ति अपने विकास के लिए निरंतर कोशिश करता है, उसके जीवन में खूब उथल-पुथल तो होगी ही। लेकिन इंसान के जीवन में विकास के लिए यह सारी उलट-पुलट होना जरूरी भी है।

हिमालय में पहला बड़ा स्खलन कोई पांच करोड़ साल पहले हुआ था। तब से अब तक यह पांच मिलीमीटर की रक्रतार से धीरे-धीरे हर साल बढ़ रहा है। हालांकि महाद्वीप पर इसका विस्तार चौड़ाई में भले ही पांच सेंटीमीटर प्रति वर्ष हो, लेकिन उंचाई के मामले में यह पांच मिलीमीटर की सालाना दर से ही बढ़ रहा है। जीवन के साथ भी हमेशा यही होता है। आप चौड़ाई में कितना भी कुछ कर लीजिए, लेकिन इससे उंचाई तो थोड़ी बहुत ही बढ़ेगी। यह सिद्धांत सब पर लागू होता है, फिर चाहें आप भौतिक सुख या कल्याण की खोज में जुटे हों या आध्यात्मिक कल्याण की तलाश में हों। अगर आपने चौड़ाई के लिए खूब मेहनत की तो उंचाई थोड़ी बहुत ही बढ़ेगी। यह नियम हिमालय पर भी लागू होता है और आप पर भी। इस लिए मैं कहता हूं कि हिमालय और आप में गहरा नाता है। आप का और उस पर्वत श्रृंखला का संघर्ष एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। इसीलिए हम आपको हिमालच की यात्रा पर ले जाते हैं।

ऐसा नहीं है कि बिना संघर्ष के विकास संभव नही है। बिना संघर्ष विकास करने के लिए इंसान के अंदर प्रखर बुद्धि की आवश्यकता होती है। लेकिन मेरे हिसाब से तो करीब-करीब सभी लोग यानी 99.9 प्रतिशत लोग संघर्ष कर के ही विकसित होते हैं। इसके लिए आपके अंदर या तो प्रखर बुद्धि की आवश्यकता होगी या फिर भरपूर भरोसे की जरूरत होती है। सिर्फ यही दोनों बातें हैं, जो संघर्ष के बिना विकास करवा सकते हैं, अन्यथा आपको जूझना ही होगा। पर्वत के बड़े-बड़े टुकड़े टूट कर उसी के पास गिरते रहते हैं, क्योंकि वह बढऩा चाहता है। अगर वह स्थिर हो गया तो न तो भूचाल आएगा और न ही भूस्खलन होगा। फिर भी यह बढऩा चाहता है, भले ही अपनी भलाई की कीमत पर ही क्यों न हो। ज्यादातर इंसानों के लिए भी यही बात लागू होती है।

यहां लोग जीवन को जीवन की तरह समझते हैं, न कि संस्कृति के तौर पर, न नैतिकता के तौर पर, न तो सदाचार के तौर और न ही धर्म के तौर पर देखते हैं।

मुझे हमेशा पर्वतों से प्यार रहा है। पहाड़ों में घूमने और पर्वतारोहण के प्रति मेरा आकर्षण स्वभाविक रूप से रहा है। इस अनूठी पर्वत श्रृंखला हिमालय के प्रति मेरा आकर्षण बचपन से रहा है। हिमालय के चित्रों व उससे संबंधित किताबों ने उसके प्रति मेरे आकर्षण और वहां भ्रमण करने की मेरी चाहत को और भी उकसाया। यह बात अलग है कि इस पर्वत श्रृंखला ने कइयों के अंदर धार्मिक विश्वास और आध्यात्मिक आकांक्षाओं को जगाया है, लेकिन मैंने कभी भी इसे उस दृष्टि से नहीं देखा। एक और बात है, जिसकी वजह से मैं बार-बार हिमालय आता हूं और वह है कि यहां के कई लोग मुझे पहचानते हैं कि मैं कौन हूं। यहां मुझे घर जैसा लगता है। किसी अन्य स्थान पर जब मैं जाता हूं तो वहां के लोगों को सहज बनाने के लिए मुझे अपने आप को नीचे लाना पड़ता है। जबकि यह एक ऐसा स्थान है, जहां लोग दिखावे के बगैर जीवन को समझते हैं। यहां लोग जीवन को जीवन की तरह समझते हैं, न कि संस्कृति के तौर पर, न नैतिकता के तौर पर, न तो सदाचार के तौर और न ही धर्म के तौर पर देखते हैं। वह जीवन को बस जीवन की तरह ही जानते हैं, वैसा जैसा कि यह है। इस तरह की जगह पर आकर मुझे बिल्कुल अपने घर जैसा अहसास होता है।

यह पर्वत श्रृंखलाएं आध्यात्मिक स्पंदनों के चलते जीवंत है। कई आध्यात्मिक गुरुओं ने इन पर्वतों को अपना निवास स्थान बनाया और इसे अपनी उर्जा से प्रकाशित किया। यही वजह है कि अध्यात्म की खोज करने वालों को इन पर्वतों में आकर प्रेरणादायक अनुभव होते हैं। आप निर्बल या बूढ़े होने के पहले इन पर्वतों पर अवश्य आएं और इसमें लीन होने और डूबने की कोशिश करें। यही मेरी कामना और आर्शीवाद है।

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें 91 9488 111 555 www.sacredwalks.org