गुरु की छांव में मिली एक ठांव
एक बार फिर ‘इन दि लैप ऑफ दि मास्टर’ विशेष सत्संग का आयोजन ईशा योग सेंटर में, 7-8 सितंबर को किया गया। दो दिन के इस सत्संग में सद्गुरु का सान्निध्य पाने के लिए देश-दुनिया से 3,000 से भी ज्यादा लोग इकट्ठे हुए। गुरु की छांव में होने का क्या मतलब है?
चार साल पहले आश्रम में आम जनता के लिए एक आवासीय सत्संग का आयोजन किया गया था जिसका नाम था- ‘इन दि लैप ऑफ दि मास्टर’। उस कार्यक्रम में एक हजार से भी ज्यादा लोगों ने शामिल हो कर सद्गुरु की कृपा झड़ी में भींग कर तर-बतर होने का सौभाग्य प्राप्त किया।
गुरु की छांव में होने का क्या मतलब है?
एक बच्चे को अपनी मां की गोद में पालन-पोषण के साथ-साथ जो सुरक्षा और आराम का सुख मिलता है वही उसकी खुशहाल जिंदगी और सहज-सरल विकास की बुनियाद बनता है। इसी तरह एक आध्यात्मिक साधक अपना विकास गुरु की मौजूदगी में बड़ी आसानी से कर सकता है।
पौधे में अच्छे फूल खिलने के लिए मिट्टी का सही होना जरूरी है। बीज बहुत उम्दा हो सकता है, लेकिन जब तक मिट्टी, तापमान, हवा पानी सब ठीक नहीं होंगे, यह उम्दा बीज भला कैसे अंकुरित होगा! इसलिए किसी भी चीज के होने ले लिए सही माहौल बनाना बहुत जरूरी है। जिंदगी अच्छे और सही माहौल में ही तो पनपती है।
- सद्गुरु
एक बार फिर ‘इन दि लैप ऑफ दि मास्टर’ नामक विशेष सत्संग का आयोजन ईशा योग सेंटर में, 7-8 सितंबर को किया गया।दो दिन के इस सत्संग में सद्गुरु का सान्निध्य पाने के लिए देश-दुनिया से 3,000 से भी ज्यादा लोग इकट्ठे हुए।
पहला दिन
सद्गुरु ने अपनी वार्ता की शुरुआत, इस तरह के सत्संग की जरूरत और अहमियत बताने के साथ की। “आम तौर पर जो लोग जिंदगी को सचमुच पकड़ने की कोशिश में लगे रहते हैं, वे कभी जिंदगी को छू भी नहीं पाते, क्योंकि वे अपनी भावनाओं और मन की जबरदस्त भाग-दौड़ में फंसे रहते हैं।”
सद्गुरु समझाते हैं- “जिंदगी को महसूस करने के लिए; विचार, भावना या हालात की तरह नहीं बल्कि एक जबरदस्त घटना की तरह महसूस करने के लिए, जैसी कि वास्तव में यह है, इंसान को एक खास स्तर का विश्राम चाहिए। ऐसा विश्राम तब तक नहीं मिल पाएगा जब तक आपको सच्चा भरोसा नहीं होगा। भरोसा तब तक नहीं हो पाएगा जब तक अनुभूति का एक सुखद एहसास आपको नहीं मिलेगा। लैप ऑफ दि मास्टर, आपके अंदर उस अनुभूति को पैदा करने के लिए ही है।
लोगों के सवालों का जवाब देने के लिए सद्गुरु के साथ एक सवाल-जवाब सत्र का आयोजन किया गया था।
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दूसरा सत्र शाम 6.20 बजे शुरू हुआ, जिसमें सहभागियों ने सद्गुरु की मौजूदगी में शांभवी महामुद्रा का अभ्यास किया।
21 मिनट के गहन अभ्यास के बाद ईशा संस्कृति के बच्चों ने प्राचीन भारतीय मार्शल आर्ट्स कला ‘कलरिप्पयट्टु’ का एक छोटा-सा कार्यक्रम पेश किया। इसके बाद सद्गुरु ने सहभागियों से भूतेश मंत्रोच्चार करवाया और एक प्रक्रिया पूरी करने में उनका मार्गदर्शन किया।
एक वार्ता के दौरान सद्गुरु ने योग विद्या की कुछ विचारधारा में बताई गई योगियों की तीन श्रेणियों के बारे में बताया – मंद, मध्यम और उत्तम।
दूसरा दिन
दूसरी दिन की शुरुआत पौ फटते ही सुबह साढ़े-पांच बजे सूर्यकुंड पैविलियन में षाडिलजा सत्र के साथ हुई, जहां सूरज उनकी पीठ सेंक रहा था। षडिलजा उप-योग क्रिया का एक अभिन्न अंग है, जो इंसान के शारीरिक, मानसिक और ऊर्जा से जुड़े पहलुओं की देखभाल कर उनको मजबूत करता है।
एक सत्र में सद्गुरु ने ज्ञान और बोध के हमारे मौजूदा स्तर से परे की चीजों को महसूस करने के बारे में बताया। इसका सबसे तेज तरीका है तीव्रता से धधकते रहना – किसी विचार या भावना को पास नहीं फटकने देना। इससे थोड़ा आसान लेकिन कम बेहतर तरीका है- अपनी जिंदगी को हर पल आनंद में डूबाए रखना – बिना किसी वजह के, बस ऐसे ही।
उन्होंने संकीर्त यानी आनंद-विभोर हो कर गाते रहने के बारे में भी विस्तार से बताया। उन्होंने सहभागियों को पांच-पांच के समूह में बैठ कर आनंद-भरे स्वर निकालने को कहा। वे धुन का सहारा ले सकते थे, पर उस धुन में शब्दों की इजाजत नहीं थी।
अंतिम दिन की शुरुआत एक छोटे-से वीडियो के साथ हुई जो इसी अगस्त में सद्गुरु की कैलाश-ट्रेक के उपर बनी थी। फिर साउंड्स ऑफ ईशा के अत्यंत लोकप्रिय ताजा संगीत वीडियो “अलै अलै” भी दिखाया गया। ईशा होम स्कूल बैंड ने स्टेज पर आ कर एक सुरीले गीत के द्वारा सद्गुरु के प्रति आभार प्रकट किया।
उसके बाद सद्गुरु ने किसी को अधिकार देने से पहले सही शिक्षा की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने आजकल टेक्नोलाजी के इस्तेमाल के तरीके पर भी टिप्पणी की, साथ ही उन्होंने यह परेशान करने वाली बात भी बताई कि नई-से-नई धारदार टेक्नोलाजी का पहले-पहल सेना में ही इस्तेमाल होता है। “हमारे लिए क्षमता और काबिलियत का मतलब हो गया है: “किसी को कैसे नष्ट करें?” सद्गुरु ने कहा।
फिर सद्गुरु ने सहभागियों के साथ एक प्रक्रिया शुरू की और सबसे कहा, “अगर आप इच्छुक हैं और अगर आप खुद को एक खुले दरवाजे की तरह रखते हैं, तो आपकी जिंदगी के हर पल में, मैं आपके साथ रहूंगा।”
फिर साउंड्स ऑफ ईशा के लोगों ने ‘योगीश्वराया, महादेवाया’ गाया, उसी बीच ब्रह्मचारियों ने सद्गुरु के प्रसादित फूल सहभागियों में बांटे।
नमस्कार की मुद्रा में हाथ जोड़े सद्गुरु सहभागियों के बीच गए और सहभागियों ने पूरी श्रद्धा और सम्मान के साथ और कइयों ने डबडबाती आंखों से उनको नमन किया।