
सद्गुरु एक प्रबुद्ध योगी हैं, जिनका योग के प्राचीन विज्ञान पर पूर्ण अधिकार है। सद्गुरु ने योग के गूढ़ आयामों को आम आदमी के लिए इतना सहज बना दिया है कि हर व्यक्ति उस पर अमल कर के अपने भाग्य का स्वामी खुद बन सकता है। अब से तीस साल पहले मैसूर में चामुण्डी पहाड़ी की चट्टान पर, दोपहर में तपते सूरज के नीचे उनमें आत्मज्ञान का उदय हुआ। इस घटना के बाद युवा ‘जग्गी’ का ‘सद्गुरु’ में रूपांतरण हो गया। अपने उस अनुभव का वर्णन करते हुए सद्गुरु कहते हैं, “मेरे पास बताने के लिए कुछ भी नहीं था क्योंकि वह बताया ही नहीं जा सकता, मुझे सिर्फ इतना ही पता था कि मुझे एक सोने की खान मिल गई है, मेरे भीतर एक गुमनाम सोने की खान थी जिसे मैं एक पल के लिए भी खोना नहीं चाहता था।
अपने स्वप्न की चर्चा करते हुए, सद्गुरु अक्सर कहते हैं, “जिस तरह से भारत में सडक़ों पर चलते हुए, आप कहीं न कहीं सब्ज़ी बेचने वालों से टकरा ही जाते हैं, उसी तरह, यह मेरा स्वप्न है कि एक दिन जब मैं सडक़ों पर चलूँ, तो मैं बुद्ध पुरुषों से टकरा जाऊँ।” उनकी एक कविता की ये चंद पंक्तियाँ हमें इसकी एक दृष्टि प्रदान करती है:
मुझे द्वार के पार ले गए, तुम्हारी तरफ
अगर चुनने में तुम बहुत सर्तक हो
कि कौन जाएगा पार इस द्वार के
फिर मेरे साथ तुमने एक गलती की है
इस नई सुध ने मुझे इतना बेसुध कर दिया है
कि मैं इस द्वार को हमेशा खुला ही रखूँगा
ताकि वह हर कीड़ा पार कर जाए जो रेंग सकता है
मेरा यह फरेबी अभिमान, मुझे माफ करना
यह ‘मैं’ आखिर तुम ही तो हो।
इस स्वप्न को पूरा करने के लिये पिछले तीन दशकों में बहुत कुछ किया गया है। यह दिव्य यात्रा जो सद्गुरु ने अपनी आनंदपूर्णता को लोगों में डालने के उद्देश्य से महज सात लोगों से शुरू की थी, यह विकास की विभिन्न अवस्थाओं से होकर गुजऱी है। दुनिया भर में लाखों लोगों को आनंद मार्ग में दीक्षित किया गया है। सद्गुरु के साथ आनंद लहर कार्यक्रम के अपने अनुभव को एक महिला ने प्रज्ञा श्रीवास्तव की एक कविता के माध्यम से यूं व्यक्त किया…
धूप फिर निकल गई
ढल गई थी जो रात में
सुबह में बदल गई
ओस की बूँद सी
हर जगह बिखर गई
जो चली आनंद लहर
एक उमंग भर गई
सुर की संगीत की
तान फिर छिड़ गई
साथ जो बैठी उनके
जिंदगी बदल गई।“
ईशा फाउंडेशन का यह हिंदी ब्लॉग ‘आनंद लहर’ सद्गुरु के स्वप्न को पूरा करने की दिशा में बढ़ाया एक और कदम है। हमें उम्मीद है कि ‘आनंद लहर’ के पाठक इससे भरपूर लाभ उठाएंगे और अपने भीतर मौजूद परम आनंद के स्रोत से जुडक़र अपनी जिंदगी को धन्य बनाएंगे। जीवन को आनंद, प्रेम और धन्यता में जीना हर इंसान का जन्म सिद्ध अधिकार है।
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